नगर निकाय चुनाव स्थगित होने और विवाद खड़ा होने के बाद राज्य में सवर्ण राजनीति तेज हो गई है। जैसे ही सवाल जाति पर होने लगा है वैसे ही कांग्रेस अनकम्फर्टेबल हो गई है! कांग्रेस का कहना है कि सर्वणों, मुसलमानों और दलितों के खिलाफ बड़ी साजिश हो रही है। पिछड़ी जाति, अतिपिछड़ी जाति के नेताओं को सरकार में ज्यादा तरजीह मिल रही है। वहीं सवर्णों को कम तरजीह मिल रही है।
कांग्रेस का कहना है कि पिछड़ा, अतिपिछड़ा के सवाल पर अभी चुनाव पर रोक लगाई गई है। पिछड़ों के वोट बैंक पर लालू प्रसाद और अति पिछड़ों के वोट बैंक पर नीतीश कुमार का कब्जा माना जाता है। नीतीश सरकार ने तो कई पिछड़ी जातियों को अतिपिछड़ा श्रेणी में शामिल भी करवाया।
सवर्ण, दलित और अल्पसंख्यक, राजनीति के हाशिए पर
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा है कि, 'मौजूदा दौर में सवर्ण, दलित और अल्पसंख्यक, राजनीति के हाशिए पर हैं। नीतीश मंत्रिमंडल में महज एक ब्राह्मण, एक भूमिहार और दो राजपूत को जगह मिली है, जबकि बिहार की कुल आबादी में सवर्णों की हिस्सेदारी 20 फीसदी है। पिछड़े समाज के लोग आगे आएं, इसके लिए सवर्ण, दलित और अल्पसंख्यक समाज के लोग अपना हिस्सा देने को हमेशा तैयार रहते हैं।
कांग्रेस पिछड़े और अतिपिछड़े वर्गों के आरक्षण का पूर्ण समर्थन करती है और इसी के साथ हर उस साजिश का विरोध करती है जिसके जरिए सवर्णों, दलितों और अल्पसंख्यकों को राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा है।' आसित सवर्णों को वोट बैंक को भी बता रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि 20 फीसदी आबादी के हिसाब से मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी नहीं मिल रही है।
मामला कोर्ट में लेकिन आरक्षण को लेकर बड़ी साजिश
आसित ने कहा कि स्थानीय नगर निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहले से व्यवस्था दी है कि एक आयोग का गठन होगा। यह आयोग रिपोर्ट देगा कि कौन सा वर्ग कितना पिछड़ा है और जाति-वर्ग को लेकर उसे आरक्षण देना चाहिए कि नहीं। इस तरह का आयोग बिहार में नहीं बना, इसलिए यह मामला कोर्ट में है लेकिन आरक्षण को लेकर बड़ी साजिश चल रही है।
बता दें कांग्रेस के प्रदेश स्तर के नेताओं की तब एक न चली जब एक मुस्लिम विधायक आफाक आलम और एक दलित विधायक मुरारी गौतम को कांग्रेस आलाकमान ने ही मंत्रिमंडल में भेजा दिया था। अब कांग्रेस के प्रदेश स्तर के शीर्ष पदों पर गौर करें तो मदन मोहन झा- प्रदेश अध्यक्ष- ब्राह्मण, अजीत शर्मा- विधायक दल के नेता- भूमिहार, अखिलेश सिंह- चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष- भूमिहार, समीर कुमार सिंह- कार्यकारी अध्यक्ष- राजपूत, श्याम सुंदर सिंह धीरज- कार्यकारी अध्यक्ष- भूमिहार, कौकब कादरी- कार्यकारी अध्यक्ष- मुसलमान, अशोक राम- कार्यकारी अध्यक्ष- दलित हैं। इससे प्रदेश स्तर के नेता भी संतुष्ट नहीं थे।
बिहार कांग्रेस में सवर्णों का बोलबोला
वहीं बिहार कांग्रेस में सवर्णों का बोलबोला रहा है। कांग्रेस से तीन एमएलसी हैं मदन मोहन झा, प्रेमचंद मिश्रा और समीर कुमार सिंह। इनमें से मदन मोहन झा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से आते हैं और प्रेमचंद मिश्रा व समीर कुमार सिंह विधायक द्वारा चुने गए एमएलसी हैं। जब राज्य सभा भेजने की बारी आई तो कांग्रेस ने भूमिहार नेता अखिलेश सिंह को भेजा। विधान परिषद भेजने की बारी आई तो एक ब्राह्मण और एक राजपूत नेता को भेजा। विधायक दल का नेता बनाने की बारी आई तो एक भूमिहार नेता को यह पद दिया।
विधान सभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे में भी सवर्णों का बोलबाला
विधान सभा चुनाव 2020 में टिकट का बंटवारा कांग्रेस के अंदर किस तरह से हुआ वह भी देख लीजिए। महागठबंधन में कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए 70 सीटें मिलीं। इनमें से 15 सीटें रिजर्व थीं। बची 55 सीटों में से 33 सीट पर सवर्ण उम्मदवारों को टिकट दिए गए। 55 सीटों की जाति खंगालें तो इसमें 12 भूमिहार, 11 राजपूत, 5 ब्राह्मण, 4 कायस्थ,12 मुस्लिम, 5 यादव, 2 कुर्मी, 1 कुशवाहा, 1 कानू, 2 कलवार को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। वहीं 22 सीट में यादव, मुस्लिम से लेकर अतिपिछड़ी, पिछड़ी जातियों को टिकट दिया गया।
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