बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM राजद के माई (MY) समीकरण को धराशायी करने में लगी है। इस पार्टी पर भाजपा को मजबूती देने का भी इल्जाम लगता रहा है। हाल के चुनाव को देखें करें तो गोपालगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी ने अब्दुल सलाम को मैदान में उतारा। गोपालगंज में राजद-जदयू के संयुक्त प्रत्याशी मोहन प्रसाद गुप्ता 1,794 मतों से चुनाव हार गए थे। वहीं AIMIM के प्रत्याशी अब्दुल सलाम को 12,214 वोट मिले। यानी स्पष्ट तौर पर RJD को जीत से किसी ने रोका तो वो AIMIM ही थी। AIMIM ने यह दिखा दिया कि राजद के माई समीकरण में किस तरह से वह सेंधमारी कर रही है। मुसलमानों में उसकी ताकत कैसी है! अब कुढ़नी विधान सभा उपचुनाव की बारी है।
कुढ़नी विधान सभा क्षेत्र में मुसलमान वोट 35 हजार और यादव 30-35 हजार हैं। सवर्णों में भूमिहारों की संख्या यहां ज्यादा है। ये 40 हजार से ज्यादा हैं। कुशवाहा वोट बैंक 30-32 हजार, वैश्य 35-38 हजार, पासवान 12-15 हजार के लगभग है। यहां भी AIMIM प्रत्याशी उतारने जा रहा है।
जब AIMIM को राजद ने तोड़ दिया
बिहार विधान सभा चुनाव 2020 पर गौर करें तो जदयू ने जिन 11 मुसलमानों को टिकट दिया था, वे सभी हार गए। आरजेडी से 8, AIMIM से 5, कांग्रेस से 4 और बीएसपी व सीपीएम से 1-1 विधायक हुए। 2015 में कुल 24 मुस्लिम विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन 2020 में 19 विधायक ही जीत सके। इसके बाद हुए तारापुर, कुशेश्वर स्थान, बोचहां, मोकामा और गोपालगंज उपचुनाव में कोई मुसलमान चुनाव नहीं जीता।
बिहार की मुस्लिम राजनीति में सबसे बड़ा भूचाल तब आया जब AIMIM के चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए। कोचाधामन सीट से विधायक मुहम्मद इजहार अस्फी, जोकीहाट से शाहनबाज आलम, बायसी से रुकनुद्दीन अहमद और बहादुरगंज के विधायक अनजार नईमी ने एआईएमआईएम को छोड़ दिया। AIMIM में सिर्फ उसके प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान रह गए। भास्कर ने उनसे बात की। पढ़िए अख्तरुल ईमान से बातचीत:
सवाल- लालू प्रसाद की पार्टी माई समीकरण की बात करती रही है?
जवाब- लालू प्रसाद बूढ़े हो गए हैं और उनके विचार भी कमजोर हो गए हैं। वे माई समीकरण के नेता थे और तेजस्वी यादव एटूजेड के नेता हैं। लालू जी का खेमा खंभों पर खड़ा था। तेजस्वी यादव का महल 26 खंभों पर खड़ा है। उसमें से एक खंभा गिर जाए तो क्या बिगड़ जाएगा?
सवाल- वे नहीं चाहते एक एटूजेड में से एक भी खंभा टूटे?
जवाब- खंभा इसलिए टूटना चाहिए कि देश की आजादी के बाद राष्ट्रवाद को दफना दिया गया है। अंग्रेजों के खौफ से राष्ट्रवाद जिंदा था। अंग्रेजों से देश ज्यों ही आजाद हुआ कि ये देश जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद का शिकार हो गया। बिहार की राजनीति पूरे तौर पर जाति आधारित राजनीति है और उसी के इर्द- गिर्द घूम रही है। इसलिए तमाम पार्टियों को अलग से पार्टी बनानी पड़ी। ये जुमला तो कांग्रेस ने भी राजद को कहा होगा कि राजद ने कांग्रेस के वोट बैंक को छीन लिया।
सवाल- राजद-जदयू एक हुए बिहार में और कहा कि हम भाजपा को रोकने के लिए साथ-साथ हैं?
जवाब- भाजपा को रोकने के लिए हम भी तैयार हैं। हमसे ज्यादा भाजपा को कोई दूसरा थोड़े ना रोक पाएगा। जदयू तो अभी-अभी भाजपा को छोड़ कर आई है और गंगा स्नान भी नहीं किया है। ये लोग तो अपनी सत्ता को संभालने के लिए आए हैं। भाजपा से तो हम लड़ रहे हैं। आपने नहीं देखा कि अपनी सत्ता के लिए कितनी बार भाजपा के साथ वे (नीतीश कुमार) गए।
सवाल- राजद का तो कहना है कि हम भाजपा के साथ नहीं गए?
जवाब- 1990 में सरकार बनाने में भाजपा की मदद राजद को मिली थी।
सवाल- हां यह सही है लेकिन राजद का बड़ा तर्क यह रहा है कि राम रथ हमने रोका, हमने लालकृष्ण आडवाणी को रोका?
जवाब- गिरफ्तार किया तो अच्छी बात है। ये उनकी जिम्मेदारी थी। चौकीदार और पहरेदार की जवाबदेही है। किसी पर एहसान नहीं किया था। बाग में पानी पटाया था।
सवाल- कुढ़नी में एआईएमआईएम भी उम्मीदवार उतारेगी?
जवाब- हमारी पार्टी ने पूरे देश में चुनाव लड़ने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया हुआ है। कोई ऐसा नियम होगा कि हम कुढ़नी में उम्मीदवार नहीं दे सकते तो हम सोचेंगे।
सवाल- कहीं उम्मीदवार देना या नहीं देना यह तो आपकी पार्टी तय करेगी। हम सिर्फ यह पूछ रहे हैं कि आप उम्मीदवार देंगे कि नहीं?
जवाब- हां जरूर देंगे। जहां हमारा कैंडिडेट अच्छा होगा, हम वहां उम्मीदवार देंगे। इसमें किसी से पूछने की जरूरत नहीं है।
सवाल- आपकी पार्टी पर आरोप लग जाता है कि आप जहां उम्मीदवार दे देते हैं, वहां भाजपा को मजबूती मिल जाती है?
जवाब- हम तो बीजेपी को कभी माफ नहीं कर सकते है। बीजेपी का नाम आते ही गुजरात में मांओं और बहनों की चीख सुनाई देने लग जाती है और बाबरी मस्जिद का टूटा हुआ गुंबद अकलियत के सामने होता है, लेकिन 74 सालों में 14-15 साल बीजेपी की सरकार रही, बाकी ने 60 सालों में क्या किया! आज भी माइनॉरिटी का पर कैपिटा इन्कम कम है। नौकरियों में बराबरी की हिस्सेदारी नहीं है। कौन है इसका जिम्मेदार !
सवाल- बीजेपी का तो कहना रहा है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद दंगे नहीं हुए?
जवाब- दंगे नहीं हुए लेकिन दूसरी तरह से माइनॉरिटी का गला वे घोंट रहे हैं। वे मॉब लिंचिंग करा रहे हैं। आजादी किसका नाम है। खौफ में डाले हुए है बीजेपी। राष्ट्रीय मुद्दों पर भी कमजोर हो गई है बीजेपी। नोटबंदी, जीएसटी के जरिए देश को खोखला कर दिया है। ये न हिंदू के, सिख के न मुस्लिम के, न ईसाई के और न देश के हितैषी हैं। ये धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं।
सवाल- एनडीए और महागठबंधन दोनों ही मुस्लिम विरोधी हैं ?
जवाब- हम ये नहीं कह रहे हैं। हम ये कह रहे हैं कि इस देश में कमजोर तबके को अपनी राजनीतिक शक्ति बनानी चाहिए। लालू प्रसाद ने आह्वान किया भैंस चराने वालों, बकरी चराने वालों अपनी लीडरशिप पैदा करो। मैं कह रहा हूं कि यादव भाइयों के साथ सलूक अच्छा नहीं हुआ तो उन्होंने अपनी पार्टी बनाई। पासवान भाईयों ने अपनी पार्टी बनाई। मुछुआरा की पार्टी बन जाए। माइनॉरिटी की पार्टी नहीं बने! यादव, कोयरी-कुर्मी की पार्टी जाए तो कोई कुछ नहीं कहेगा लेकिन माइनॉरिटी की पार्टी बन जाए तो सभी के पेट में दर्द है।
सवाल- आपके विधायकों को तोड़ भी दिया जाता है? वे चले भी जाते हैं आपको छोड़ कर ?
जवाब- कमजोर आदमी हैं, कुचल देता है कमजोरों को, खरीद लेता है। अंग्रेजों के समय आजादी की बात जो करते थे उन्हें कुचल दिया जाता था। गांधी जी पर डंडा नहीं पड़ा था क्या ! ऐसे ही हम निकलेंगे और आगे बढ़ेंगे।
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