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शहर के वार्ड 21 स्थित नया टोला के 500 परिवार के 4 हजार लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है। 48 वर्ष पूर्व बसे इस बस्ती के लोग शहरवासियों के मिलने वाली सुविधा से अब तक नदारद है। आजादी के इतने साल बाद भी लोगों को स्वच्छ पेय जल और सुचारू रूप से बिजली सेवा भी नहीं दी जा रही। जहां-तहां गंदगी फैली रहती है। करीब 10 परिवार पर एक चापाकल है, जिससे जैसे-तैसे पीने की पानी की व्यवस्था हो जाती है।बिजली का खंभा नहीं है, इसलिए बांस-बल्ले के सहारे बिजली का तार खिंच घर में रोशनी करते है। इस बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग दिहाड़ी पर मजदूरी या अन्य छोटे-मोटे काम कर परिवार का पेट पालते है। वैसे तो कागजों पर अपना जिला 2018 में ही ओडीएफ फ्री घोषित कर दिया गया था। लेकिन, यहां के लोग अब भी खुले में शौच करने को मजबूर है। भास्कर पड़ताल के जरिए हमनें बस्ती में रह रहे लोगों की परेशानी और क्षेत्र में विकास की तस्वीर कितनी बदली है, जानने की कोशिश की।
बांस के सहारे बिजली तार खिंचने पर बना रहता है खतरा| विकास हुआ है? इस सवाल पर स्थानीय निवासी जयकरण महतो, राजू दास, रामभजन दास, संजू गुप्ता आदि लोगों ने भड़कते हुए कहा कि हम नौकरी पेशा से जुड़े लोग नहीं है। रोज कमाते है और खाते है। सभी नेता अपने भाषण में विकास की बात करते है। लेकिन, बस्ती के लोगों का कितना विकास हुआ है। तस्वीर आपके सामने है। बिजली का खंभा तक नहीं लगाया गया है। मजबूरन लोग बांस-बल्ला के सहारे घर में बिजली का तार खिंच कर घर में रोशनी कर रहे है। बारिश होने पर चिंगारी निकलती रहती है। पूरे बांस में करंट दौड़ता रहता है। कई लोगों को करंट भी लगता है। लेकिन, हमारी समस्या सुनने वाला कौन है। किसी तरह जीवन यापन कर रहे है।
बस्ती में निजी शौचालय की कमी, खुले में करते है शौच| जिले को वर्ष 2018 में ही ओडीएफ फ्री घोषित कर दिया गया था। इसका मतलब यहां खुले में शौच नहीं किया जाता। जब ये बात स्थानीय लोगों को बताया गया, तो वें बारी-बारी से अपने घर के अंदर ले गए। किसी भी घर में शौचालय नहीं था। शौच कहां जाते हों? इस सवाल पर लोगों ने रेलवे लाइन की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम ज्यादा पढ़े-लिखें नहीं है। बड़े अधिकारी कागजों पर क्या बताते है, पता नहीं। लेकिन, यहां के 500 परिवार के लोग अब भी रेलवे लाइन के किनारे खुले में शौच करने को मजबूर है।
1972 से बेनामी भू-खंड पर रह रहे है लोग| स्लम बस्ती, जो नया टोला के नाम से जाना जाता है। इस भू-खंड पर 1972 से लोग रहते आ रहे है। बेनामी भू-खंड होने के कारण किसी ने आपत्ति नहीं की। इस कारण बस्ती का क्षेत्रफल बढ़ता गया। बस्ती के बसे अब 50 वर्ष होने को है। लेकिन, बस्ती के लोगों की तकदीर नहीं बदल सकीं। इससे लोगों में सरकार व जिला प्रशासन के प्रति नाराजगी है।
जहां-तहां कचरा फैले रहने से बीमारी बढ़ी
बस्ती में कई स्थानों पर स्थाई नाली तक नहीं बनायी गई है। लोग जैसे-तैसे मिट्टी काटकर पानी का बहाव कर रहे है। वहीं, 500 परिवारों में एक को भी डस्टबीन मुहैया नहीं कराया गया है। बस्ती में भी कचरा पेटी नहीं रखा गया है। इससे बस्ती में जहां-तहां गंदगी पसरा रहता है। उसी कचरे में मवेशियों, मुर्गी अौर बतख विचरण करते रहते है। वहीं, आसपास बच्चें खेलते है। गंदगी के बीच रहने के कारण यहां के लोगों में बिमारी भी बढ़ी है। फॉगिंग मशीन से केमिकल का छिड़काव तक नहीं किया जाता। इससे बच्चों में अक्सर मलेरिया, डायरिया व कुपोषण आदि बिमारी से ग्रसित होने की शिकायत आती रहती है।
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