मंगलवार को दोपहर में लालू प्रसाद पटना में राष्ट्रीय जनता दल के प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करेंगे। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए वे अपनी बात रखेंगे। बड़े बेटे तेजप्रताप ने यह बयान दिया है कि लालू को दिल्ली में बंधक बना लिया गया है, इस पर तेजस्वी ने सधी प्रतिक्रिया दी है, लेकिन लालू ने कुछ नहीं कहा है। बिहार की राजनीति में इससे कई तरह के निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक कार्यकर्ता देख रहे हैं कि लालू प्रसाद के सामने तीन बड़ी मुश्किलें हैं। वह इनसे कैसे निबटते हैं, इस पर सबकी नज़र है।
चुनौती नंबर-1: तेजप्रताप यादव का गुस्सा
लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप यादव ने छात्र जनशक्ति परिषद का गठन करने के बाद अलग राह पकड़ ली है। वे राजद के विधायक जरूर हैं लेकिन भविष्य के लिए अपनी ताकत मजबूत करने में लग गए हैं। छात्र जनशक्ति परिषद ने अपना अलग संविधान बनाया और अलग चुनाव चिह्न बांसुरी। हालांकि, तेजप्रताप शुरुआत में यह कहते रहे कि छात्र जनशक्ति परिषद, राजद का बैक बोन होगा लेकिन अब उनका मन मिजाज बदला हुआ दिख रहा है।
चुनौती नंबर-2: उपचुनाव में महागठबंधन की टूट
एक तरफ घर में ही विवाद की स्थिति है तो दूसरी तरफ महागठबंधन में टूट दिख रही है। पिछले वायदे के अनुसार राजद ने कुशेश्वर स्थान की सीट कांग्रेस को दे दी होती तो यह नौबत ही नहीं आती, लेकिन राजद ने तारापुर और कुशेश्वरस्थान दोनों जगह से उम्मीदवार दे दिया। अब कांग्रेस कुशेश्वरस्थान से तो उम्मीदवार देगी ही, तारापुर में भी राजद का खेल बिगाड़ने के लिए उम्मीदवार उतारेगी। पप्पू यादव भी मैदान में आ सकते हैं। यानी, राजद के लिए उपचुनाव की दो सीटों पर जीत आसान नहीं रह गई है।
चुनौती नंबर-3: तेजस्वी के आगे कन्हैया
लालू प्रसाद के लिए चिंता का बात यह भी होगी कि कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल करा लिया है। कन्हैया बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने की हर टिप्स आलाकमान को देंगे। उपचुनाव में भी कांग्रेस उनका इस्तेमाल करेगी। बिहार में जाति का वर्चस्व चुनावों में रहा है लेकिन मुसलमानों का 16 फीसदी वोट बैंक संभाल कर रखना लालू प्रसाद के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। विधानसभा चुनाव में दिखा कि ओवैसी की पार्टी AIMIM इस वोट बैंक में सेंधमारी कर चुकी है। बाकी कसर कांग्रेस पूरा कर देगी।
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