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'महामहिम' नहीं बनना चाहते रविशंकर प्रसाद!:मंत्री पद गया तो राज्यपाल बनने की चर्चा तेज; लेकिन खुश होने की बजाय चुप हैं, पॉलिटिक्स में राज्यपाल मतलब करियर द एंड

पटना2 वर्ष पहलेलेखक: शालिनी सिंह
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रविशंकर प्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री। - Dainik Bhaskar
रविशंकर प्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री।

7 जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल के फेरबदल में भाजपा के कई दिग्गजों को कैबिनेट से बाहर कर दिया गया। बिहार से इसमें सबसे बड़ा नाम है रविशंकर प्रसाद का। दिल्ली से पटना तक उन्हें राज्यपाल बनाए जाने की चर्चा तेज है। उनके कुछ समर्थक मंत्रिमंडल से बाहर होने के पीछे इसी प्लानिंग की बात कह रहे हैं। समर्थकों की इस कहानी को मजबूत आधार मिल रहा थारवचंद गहलोत के राज्यपाल बनने से। वहीं, कुछ समर्थक अब भी ये बात नहीं पचा पा रहे हैं कि उनके जैसे प्रभावी नेता को मंत्रिमंडल से ड्रॉप कर दिया गया है।

राज्यपाल बनने का मतलब, राजनीति करियर का द इंड

इन चर्चाओं से रविशंकर प्रसाद बहुत खुश नहीं बताए जा रहे हैं, क्योंकि एक राजनेता के लिए राज्यपाल बनने का मतलब है कि राजनीतिक सक्रियता का द इंड। रविशंकर प्रसाद को लंबे इंतजार के बाद पटना साहिब की सीट से 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला है। इससे पहले वो हर बार राज्यसभा के जरिए मंत्री पद पाते रहे। पटना साहिब की सीट, बिहार भाजपा के नेताओं के लिए बेहद खास है, क्योंकि ये सीट भाजपा के लिए बिहार की सबसे सेफ सीट मानी जाती है।

रविशंकर प्रसाद के राज्यपाल बनते ही उनके 3 साल की बची सांसदी भी चली जाएगी और पटना साहिब की सीट से दावेदारी भी। बिहार की राजनीति तेजी से बदल रही है और माना यह जा रहा है कि जल्द भाजपा सत्ता की कमान अपने हाथों में ले सकती है। ऐसे में बिहार भाजपा के दिग्गजों को बिहार में भी बड़ा पद मिलने का मौका मिलेगा। ऐसे समय में चाहे सुशील मोदी हों या फिर रविशंकर प्रसाद। कोई भी सक्रिय राजनीति से अलग नहीं होना चाहेगा।

6 जुलाई को पारा लीगल वालेंटियर काे सम्मानित करते तात्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह।
6 जुलाई को पारा लीगल वालेंटियर काे सम्मानित करते तात्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह।

राष्ट्रीय संगठन में मिल सकता है महत्वपूर्ण पद

माना जा रहा है कि रविशंकर प्रसाद को आनेवाले दिनों में पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी जा सकती है। राष्ट्रीय महासचिव या उपाध्यक्ष जैसे किसी पद का जिम्मा दिया जा सकता है। इसके अलावा पार्टी संगठन की तरफ से किसी राज्य का प्रभारी बनाया जा सकता है। इससे पहले मंत्रिमंडल से बाहर हुए दोनों नेता फिलहाल यही कर रहे हैं। राजीव प्रताप रूडी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वहीं, राधामोहन सिंह यूपी भाजपा के प्रभारी।

पहले भी कैबिनेट से ड्राप हुए हैं बिहार के नेता

यह पहला मौका नहीं है, जब बिहार के किसी प्रभावी मंत्री को ड्रॉप किया गया हो। इससे पहले 2019 में राधामोहन सिंह को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मंत्री नहीं बनाया गया। सिंह नरेन्द्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कृषि और किसान कल्याण मंत्री थे। राधामोहन सिंह के दोबारा मंत्री नहीं बनने के पीछे उनकी उम्र को वजह बताया गया, तब राधामोहन सिंह की उम्र 67 साल थी। 2017 में सारण के सांसद राजीव प्रताप रूडी से भी इस्तीफा ले लिया गया था। रूडी तब मोदी सरकार में कौशल विकास राज्य मंत्री थे।

राजीव प्रताप रूड़ी ने जब इस्तीफा दिया तो उनकी उम्र 55 साल थी। ये दोनों ही नेता एक समाज से आते हैं और वोट बैंक के लिहाज से इस समाज को नकार पाना संभव नहीं है। इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी ने ये फैसले लिए। मतलब यह है कि चौंकाना नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली का हिस्सा है। ऐसे में रविशंकर प्रसाद की कद के हिसाब से इस फैसले का आकलन करना जल्दबाजी है।

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