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थाना क्षेत्र के इंद्रगाछी, दरियापुर, भवानीपुर, ठीकहां, नौतन, बरियरिया सहित एक दर्जन गांव में 12 से 15 छोटी बड़ी आरा मशीन अवैध रूप से संचालित हो रही हैं। वन विभाग की सुस्ती के कारण सरकारी राजस्व की क्षति लगातार हो रही है। हाल के दिनों में फॉरेस्टर रूपा कुमारी ने सूचना के आधार पर छापेमारी कर 18 इंच के तीन आरा मशीनों को सील किया था। लेकिन बड़ी आरा मशीन प्रतिदिन निर्बाध गति से संचालित हो रही हैं। फॉरेस्टर रूपा कुमारी से इस संदर्भ में जब बात की गई तो उन्होंने कहा की बड़ी आरा मशीनों के बारे में सही जानकारी नहीं रहने के कारण उनके द्वारा कार्रवाई नहीं की पाती है।
साथ ही मिल संचालकों की दबंगता के कारण स्थानीय लोग भी सूचना देने से कतराते हैं। ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार एक बड़ी आरा मशीन में प्रतिदिन आठ से 10 हजार रुपए की लकड़ी चिराई होती है। इस हिसाब से महीने में ढाई से तीन लाख और साल में एक आरा मशीन अवैध रूप से 20 लाख रुपए की लकड़ी चिराई करते हैं। इनमें स्थानीय वन कर्मी भी गुप्त रूप से सहयोग करते हैं। जब-जब कार्रवाई के लिए अधिकारियों के द्वारा छापेमारी होती है तब-तब मशीन संचालक 2 से 3 दिनों के लिए मशीनों का संचालन बंद कर देते हैं।
फॉरेस्टर रूपा ने बताया कि अधिकतर बड़ी आरा मशीन संचालक अनुज्ञप्ति के लिए हाईकोर्ट में रिट दायर किए हुए हैं। सवाल यह उठता है कि जब मामला हाई कोर्ट में है तो फिर बिना आदेश के दरियापुर से लेकर भवानीपुर और बरियरिया से लेकर नौतन तक आखिर बेधड़क आरा मशीन किसके इशारे और शह पर चल रहे हैं। रूपा के अनुसार बरियरिया के दो मशीनों को सील किया गया है जिनकी लंबाई 18 इंच है और इस पर केवल फर्नीचर बनाने का काम हो सकता है टिंबर चिराई का नहीं।
एक साल में एक से सवा करोड़ की चिराई होने के बावजूद सरकार को राजस्व नहीं | धंधेबाजों द्वारा फर्नीचर के नाम पर 18 इंच की अनुज्ञप्ति ली गई है। उसकी आड़ में टिम्बर चिराई का भी मशीन लगाया गया है। इसकी आड़ में प्रखंड के कई बड़ी आरा मशीन चल रही है। उनके द्वारा लाखों की लकड़ी महीने भर में चिराई कर दी जाती है। अक्टूबर से जून तक जमकर लकड़ी चिराई इनके द्वारा की जाती है। अलग अलग मिलों के बारे में जब जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि एक बड़ा आरा मशीन साल में अट्ठारह से बीस लाख रुपए की लकड़ी चिराई करते हैं। इस हिसाब से नौ बड़ी आरा मशीनों द्वारा सवा करोड़ से अधिक राशि की लकड़ी चिराई की जाती है और इस एवज में सरकारी खजाने में एक फूटी कौड़ी भी नहीं जाती है।
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