बिहार के बगहा में 7 इंसानों को शिकार बनाने वाले आदमखोर बाघ को मारने के लिए स्पेशल टीम बनाई गई थी। बिहार में यह पहली बार था, जब किसी बाघ को मारा गया। अब तक बाघ को ट्रेंकुलाइज करके पकड़ने के मामले ही सामने आए हैं। इस बार यह प्रयास फेल हो गया, जिसके बाद जान से मारने का निर्णय लिया गया। हालांकि ऐसे खतरनाक बाघ को मारना भी आसान नहीं है। जानिए कैसे बाघ हो जाते हैं आदमखोर और कब दिया जाता है मारने का आदेश...
चोट के कारण भी हो जाते हैं आदमखोर
पटना जू के पूर्व वेटनरी अफसर डॉ अजीत कुमार बताते हैं कि बाघों के आदमखोर होने का बड़ा कारण जंगल की कमी या फिर भोजन की कमी होना है। सिर्फ बुजुर्ग या जख्मी बाघ ही आदमखोर नहीं होते हैं, युवा बाघ भी आदमखोर हो जाते हैं। कभी-कभी बाघों को शारीरिक तौर पर कोई दिक्कत होने से भी वह आदमखोर हो जाते हैं। शारीरिक तौर पर दिक्कत होने जैसे दांत टूट जाने या फिर लगने के कारण भी बाघ नरभक्षी हो जाते हैं। वह जंगल से बाहर आते हैं और आस पास के इलाकों में इंसानों और मवेशियों को ही अपना शिकार बनाने लगते हैं।
वेटनरी अफसरों भी नहीं देखे ऐसे हालात
डॉ अजीत बताते हैं कि वह काफी समय तक पटना जू में वेटनरी ऑफिसर के पद पर रहे हैं, पूरी सर्विस जानवरों के बीच रही। पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्था में प्रभारी निदेशक के पद से रिटायर हुए लेकिन पूरी लाइफ में ऐसा नहीं देखा जब बिहार में कोई बाघ इतना खतरनाक हो गया हो जिसे मारने का आदेश जारी करना पड़े। अब तक ऐसे जानवरों को ट्रेंकुलाइज करके ही पकड़ा गया है। इंसानों के शिकार का ऐसा पहला मामला आया है। बगहा में ही बाघ होते हैं, लेकिन वहां भी ऐसी घटनाएं नहीं हुई। पहली बार ऐसा हुआ है जब आदमखोर बाघ को मारने के लिए पूरी टीम तैयार की जा रही है।
बगहा में बाघ के आदमखोर होने की वजह
वेटनरी एक्सपर्ट डॉ अजीत कुमार का कहना है कि बगहा में बाघ भटक गया है और कहीं न कहीं से उसे कोई शारीरिक समस्या हुई होगी। वह जिस तरह से इंसानों को शिकार बना रहा है, इससे यह साफ जान पड़ता है कि वह जंगल में शिकार की कमी के कारण ही इंसानों और मवेशियों की तलाश में आबादी की तरफ आया है। जब बाघों को इंसान के शिकार की आदत लगती है तो वह फिर इंसानों को अपना शिकार बनाते हैं।
जानिए शिकार के लिए क्या है कानून
पटना जू के पूर्व वेटनरी अफसर डॉ अजत के साथ वाइल्ड लाइफ से जुड़े समीर सिन्हा बताते हैं कि अगर कोई जानवर आदमखोर हो जाता है तो उसका शिकार किया जा सकता है, लेकिन शिकार भी हर कोई नहीं कर सकता है। इसके लिए भी कानून बनाया गया है। वाइल्ड लाइफ के जानवर को मारने का आदेश चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन देता है। इस कानून का उल्लेख वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11(1) में विस्तृत रूप से किया गया है।
इसके लिए हर राज्य में एक चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन तैनात किया जाता है। चीफ लाइफ वार्डन के आदेश के बाद ही किसी जानवर को मारा जा सकता है। शिकार करने के लिए भी पूरी वाजिब वजह होनी चाहिए, सबसे पहले यह बताना जरूरी होता है कि जानवर का शिकार क्यों जरूरी है। अगर चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को लगता है कि जानवर इंसानों के जीवन पर खतरा बन गया है, ऐसे आदमखोर जानवरों के खतरनाक होने के वाजिब कारण के साथ संबंधित जानवर को मारने का आदेश दिया जाता है।
वन विभाग के फेल होने पर शिकार का आदेश
जब भी कोई जानवर खतरनाक होता है, वह इंसानों का शिकार करने लगता है। ऐसे जानवरों को पहले वन विभाग पकड़ने या फिर उन्हें ट्रेंकुलाइज करने का प्रयास करता है। वन विभाग जब ऐसे जानवरों को पकड़ने या फिर उन्हें ट्रेंकुलाइज करने में फेल हो जाता है तो वाइल्ड लाइफ टीम से मदद की मांग करता है। बगहा में भी वन विभाग की बहुत कोशिश हुई, कई दिनाें तक यह प्रयास किया गया कि आदमखोर बाघ को पकड़ लिया जाए।
इसके लिए शिकार भी रखा गया और पूरी व्यवस्था की गई लेकिन वन विभाग की सक्रियता के बाद भी बाघ इंसानों काे शिकार बनाता रहा। वन विभाग के फेल होने के बाद अब उसे मारने की इजाजत दी गई है। ऐसा कानून में भी है कि जब वन विभाग की टीम फेल होती है तो चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन से आदेश लिया जाता है।
ट्रेंकुलाइज से सुधारा जा सकता है आदमखोर
पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान के प्रभारी पद से रिटायर हुए और लंबे समय तक वाइल्ड लाइफ पर काम करने वाले डॉक्टर अजीत बताते हैं कि ऐसे आदमखोर बाघों को भी सामान्य बाघों की तरह बनाया जा सकता है। जब बाघ या फिर तेंदुआ आदमखोर हो जाते हैं तो उन्हें पहले जाल में पकड़ने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए पहले विशेष प्रकार की ट्रेंकुलाइजर गन से ट्रेंकुलाइज करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए पटना जू में विशेष टीम है।
इस टीम में डॉक्टर के साथ अन्य एक्सपर्ट होते हैं जो विशेष गन के माध्यम से जानवर को बेहोश करते हैं। ऐसे खतरनाक बाघ को बेहोश करने के बाद उन्हें कुछ दिन अलग रखा जाता है। इसके बाद उनके अंदर सुधार हो जाता है, फिर चिड़िया घर में भी एडाप्ट कर दिया जाता है। ऐसे बाघों को सुधार के बाद जंगल भी छोड़ा जा सकता है। अब तक बिहार में ऐसे ही बाघों या तेंदुआ को कंट्रोल किया जाता रहा है। ट्रेंकुलाइज की व्यवस्था से जानवरों के साथ उनके खतरे से बचाया जा सकता है।
इंसानों को बाघ और तेंदुए से खतरा
वाइल्फ लाइफ के लिए काम करने वाले समीर सिन्हा बताते हैं कि बाघ और तेंदुआ दोनों मानव जीवन के लिए आदतन नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे जानवर जिनके मानव जीवन पर खतरा होने की पुष्टि हो जाती है उन्हें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 11 में प्रदान किए गए वैधानिक प्रावधानों के अनुसार मारा जा सकता है। बाघ के साथ-साथ तेंदुए को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची में रखा गया है। उक्त अधिनियम की धारा 9 (1) के तहत शिकार के खिलाफ उच्चतम वैधानिक संरक्षण है। इसलिए, ऐसी प्रजातियों को मारा जा सकता है यदि वे मानव जीवन के लिए खतरनाक हो जाते हैं। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 11 (1) (ए) के तहत, अकेले राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन को ऐसे जानवरों के शिकार की अनुमति देने का अधिकार है।
शिकार के लिए क्षेत्र में किया जाता है अलर्ट
ऐसे बाघों की जो नरभक्षी हो गए हैं। उनके शिकार के बाद पूरी निगरानी की जाती है। दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पग इम्प्रेशन पैड बनाया जाता है। मारने वाली जगहों के पास कैमरा ट्रैप स्थापित किया जाता है।
इसके अलाख क्षेत्र के लोगों को पूरी तरह से अलर्ट किया जाता है। जिलाधिकारी की तरफ से क्षेत्र में अलर्ट किया जाता है, सुरक्षा को लेकर भी पूरी तरह से व्यवस्था बनाई जाती है। संबंधित बाघ को आइडेंटीफाइ करना होता है उसके बाद टीम उस पर अटैक करती है। शिकार से पहले यह सुनिश्चित करना होता है कि बाघ वही है जो इंसानों पर खतरा बना है।
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