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निगरानी ब्यूरो के 3 आईओ ने चार्जशीट में आरोपियों पर टेंडर के कागजात में हेरफेर कर पटना की मनचाही एजेंसी मौर्या ऑटाे मोबाइल को अधिक कीमत पर टिपर सप्लाई का ऑर्डर दिया। एजेंसी ने तय मानक से घटिया टिपर सप्लाई का आर्डर दिया।
टिपर की तकनीकी जांच एमवीआई से कराने के बजाय नगर निगम के सिविल इंजीनियरों से कराई गई। सिविल इंजीनियरों की रिपोर्ट पर ही टिपर काे सही बताकर एजेंसी को राशि भुगतान कर दी गई। जबकि बाद मे इसकी जांच एमवीआई से कराई गई ताे उन्होंने टिपर काे घटिया बताया। टेंडर में शामिल दूसरी एजेंसी को बाहर करने के लिए तरह तरह के कागजातों में हेर-फेर किया। तिरहुत ऑटोमोबाइल मुजफ्फरपुर से पहले भी नगर निगम 20 ऑटाे टिपर की खरीदारी कर चुका था। बाद में 50 टिपर खरीदने का टेंडर निकला गया। सबसे कम कीमत देने के बावजूद तिरहुत ऑटोमोबाइल से खरीदारी नहीं की गई।
तिरहुत ऑटोमोबाइल के प्रोपराइटर संजय कुमार गोयनका से प्रति टिपर 15 हजार रुपए रिश्वत मांगी गई थी। इनके इंकार कर देने पर घोटाले की पृष्ठभूमि तय की गई और 7 लाख 70 हजार प्रति टिपर रेट से पटना की मौर्या मोटर्स को आर्डर दे दिया गया। 16 अगस्त 2017 ऑटो टिपर खरीदने के लिए मेयर सुरेश कुमार की अध्यक्षता में बैठक हुई थी।
50 दिन बाद इस बैठक की कार्यवाही जारी की गई। कार्यवाही निकलने से 16 दिन पहले ही अखबारों में टिपर खरीद का टेंडर प्रकाशित हाे चुका था। तत्कालीन नगर आयुक्त ने रंगनाथ चौधरी ने रिटायर तबादले के बाद बैक डेट में आनन फानन में एक करोड़ 72 लाख 70 हजार रुपए का भुगतान किया था। इस तरह सभी आरोपियों ने एक षड्यंत्र के तहत सरकारी राशि का गबन किया है।
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