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70 साल में 4 गुणा बढ़ गई बिहार की जनसंख्या:बिहार में 1951 में 2.9 करोड़ थी आबादी, 2021 में बढ़कर 12.7 करोड़ हुई, शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी

पटना2 वर्ष पहले
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सांकेतिक तस्वीर। - Dainik Bhaskar
सांकेतिक तस्वीर।

बिहार में जनसंख्या आउट ऑफ कंट्रोल है। पानी की तरह 70 साल में 4 गुणा तेजी से बढ़ी है। वर्ष 1951 में बिहार के जिस क्षेत्रफल पर जनसंख्या 2.9 करोड़ थी। वह अब 2021 में 12.7 करोड़ हो गई है। जनसंख्या की यह रफ्तार शिक्षा और सेहत की समस्या के साथ मातृ शिशु मृत्यु दर को भी बढ़ा रही है। सरकार कानून के बजाए अभियान से इस पर नियंत्रण कर रही है। वह इसके लिए किसी कड़े कानून के पक्ष में नहीं है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का कहना है कि जन भागीदारी से ही इस दिशा में कोई बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।

परिवार नियोजन पर हर वर्ग का हो मंथन

राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा बुधवार को पटना के एक होटल में अयोजित जनसंख्या को लेकर कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि परिवार नियोजन के प्रति हर वर्ग को संवेदनशील होना होगा। परिवार नियोजन के कार्यक्रमों की सफलता पर ही राज्य का भविष्य निर्भर है। अगर इस पर काम किया जाए तो शिक्षा से लेकर हर क्षेत्र में सुधार होगा। सरकार परिवार नियोजन की दिशा में जो भी योजना चला रही है वह राज्य के विकास में तेजी से लोगों को लेकर चलने वाली है लेकिन इसमें हर वर्ग को मिलकर काम करना होगा।

ऐसे बढ़ रही है बिहार की जनसंख्या

  • वर्ष 1951 में बिहार की जनसंख्या 2.9 करोड़ थी।
  • 2021 में जनसंख्या बढ़कर 12.7 करोड़ हो गई।
  • 70 साल में राज्य की जनसंख्या 4 गुना से तेज रफ्तार से बढ़ी है
  • 1991 में राज्य की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी, जो 2001 के बढ़कर 8.3 करोड़ हो गई।
  • 1991 से 2001 के बीच राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर सबसे अधिक यानी 28.6% गई।
  • 2011 में राज्य की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी ,जो अब 2021 में 12.7 करोड़ के आस-पास है।
  • 2011 से 2021 के बीच 10 साल में औसत जनसंख्या वृद्धि दर 22.3% ही है,जो इन 70 सालों में सबसे कम वृद्धि दर है।

कुल प्रजनन दर में राहत काे लेकर दावा

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल प्रजनन दर कम करने में सफ़ल हुआ है। वर्ष 2014-15 में कुल प्रजनन दर 3.4 था, जो 2019-20 में घटकर 3 हो गया है। वहीं, बिहार की नवजात मृत्यु में भी 3 अंकों की कमी आई है। बिहार की नवजात मृत्यु दर जो वर्ष 2017 में 28 थी, वर्ष 2018 में घटकर 25 हो गई। अब बिहार की नवजात मृत्यु दर भी देश की नवजात मृत्यु दर (23) के औसत के काफ़ी करीब पहुंच गई है। वहीं, वर्ष 2014 में बिहार की मातृ मृत्यु दर 165 थी, जो 2018 में कम हो कर 149 हो गई।

इस तरह इसमें लगभग 16 प्वाइंट की कमी आई है। यह सुधार स्वास्थ्य के क्षेत्र में सकारात्मक सुधार का संकेत भी हैं। स्वास्थ्य विभाग बिहार में जन संख्या नियंत्रण को लेकर इसे बड़े दावे के रूप में सामने ला रहा है। परिवार नियोजन में प्रजनन दर को आधार बनाकर ही बताया जा रहा है कि बिहार में अब तेजी से सुधार हो रहीा है जबकि हकीकत ये है कि नसबंदी के मामले में काफी फिसड्‌डी है।

बिहार में बढ़ा आधुनिक परिवार नियोजन का इस्तेमाल

कोरोना काल के पहले आधुनिक गर्भनिरोधक साधन ( छाया) के इस्तेमाल में बिहार देशभर में नंबर एक पर रहा। इसके लिए क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य विभाग के द्वारा प्रशिक्षित भी किया गया। पहले गर्भनिरोधक सूई (अंतरा) प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर ही उपलब्ध थी, जो अब राज्य के 8500 उप-स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी उपलब्ध कराई जा रही है। बालिका शिक्षा ही परिवार नियोजन का बड़ा हथियार है। इसके लिए बालिकाओं की शिक्षा को बेहतर करने से परिवार नियोजन कार्यक्रम को अधिक सफ़ल बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2014-15 में बिहार में 24.1% लोग ही परिवार नियोजन के किसी साधन का इस्तेमाल करते थे, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 55.8% हो गया है। वहीं, अनमेट नीड( ऐसे योग्य दम्पति जो परिवार नियोजन के साधन इस्तेमाल करना चाहते हैं पर उन्हें साधन उपलब्ध नहीं हो पाता है) भी 5 सालों में 21.2% से कम कर 13.6 % हो गई है, साथ ही अर्ली मैरिज एवं 15-19 वर्ष में माँ बनने वाली किशिरियों की संख्या में भी सुधार हुआ है। केयर इंडिया के पार्टी ऑफ चीफ सुनील बाबू ने कहा कि कोरोना काल में भी परिवार नियोजन पर जोर रहा।

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