नवरात्रि के तीसरे दिन शनिवार को मां चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा हो रही है। ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं कटिहार के बड़ी दुर्गा मंदिर के बारे में। मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है, लेकिन प्रतिमा की स्थापना 1980 में की गई। इससे पूर्व पिंडी रूप देवी की पूजा होती थी। इस मंदिर का निर्माण कटरा (जम्मू) के माता वैष्णो देवी की गुफा के तर्ज पर किया गया है। यह मंदिर लगभग 12 बीघा में फैला हुआ है। नवरात्रि में यहां मेले का आयोजन होता है।
इस मेले में स्थानीय व्यवसायी से लेकर बिहार, बंगाल, झारखंड, जयपुर, राजस्थान सहित अन्य राज्यों के व्यवसायी पहुंचते हैं। इस मंदिर से कई रोचक और पौराणिक कथाएं जुड़ी है। मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य अजय मिश्रा बताते हैं कि बड़ी दुर्गा स्थान का राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक महत्व है। यहां देश के कोने-कोने से और विदेशों से भी श्रद्धालु यहां माता के दर्शन कर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
कारीगर ने बेच दी थी किसी दूसरे को प्रतिमा
मंदिर कमेटी के सचिव ओम प्रकाश महतो 1969 से मंदिर समिति से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि जिले के व्यवसायी दामोदर अग्रवाल द्वारा 1 अगस्त 1980 को जयपुर के सफेद संगमरमर से निर्मित माता की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। दामोदर अग्रवाल जब जयपुर में कारीगर के पास पहुंचे तो उन्होंने सफेद संगमरमर का पत्थर प्रतिमा निर्माण के लिए खरीद कर कारीगर को दिया था। प्रतिमा निर्माण के बाद उसकी आलौकिक छटा सब को लुभाने लगी। कारीगर ने अधिक पैसे की लालच में आकर वह प्रतिमा किसी अन्य को बेच दी और दूसरे सफेद पत्थर से प्रतिमा का निर्माण करने लगा। उसी दौरान एक बड़ी दुर्घटना घटी। कारीगर के घर में पारिवारिक सदस्य बीमार होकर काल के गाल में समाने लगे। कारीगर को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने वह बेची हुई प्रतिमा मंगवाई और उसे दामोदर अग्रवाल को सुपुर्द किया। तब जाकर कारीगर के परिवार की स्थिति संभली।
दावा- जब गूंगे बच्चे ने मंदिर में लगाया जयकारा
मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य अजय मिश्रा सहित कमेटी के कार्यकारिणी सदस्य अनुपम सुमन कहते हैं कि 2007 में पूजा करने के दौरान मंदिर में जयकारा लगते ही अचानक रोने की आवाज आने लगी। देखा गया कि एक बच्चा जोर-जोर से जयकारा लगा रहा था और उसके माता-पिता भी जयकारा लगाकर रो रहे थे। पूछने पर पता चला कि वे लोग जिले के ही काढ़ागोला निवासी हैं और पिछले कई वर्षों से अपने बीमार दिव्यांग पुत्र जो गूंगा था, उसके इलाज के लिए वह दर-दर भटक रहे थे। पर वह बच्चा माता के मंदिर में आकर दर्शन मात्र से जयकारा लगाने लगा।
नवरात्रि और लक्ष्मी पूजा पर लगता है भव्य मेला
यह मंदिर लगभग 12 बीघा में फैला हुआ है। एक बीघा में मंदिर परिसर हैं। मंदिर के बाहरी परिसर में विवाह भवन, सामुदायिक भवन, रजत जयंती पार्क, सेवा सदन और मंदिर कार्यालय स्थित है। सेवा सदन के निचले हिस्से में 20 कमरों का निर्माण किया गया है, जिसे व्यवसायिक प्रयोग में लाया जा रहा है। इससे प्राप्त आमदनी मंदिर कमेटी के पास जमा होती है। इसके अलावा शेष हिस्से में प्रतिवर्ष नवरात्र के मौके पर एक बड़ा और भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यह भव्य मेला नवरात्रि से प्रारंभ होकर लक्ष्मी पूजा तक आयोजित होता है।
दक्षिण भारतीय कारीगरों द्वारा 8 करोड़ की लागत से मंदिर का हो रहा जीर्णोद्धार
जिले का या ऐतिहासिक मंदिर का जीर्णोद्धार 8 करोड़ की लागत से हो रहा है, जो अब अंतिम चरण में है। दक्षिण भारतीय कारीगरों द्वारा निर्मित पूजा कमिटी के सदस्य प्रभाकर झा एवं सचिव ओम प्रकाश महतो ने बताया कि पुराने मंदिर की जगह माता का गर्भ गृह बिना हटाए, नए मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। इसका शुभारंभ वर्ष 2008 से ही कर दिया गया था। प्रारंभिक दौर में दो करोड़ 51 लाख का अनुमानित बजट था लेकिन अंतिम रूप देते-देते लगभग 8 करोड़ रुपए की लागत आ रही है।
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