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बिहार में करोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इस महामारी के कारण मौत के मामले भी बढ़ रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में पटना में 14 साल से कम उम्र के 80 से ज्यादा बच्चे कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने सभी स्कूल और कोचिंग संस्थानों को 11 अप्रैल तक बंद करने आदेश जारी किया है। इस आदेश का बिहार के विभिन्न हिस्सों में विरोध शुरू हो गया है। मंगलवार को निजी विद्यालयों और कोचिंग के शिक्षकों ने पटना सिटी के भगत सिंह चौक पर एकत्रित होकर सरकार के इस फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। कहा कि कोरोना काल में चुनाव हो सकते हैं, विधानसभा का सत्र चल सकता है तो स्कूल क्यों नहीं खुल सकते? हालांकि उन्होंने बिहार में कोरोना के बढ़ रहे मामलों और मौतों के संबंध में कुछ नहीं कहा।
छपरा और मसौढ़ी में भी विरोध
छपरा में 200 स्कूलों के संचालकों ने इसको लेकर बैठक की। इसमें तय हुआ कि 11 अप्रैल तक स्कूल बंद रखेंगे, लेकिन उसके बाद सरकार ने स्कूल बंद करने को कहा तो स्कूल बंद नहीं रखे जाएंगे। मसौढ़ी प्राइवेट स्कूल शिक्षक संघ ने स्कूलों को बंद कराने के आदेश के विरोध में बाइक रैली निकाली और SDO का घेराव भी किया। संघ का कहना है कि स्कूल बंद होने से पिछले साल बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित रही। इसके साथ ही शिक्षकों को सैलरी देने में काफी कठिनाई हो रही है।
अब बर्दाश्त करने की स्थिति नहीं रही
कोचिंग एसोसिएशन ऑफ भारत ने भी इसको लेकर एक बैठक की। इससे जुड़े रणधीर गांधी ने बताया कि अब बर्दाश्त होने की स्थिति नहीं रह गई है। हमसबों के सामने अब कोई रास्ता नहीं रह गया है। पिछले लॉकडाउन की तरह अब लॉकडाउन जैसी स्थिति हम नहीं झेल सकते। सरकार मानक तय करे। एक बेंच पर एक स्टूडेंट को बैठाने को कहा जाए तब भी हम तैयार हैं पर पूरी तरह से बंद करना ठीक नहीं है। बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, विधानसभा का सत्र भी चला, तब फिर एहतियात बरतते हुए कोचिंग संस्थान क्यों नहीं चलाए जा सकते?
मुख्यमंत्री से की अपील
प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेल्फेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष शमायल अहमद ने कहा कि राज्य के 38 जिलों में हमारे एसोसिएशन ने वहां के जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री से अपील की है कि 12 तारीख से सभी स्कूल खोले जाएं। उन्होंने बताया कि बतौर अध्यक्ष उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर भी 12 अप्रैल से स्कूल नियमित खोलने की मांग की है। शमायल अहमद ने अभिभावकों पर ही ठीकरा फोड़ा है। उन्होंने कहा है कि कई अभिभावकों ने पूरे साल अपने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करवाई लेकिन जब फीस देने की बात आई तो मुकर गए। उन्होंने अपने बच्चों का नामांकन बिना किसी स्थानांतरण प्रमाणपत्र के दूसरे स्कूलों में करवा लिया। दूसरी तरफ बिना स्थानांतरण प्रमाणपत्र के बच्चों का नामांकन करना कहां तक सही ठहराया जा सकता है?
क्या कहना है अभिभावकों का
दूसरी तरफ अभिभावकों का कहना है कि लॉकडाउन में कई पैरेंट्स की कमाई का जरिया छिन गया। कई की नौकरी चली गई। लाखों अभिभावक अब महंगी फीस देने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में उनके पास अपने बच्चों को कम फीस वाले स्कूलों में पढ़ाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। कंकड़बाग के एक अभिभावक ब्रजेश कुमार ने बताया कि यह सही है कि स्कूल के कुछ महीनों की फीस बाकी है। लेकिन, स्कूल भी कोई रियायत नहीं दे रहे हैं। स्कूल चले नहीं, ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर कभी पढ़ाई हुई, कभी नहीं हुई। हमने अपने पैसे से ऑनलाइन पढ़ाई के लिए महंगा इंटरनेट कनेक्शन लिया। पर स्कूल हर तरह का चार्ज मांग रहे हैं। कंप्यूटर, लाइब्रेरी, बिल्डिंग मेंटनेंस और न जाने किस-किस तरह के चार्ज ले रहे हैं। कहते हैं पूरी फीस जमा करें, नहीं तो फाइनल रिजल्ट नहीं देंगे। ऐसे में हमारे पास दूसरे स्कूल में जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। एक और अभिभावक पारितोष झा का कहना है कि उनकी बच्ची के स्कूल में ECS फॉर्म भरवाया जा रहा है, यानी उनके खाते से फीस स्कूल के खाते में चली जाएगी। हमारी कमाई काफी कम हो गई है। खाते में कभी पैसे होते हैं, कभी नहीं। अगर आगे स्कूल बंद रहते हैं और उसके बाद भी फीस का पूरा पैसा स्कूल के खाते में चला जाता है तो क्या यह न्यायोचित है।
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