मुजफ्फरपुर में संक्रमण की वजह से आंख निकालने की घटना नहीं होती, अगर समय से दोषी और धंधेबाज इस अस्पताल पर कार्रवाई हुई होती। जूरन छपरा रोड नंबर 2 स्थित आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए पैसे वाले मरीजों के लिए पैकेज की व्यवस्था है। इस पैकेज के नाम पर ऑपरेशन में जो लेंस लगाई जाती है खेल उसमें भी होता है। खरीद से 10 गुना अधिक राशि पर अस्पताल मरीजों से वसूल करती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि लेंस को अस्पताल प्रबंधन रिटेल या होलसेल दुकान से नहीं खरीद कर सीधे कंपनी या उसके एजेंट से खरीदता है। इससे सरकार को मिलने वाले जीएसटी व अन्य टैक्स का सीधा चूना लगाया जाता है।
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों की माने तो हर वर्ष करीब 5 लाख से अधिक का राजस्व आई हॉस्पिटल द्वारा कंपनी से सीधे लेंस और दवा की खरीद के जिरए चोरी किया जा रहा है। विभाग की नजर में भी यह यह गैरकानूनी है।दरअसल कर्नाटक के विभिन्न आंख अस्पतालों में ऑपरेशन के दौरान लेंस लगाने के मामले में बड़े फर्जीवाड़े और मोटी रकम वसूलने का खुलासा हुआ था। इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेशक ने देश के सभी औषधि नियंत्रक को एक पत्र लिखा। सभी को अपने क्षेत्र में आने वाले आंख अस्पतालों में लेंस के मूल्य को लेकर जांच का निर्देश दिया गया।
इसके बाद राज्य औषधि नियंत्रक ने तत्कालीन ड्रग्स इंस्पेक्टर विकास शिरोमणि को मुजफ्फरपुर के आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद की सर्जरी वाले रोगियों के लिए लेंस खरीद प्रकिया की जांच का निर्देश दिया। इस निर्देश के आलोक में तत्कालीन ड्रग्स इंस्पेक्टर विकास शिरोमणि ने जांच की। बड़ा मामला सामने आया। उन्होंने अपनी जांच में पाया कि आई हॉस्पिटल द्वारा अधिकतम 1000 से 2000 का लेंस सीधे कंपनी से खरीदा जाता है और उसका पैकेज बना कर ऑपरेशन कराने वाले मरीजों को बेचा जाता है। खरीद मूल्य से 10 गुनी अधिक राशि इस अस्पताल द्वारा पैकेज के नाम पर मरीजों से ली जाती है।
आई हॉस्पिटल की हरकत अपराध
विकास शिरोमणि ने राज्य औषधि नियंत्रक, सिविल सर्जन व एसीएमओ को भेजी रिपोर्ट में लिखा था- आई हॉस्पिटल का लेंस निर्माता कंपनी या प्रतिनिधि से सीधे लेंस खरीदना ड्रग्स कंट्रोल एक्ट के तहत गैरकानूनी और गंभीर अपराध है। उन्होंने उच्च अधिकारियों से तुरंत कार्रवाई की सिफारिश की। लेकिन, दुर्भाग्य की बात है कि ऊंची पहुंच के कारण आई हॉस्पिटल पर कोई करवाई नहीं हो पाई। अस्पताल प्रबंधन ऑपरेशन पैकेज के नाम पर रोगियों से मोटी रकम वसूलता रहा।
अब पटना सचिवालय में पदस्थापित विकास शिरोमणि ने दैनिक भास्कर को बताया कि मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल हीं नहीं, राज्य कई आई हॉस्पिटलों में लेंस के नाम पर मोटी रकम वसूल होती है। उन्होंने कहा कि आई हॉस्पिटलों में लेंस का बड़ा रैकेट सक्रिय है। उनकी जांच रिपोर्ट पर यदि स्वास्थ्य विभाग कार्रवाई करता, तो आज शायद 65 लोगों की आंख की रोशनी बच सकती थी। बता दें कि आई हॉस्पिटल में 4000 से 16500 रुपए तक का पैकेज दिया जाता है।
विरोध किया तो अस्पताल ने दिखाई दबंगई, कहा इतना बड़ा संस्थान ऐसे ही नहीं चलाते, सब मैनेज हो जाएगा... तुम्हारी औकात ही क्या है
मेरी उम्र मात्र 52 साल है। जितने मरीजों का आपरेशन हुआ उसमें सबसे कम उम्र के हम ही हैं। पहले तो मोतियाबिंद की वजह से थोड़ा ओझल दिख रहा था। इस उम्मीद से ऑपरेशन कराए कि पेपर पढ़ने में परेशानी नहीं होगी। लेकिन सपने में यह नहीं सोचे थे की ऑपरेशन गलत करने की वजह से आंख निकलवानी पड़ेगी। मुझसे लेंस के लिए 35 सौ रुपए जमा करवाया गया। इसके बाद 22 नवंबर को मेरा ऑपरेशन हुआ। अगले दिन डॉक्टर ने पट्टी खोली तो काफी सूजन और दर्द था। शिकायत की तो डॉक्टर ने कहा कि सब ठीक है और मुझे घर भेज दिया। स्थिति बिगड़ी तो फिर से दिखाने हमलोग अस्पताल पहुंचे। मेरा केस बिगड़ चुका था।
मुझे पटना रेफर कर दिया गया। पटना में ही मुझे बताया गया कि ये आंख अब नहीं बचेगी। आई हॉस्पिटल पहुंचे तो इस मामले को दबाने के लिए हमलोगों का पुर्जा छीन लिया गया। मेरा साला केतन भी इस घटना का काफी विरोध किया। आंख में इंफेक्शन के बावजूद मैंने विरोध किया। मुझे चुप रहने के लिए कई तरह का प्रलोभन दिया गया। तब तक अन्य मरीज भी दिक्कत बताते हुए अस्पताल में आने लगे थे।फिर अस्पताल प्रबंधन की ओर से मुझे धमकाया गया। कहा, तुम्हारी औकात क्या है? हम इतना बड़ा संस्थान चला रहे हैं। सब कुछ मैनेज कर लेंगे।
(जैसा कि एसकेएमसीएच में आंख निकलवाने के बाद तरियानी सोनबरसा के राममूर्ति सिंह ने दैनिक भास्कर को बताया)
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