6 साल से शराबबंदी वाले बिहार में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र से अधिक लोग शराब पीते हैं। यह हम नहीं, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट कह रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के 15 साल से ऊपर के 15.5% लोग शराब का सेवन करते हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों के 15.8% पुरुष शराब पीते हैं, जबकि शहरी इलाके के 14.0% पीते हैं। वहीं, 0.5% महिलाएं शहरी इलाकों में और 0.4% महिलाएं ग्रामीण इलाकों में शराब पीती हैं। हालांकि, 2015-16 की तुलना में बिहार में शराब पीने वाले पुरुषों में कमी आई है। उस वक्त करीब 28% पुरुष शराब पीते थे। वहीं, देशभर में 18.8% पुरुष और 1.3% महिलाएं पीतीं हैं।
बता दें, भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने 2019-21 नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 दो पार्ट में कराया था। बिहार सहित 22 राज्यों की रिपोर्ट पहले चरण में आई, जो साल 2019-20 के बीच की है। बाकी 14 राज्यों का सर्वे दूसरे चरण (2020-21) में हुआ था, जिसकी रिपोर्ट हाल में आई है।
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झारखंड हिंदी पट्टी में सबसे आगे, जम्मू-कश्मीर पीछे
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, हिंदी भाषी राज्यों में झारखंड में सबसे अधिक 35% पुरुष और 6.1 % महिलाएं शराब पीती हैं। दूसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ (34.8% पुरुष और 5.0% महिलाएं) है। वहीं, जम्मू-कश्मीर में सबसे कम (8.8% पुरुष और 0.2% महिलाएं) लोग पी रहे हैं। वहीं, महाराष्ट्र में 13.9% पुरुष और 0.4% महिलाएं पीती हैं।
बंदी में भी जहरीली शराब ने ली हैं जानें
बिहार में 5 अप्रैल 2016 को शराबबंदी हुई थी। इसके बावजूद समय-समय पर जहरीली शराब पीने से 157 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इसको लेकर विपक्ष से लेकर बुद्धिजीवी संगठनों तक ने सरकार की आलोचना की है। इससे गुस्साए CM नीतीश कुमार ने एक बार कहा था, 'जो अनाब-शनाप पीएगा, वो मरेगा ही।'
सुप्रीम कोर्ट की आलोचना पर सरकार ने कानून में किया संशोधन
कोर्ट पर बढ़ते दबाव के कारण सुप्रीम कोर्ट भी बिहार सरकार की आलोचना कर चुकी है। एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था, 'यह चिंता का विषय है। बिहार सरकार बगैर कोई विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून लेकर आई और पटना हाईकोर्ट के 16 न्यायाधीश जमानत अर्जियों का निस्तारण करने में जुटे हुए हैं।' इस फटकार के बाद सरकार ने इसी मार्च में विधानसभा में संशोधन कानून पास कराया। जिसमें कहा गया है कि पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर 2 से 5 हजार रुपए के बीच जुर्माना देना होगा और उन्हें थाने से ही छोड़ा जा सकता है। अगर कोई जुर्माना नहीं देता है तो उसे एक महीने की जेल होगी। पहले यह जुर्माना 50 हजार रुपए था।
वहीं, अगर कोई व्यक्ति बार-बार शराब पीकर पकड़ा जाता है तो ऐसी स्थिति में उस पर न तो जुर्माना लगाया जाएगा, ना ही एक महीने की जेल होगी। बल्कि उस पर सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस प्रकार के मामलों की सुनवाई के लिए एक साल तक का समय तय किया गया है।
बता दें, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पहले बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने 1977 में शराबबंदी लागू की थी, लेकिन ये पाबंदी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी थी।
आंकड़ों में समझिए शराबबंदी
एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक शराबबंदी कानून के तहत 2.03 लाख मामले सामने आए। इनमें 3 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। 1.08 लाख मामलों का ट्रायल शुरू हो गया है। 94,639 मामलों का ट्रायल शुरू होना बाकी है। दिसंबर तक सिर्फ 1,636 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था। इनमें से 1,019 मामलों में आरोपियों को सजा हुई। जबकि, 610 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं।
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