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उत्पाद विभाग (स्टेट एक्साइज) की ज्यूडिशियल कस्टडी में मरने वाले 32 वर्षीय राजेश पांडेय का शव PMCH के पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा तो उसकी पीठ पर पिटाई के दर्जनों लाल निशान देख लोग भौंचक थे। लेकिन इस पोस्टमार्टम के लिए प्रतिनियुक्त एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को उसकी पीठ दिखी ही नहीं। मजिस्ट्रेट को उसका पैर भी नहीं दिखा। जिसपर रस्सी के गहरे निशान, उसे उलटा टांगकर पीटे जाने की गवाही दे रहे थे। शव किस स्थिति में पाया गया, यह लाश मिलने की जगह के बारे में लिखने का कॉलम होता है, लेकिन मजिस्ट्रेट ने यहां लिखा है - “शव चीत (चित) लेटा हुआ।”
उत्पाद विभाग ने हिरासत से मौत की कहानी कुछ ऐसी सुनाई
मामले की गंभीरता को देखते हुए सोमवार को उत्पाद विभाग के ज्वाइंट सेक्रेटरी और कमिश्नर खुद जांच करने के लिए पटना कलेक्ट्रेट पहुंचे थे। दोनों ने अपने स्तर पर पूरे मामले की जांच करने के साथ ही फुलवारी शरीफ जेल सुपरिटेंडेंट से इसकी एक रिपोर्ट भी मांगी है। दूसरी तरफ पटना जिला उत्पाद विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर प्रहलाद भूषण ने अपने स्तर से इस केस की जांच और उसकी रिपोर्ट डीएम कुमार रवि को सौंप दी है।
असिस्टेंट कमिश्नर का कहना है कि उत्पाद विभाग की टीम किसी के साथ मारपीट नहीं करती है। टीम के एक सब इंस्पेक्टर ने 23 नवंबर की सुबह गायघाट गोलंबर के पास राजेश पांडेय को एक झोला के साथ पकड़ा था, जिसमें 15 लीटर चुलाई शराब था। वो शराब पीने के लिए लाया था या फिर बेचने के लिए यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन टीम ने उसके साथ मारपीट नहीं की। हमारे पास उसी सब इंस्पेक्टर के द्वारा ताड़ी के साथ पकड़ा गया दूसरा अभियुक्त भी है, जो इस मामले का गवाह है। हमारे सामने परिवार ने भी माना है कि राजेश की किडनी और लीवर डैमेज थी। हम शराब नीति का पालन कर रहे हैं।
झूठ बोल रहे हैं वो, भाई शराब पीता था पर बेचता नहीं था
असिस्टेंट कमिश्नर की बात को मृतक राजेश पांडेय की बहन किरण ने सीधे तौर पर खारिज कर दिया है। किरण की मानें तो उन्हें किसी भी बड़े अधिकारी से मिलने नहीं दिया गया था। उसने माना कि उनका भाई शराब पीता था, लेकिन बेचा नहीं करता था। खुद को बचाने के लिए उत्पाद विभाग की टीम शराब बेचने का झूठा आरोप लगा रही है। भाई ने कभी दवा नहीं खाई थी। उसके किडनी और लीवर में कहीं कोई खराबी नहीं था। जब उन्हें PMCH में एडमिट कराया गया तो इसकी जानकारी हमें या परिवार के किसी सदस्य को नहीं दी गई थी। किसी तरह से शनिवार की शाम को पता चला, जबकि उन्हें शुक्रवार को ही एडमिट कराया गया था। इलाज के दौरान अस्पताल में मौजूद पुलिसवालों का व्यवहार अजीब था। पूछने पर कह रहे थे कि भाई की किडनी और लीवर खराब हो गई है। जबकि वहां की नर्स ने बताया था कि उनके नसों में प्रॉब्लम हो गई है। उत्पाद विभाग के लोग अपने बचाव में झूठी कहानी सुना रहे हैं।
कागजी प्रक्रिया में चल रहा मैनेजमेंट समझिए
इस मामले में सबसे बड़ा खेल कागजी कार्रवाई के जरिए किया गया है। इस खेल का आधार राजेश पांडेय की मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट है, जिसे तैयार किया है पटना सदर के एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट अरविंद कुमार ने। इनकी रिपोर्ट दैनिक भास्कर के पास मौजूद है। अपनी रिपोर्ट में एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ने सीधे तौर पर लिख दिया - शव चीत लेटा हुआ और आंख-मुंह बंद। शरीर पर किसी प्रकार का जख्म या चोट का निशान दिखाई नहीं पड़ा। कारण में इलाज के दौरान मौत लिख दिया। गवाह के तौर पर फुलवारी शरीफ जेल से आए दो कक्षपाल अशोक कुमार और राज कुमार का हवाला देते हुए राजेश को बीमार बता अपनी रिपोर्ट तैयार कर दी। ऐसा लगता है कि उन्होंने राजेश के शरीर को सिर्फ सामने से देखा। पलट कर शरीर के पिछले हिस्से या दोनों पैरों पर मौजूद जख्म के निशानों को, या तो उन्होंने देखा ही नहीं या फिर देख कर अनजान बन गए।
दैनिक भास्कर एक बार फिर आपको तस्वीर के जरिए राजेश पांडेय के पैर के जख्म और पीठ पर उभरे लाल दागों को दिखाएगा।
इस मामले में बड़ा सवाल फुलवारी शरीफ जेल प्रशासन के ऊपर भी उठा है। दैनिक भास्कर के पास जेल सुपरिटेंडेंट का एक लेटर भी है। इसमें राजेश को बीमार बताया गया। सवाल ये है कि अगर वो वाकई में बीमार था तो जेल में इंट्री लेने से पहले 24 नवंबर को ही उसका मेडिकल टेस्ट क्यों नहीं कराया गया? 25 और 26 नवंबर तक उसे जेल में ही क्यों रखा? इलाज के लिए 27 नवंबर को ही पीएमसीएच क्यों भेजा? राजेश पांडेय की लाश का पोस्टमार्टम रविवार को ही करा दिया गया था, अभी इसकी रिपोर्ट आनी बाकी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही मौत के असली कारणों का पता चलेगा।
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