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7 फरवरी 1921... आज से ठीक सौ साल पहले बिहार विधानसभा का पहला सत्र उसके लिए विधिवत अधिसूचित भवन में हुआ। वह तब बिहार-उड़ीसा विधान परिषद कहलाता था। इसके वास्तुविद् थे एएम मिलवुड जिन्होंने आयताकार ब्रिटिश पार्लियामेंट से हटकर रोमन एम्फीथियेटर की तर्ज पर इसे बनाया। पहली बैठक को गवर्नर लार्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने संबोधित किया और सदन के अध्यक्ष थे वॉल्टर मॉड।
तब सदन के निर्वाचित सदस्यों को चुनने वाले मुट्ठीभर लोग थे। यह संख्या मात्र 2404 थी। इन्हें ही वोट देने का अधिकार था। बाद में यह बढ़कर 3,25,293 हुई। इसके अलावा 1463 यूरोपियन, 370 लैंड होल्डर्स और 1548 विशेष निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को ही वोट देने का अधिकार था। आज 7.43 करोड़ से अधिक मतदाता विधानसभा के सदस्यों को चुनते हैं। बीते 100 वर्षों में लोकतांत्रिक संस्थाओं के सतत विकास की यह स्वर्णिम कड़ी है।
भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत बिहार में दो सदनीय व्यवस्था लागू हुई
बिहार के लिए 1911 का साल बेहद महत्वपूर्ण था। 12 दिसंबर 1911 को ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में बिहार और उड़ीसा को बंगाल से अलग स्वतंत्र राज्य बनाने की घोषणा की। 22 मार्च 1912 को उनकी घोषणा ने साकार रूप लिया। 43 सदस्यीय विधायी परिषद गठित हुई। इसमें सिर्फ 24 सदस्य ही निर्वाचित थे, शेष मनोनीत थे। बाद में संख्या 103 हुई।
भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत बिहार और उड़ीसा अलग-अलग राज्य बने। बिहार में दो सदनों वाली विधायिका- विधानसभा और विधान परिषद अस्तित्व में आई। पूर्व से कार्यरत विधायी परिषद का नामकरण विधानसभा हुआ इसके बाद सदस्यों की संख्या बढ़कर 152 हुई और परिषद में 30 सदस्य होते थे। आज विधानसभा के 243 सदस्य हैं। सभी निर्वाचित। (विजय कुमार सिन्हा, अध्यक्ष, बिहार विधानसभा)
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