CAG की रिपोर्ट मंगलवार को विधानसभा के पटल पर रखी गई। इसमें 31 मार्च 2018 तक का प्रतिवेदन है। विभिन्न विभागों में DC बिल के लंबित होने से लेकर इफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से होने वाले नुकसान को भी सामने रखा गया है। बिहार में मेडिकल शिक्षा का हाल इस रिपोर्ट में देखें तो इसमें कई तरह की गड़बड़ियां पाई गईं। 2006-07 से 2016-17 के बीच कुल 12 मेडिकल कॉलेज का निर्माण शुरू किया गया लेकिन वर्ष 2018 तक सिर्फ दो ही मेडिकल कॉलेज शुरू हो सके।
CAG की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 2018 तक 61 नर्सिंग संस्थानों का निर्माण करने का लक्ष्य था लेकिन महज दो नर्सिंग संस्थानों का ही निर्माण हुआ। मेडिकल कॉलेज की सीटों को बढ़ाने के लिए सरकार ने प्रभावी प्रयास नहीं किए। मेडिकल शिक्षा के शिक्षण क्षेत्र में 6 से 56 प्रतिशत और गैर शिक्षण कर्मचारियों में 8 से 70 प्रतिशत की कमी पाई गई। पांच मेडिकल कॉलेज में MCI. की शर्तों के विरूद्ध 14 से 52 प्रतिशत के बीच शिक्षण घंटे की कमी रही। ऐसा इसलिए हुआ कि फैकल्टी की कमी थी।
पांच मेडिकल कॉलेजों राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय बेतिया, दंत चिकित्सा महाविद्यालय दरभंगा, IGIMS पटना, NMCH पटना, PMCH पटना, के नमूना जांच में उपकरणों की कमी 38 से 92 प्रतिशत के बीच पाR गई। मैन पावर की कमी की वजह से उपकरणों की मरम्मति नहीं होने से एक से नौ वर्षों से कई उपकरण बेकार होने की बात रिपोर्ट में कही गई है। मेडिकल कॉलेज के साथ ही साथ नर्सिंग स्कूल के छात्रों को मापदंडों के अनुसार 2013 से 18 के दौरान ग्रामीण इंटर्नशिप के अवसर नहीं मिले।
रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य के क्षेत्र में 2013 से 18 तक के योजना मद अंतर्गत केवल 75 फीसदी राशि खर्च की गई। वर्ष 2012 से 17 के दौरान बेतिया और पटना के चार नमूना जांचित कॉलेजों में सुरक्षा, सफाई और हाउसकीपिंग के लिए 78.47 करोड़ का अधिक भुगतान हुआ। संबंधित एजेंसी ने 21.41 करोड़ अधिक सेन्टेज की मांग की। कंसल्टेंट को 75.35 करोड़ का भुगतान किया गया। इस वजह से राजकोष की हानि हुई। DC बिल 7.30 करोड़ रुपए लंबित है।
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