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पटना हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या बढ़कर 1,78,835 हो गई है। यह आंकड़ा दिसंबर 2020 तक का है। हर महीने लंबित मुकदमों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। इनका निपटारा कब तक होगा किसी को नहीं मालूम। राज्य के लोग काफी उम्मीदें लेकर हाईकोर्ट की शरण में आते तो हैं लेकिन वर्षों इंतजार के बाद भी उन्हें न्याय नसीब नहीं हो पाता है। आश्चर्य की बात है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई तो जल्दी हो जाती है लेकिन जो मामले सालों से लंबित है उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। वकील अपने मुवक्किल को न्याय दिलाने के लिए हर तरह की तरकीब लगाते हैं पर उन्हें सफलता नहीं मिलती है। 20-25 साल से भी अधिक समय से लंबित हजारों मामले हैं जो अभी भी सुनवाई की राह देख रहे हैं।
जितने जजों की नियुक्ति उससे ज्यादा रिटायर हो जाते
जानकारों का मानना है कि जजों की भारी कमी इसका मुख्य कारण है। पटना हाईकोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 53 है जिसमें 40 स्थायी और 13 एडिशनल हैं। मौजूदा समय में केवल 21 स्थायी जज ही कार्यरत हैं। इनके 32 पद रिक्त पड़े हुए हैं जिनमें 13 एडिशनल भी शामिल हैं। जजों के रिटायर होने का सिलसिला चलता ही रहता है लेकिन बहाली की प्रक्रिया इतनी जटिल और पेचीदा है कि जबतक जितनी संख्या में नए जजों की नियुक्ति होती है तबतक उतनी या उससे अधिक जज रिटायर हो जाते हैं और स्थिति जस की तस बनी रहती है।
कोलेजियम के दो सदस्य भी रिटायर हो गए
तत्कालीन चीफ जस्टिस AP शाही ने 2019 के अगस्त में वकील कोटे और न्यायिक सेवा कोटे से जजों की नियुक्ति के लिए नामों की शिफारिश की थी, लेकिन बात नहीं बनी और सुप्रीम कोर्ट ने सारे नाम लौटा दिए। बहाली तो नहीं हुई पर कई जज रिटायर हो गए। मौजूदा चीफ जस्टिस संजय करोल से उम्मीद थी कि वे लंबित मुकदमों की बाढ़ को देखते हुए बहाली का प्रयास करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोलेजियम के दो सदस्य जस्टिस दिनेश कुमार सिंह और जस्टिस हेमंत कुमार श्रीवास्तव भी रिटायर हो गए लेकिन जजों की बहाली के लिए नामों का चयन नहीं हो सका। पिछले दिनों न्यायिक सेवा कोटे से चार और वकील कोटे से 11 नामों की शिफारिश किए जाने की बात कही जा रही है, लेकिन कबतक उनकी बहाली होगी इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।
निचली अदालतों की स्थिति भी ठीक नहीं
हाईकोर्ट की तरह निचली अदालतों की स्थिति भी ठीक नहीं है। राज्य की निचली अदालतों में भी 30 लाख से अधिक मुकदमे लंबित है। वहां भी न्यायिक अधिकारियों की भारी कमी है। केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी खामोश हैं। पूछने पर बिहार के यह सांसद कहते हैं कि इस मुद्दे पर बात नहीं करूंगा, जबकि वे पटना हाई कोर्ट के ही वकील रह चुके हैं। यहीं से यात्रा प्रारंभ कर वे देश के कानून मंत्री बने, इसलिए यहां के वकीलों को उनसे काफी उम्मीद थी।
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