लालू यादव ने राजनीति में हर मौके को इवेंट के तौर पर लिया है। चाहे जेल जाने की बात हो या जमानत मिलने की बात। हर मौके पर खुद को इस तरह से प्रदर्शित करते थे कि उन पर इसका कोई असर नहीं है, वो ही सबकुछ है। चारा घोटाले के आरोपी लालू यादव के इन प्रदर्शनों को कोर्ट ने गंभीरता से लिया और इसे गलत भी माना था। देवघर कोषागार मामले की सुनवाई CBI स्पेशल कोर्ट के जज शिवपाल सिंह की अदालत में चल रही थी। कोर्ट लालू यादव को दोषी करार दे चुकी थी। अब सजा का ऐलान होना बाकी रह गया था। लालू यादव ने पेशी के दौरान जज शिवपाल सिंह से कहा था हुजूर, बेल दे दिया जाए। इस जज ने कहा, क्या आपको इसलिए जमानत दे दिया जाए कि आप हाथी पर चढ़कर बाहर निकले और पूरे शहर घूमें।
जमानत को भी प्रदर्शन की चीज बना देते थे लालू
जज ने आगे कहा कि आप जमानत को भी प्रदर्शन की चीज बना देते हैं। जज के इतना कहने पर लालू यादव चुप हो गए। बात उस समय की है, जब चारा घोटाला के मामले में लालू यादव पटना के बेऊर जेल में थे। बेल के बाद 9 जनवरी 1999 को जब वे जेल बाहर निकले तो हाथी पर बैठकर अपने निवास स्थान पहुंचे थे। हजारों समर्थक खुशी में झूमते और नारेबाजी करते हुए उनके साथ चल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि लालू यादव जेल से ना निकलकर, बल्कि कोई जंग जीतकर आ रहे हों।
विरोधियों को दिखाना चाहते थे दम
हाथी पर चढ़कर लालू यादव ने अपने विरोधियों को यह दिखाना चाहा कि उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता है। उन्होंने दोगुना शक्ति के साथ यह प्रदर्शन किया। इस दौरान लालू यादव ने अपने समर्थकों के बीच अपने को मजबूत रहने का भी संदेश दिया था। उस समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी। तत्कालीन जिला प्रशासन लालू यादव के ही इशारे पर ही काम कर रहा था। इस प्रदर्शन पर किसी ने कोई पाबंदी नहीं लगाई।
गरीब रथ पर सवार होकर कोर्ट में गए थे पेश होने
2002 में जब लालू यादव चारा घोटाला मामले में रांची के स्पेशल कोर्ट में पेश होने के लिए आए थे, तब का नजारा भी दिलचस्प था। लालू यादव गरीब रथ पर सवार होकर गए थे और उनके साथ करीब एक हजार गाड़ियों का काफिला गया था। जिस तरफ से यह काफिला गुजरता, उस तरफ कुछ देर तक धूल से कुछ दिखाई नहीं देता था। अगल-बगल वाले साइड होकर खड़े हो जाते थे। इतना सब कुछ करने बावजूद कोर्ट ने तब लालू यादव को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा दिया था।
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