बीएचएमएस रिजल्ट फर्जीवाड़ा:302 स्टूडेंट्स के मार्क्स बदलकर फेल से करा दिया गया पास, 15 वर्षों में सिर्फ एक गिरफ्तारी, सात अब भी फरार

मुजफ्फरपुर10 महीने पहलेलेखक: असलम अख्तर
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फाइल फोटो - Dainik Bhaskar
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बैचलर ऑफ होम्योपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी परीक्षा (बीएचएमएस) 2006 के रिजल्ट फर्जीवाड़ा मामले में पुलिस की जांच कछुए चाल से चल रही है। मामले में 2007 में ही प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। लेकिन, 15 साल बाद विवि थाना पुलिस ने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग के तत्कालीन सहायक अमरेश कुमार को गिरफ्तार कर सकी है। अब भी फर्जीवाड़े में आराेपी विवि के 7 अधिकारी समेत 302 छात्राें पर कार्रवाई नहीं हाे सकी है। पुलिस इस बारे में आगे की कार्रवाई बताने की स्थिति में भी नहीं है।

दरअसल, पिछले 10 मार्च काे अमरेश की गिरफ्तारी के बाद विवि में यह चर्चा तेज हाे गई थी कि अब पुलिस अन्य आराेपियाें पर भी दबिश देगी। लेकिन, दाे माह बीत जाने के बाद भी पुलिस एक कदम आगे नहीं बढ़ सकी। जानकारी के अनुसार, 3 राज्य के छात्राें ने इस परीक्षा में सफलता हासिल की थी।

इनमें से कई देश के विभिन्न हिस्साें में स्थित सरकारी एवं निजी अस्पतालाें में चिकित्सा कार्य कर रहे हैं। कई की डिग्री पर सवालिया निशान हाेने के बावजूद ये सरकार से माेटी रकम वेतन के रूप में ले रहे हैं। कई निजी क्लीनिक चला रहे हैं। गंभीर मामला हाेने के बावजूद मामला एफआईआर तक ही सिमटा है। परीक्षा में जम्मू कश्मीर, यूपी, बिहार के छात्र बीएचएमएस परीक्षा में शामिल हुए थे।

चार्जशीट-कुर्की का भी हुआ था आदेश
रिजल्ट घाेटाले में बिहार विश्वविद्यालय की जांच कमेटी की रिपोर्ट पर तत्कालीन रजिस्ट्रार अशोक श्रीवास्तव ने विश्वविद्यालय थाने में 21 अप्रैल 2007 को एफआईआर दर्ज कराई थी। पुलिस जांच में यह सामने आया था कि छात्रों को पास कराने के लिए माेटी रकम ली गई थी। टेंपरिंग कर मार्क्स फाइल में ही नंबर बदल दिए गए थे। जांच में विश्वविद्यालय के आठ पदाधिकारियाें और कर्मचारियाें की रिजल्ट घाेटाले में संलिप्तता पाई गई। आराेपितों काे गिरफ्तार कर चार्जशीट दायर करने का आदेश जारी हुआ था। गिरफ्तारी नहीं होने पर आरोपितों की कुर्की के भी आदेश दिए गए। लेकिन, कार्रवाई नहीं हुई।

इलाहाबाद से आई मार्क्स फाइल में की गई थी टेंपरिंग
साल 2006 में बीएचएमएस परीक्षा के पार्ट वन से लेकर पार्ट फाेर तक की कॉपियों की जांच इलाहाबाद स्थित लालबहादुर शास्त्री महाविद्यालय में कराई गई थी। जांच के बाद इलाहाबाद से मार्क्स फाइल और कॉपियां बिहार विश्वविद्यालय आईं। रिजल्ट तैयार करने के लिए संस्कृत विभाग के प्रो. मनोज कुमार और प्रो. बीबी ठाकुर को टेबुलेटर बनाया गया था।

दोनों ने प्रारंभिक स्तर पर पाया कि इलाहाबाद से आई मार्क्स फाइल के लिफाफे का सील टूटा हुआ है। मार्क्स फाइल में बड़े पैमाने पर टेम्परिंग की गई थी। शक हाेने पर दोनों टेबुलेटरों ने रिजल्टशीट तैयार करने से इनकार करते हुए इसकी जानकारी तत्कालीन कुलपति डाॅ. अशेश्वर प्रसाद यादव को दी। कुलपति की अनुशंसा और कुलाधिपति के आदेश पर जब मामले की जांच हुई ताे पता चला कि 302 छात्रों के मार्क्स में टेंपरिंग नंबर बढ़ा दिए गए।

रिजल्ट में धाेखाधड़ी के ये हैं आराेपी
विश्वविद्यालय के तत्कालीन सहायक सूचना पदाधिकारी नरेश कुमार, मुकुंद सिंह, तत्कालीन परीक्षा सहायक अमरेश कुमार, तत्कालीन टंकक प्रेम कुमार झा, चंद्रकांत प्रसाद, देवदत्त कामत, ललित कुमार, तत्कालीन परीक्षा ओएसडी आनंद स्वरूप सिंह।

परीक्षा विभाग के तत्कालीन सहायक अमरेश कुमार पर चार्जशीट की कार्रवाई की गई है। अन्य आराेपी फरार हैं। इन सभी की गिरफ्तारी के लिए काेर्ट से वारंट मिल चुका है। स्थानीय पता व फाेन काॅल से लाेकेशन निकाले जा रहे हैं। गिरफ्तारी नहीं हाेने पर आराेपियाें के खिलाफ कुर्की की कार्रवाई की जाएगी। -रामनाथ प्रसाद, प्रभारी थानेदार, बीआरए बिहार विश्वविद्यालय थाना

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