पूर्व कृषि मंत्री और आरजेडी के विधायक सुधाकर सिंह ने 17 जनवरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद के निर्देश पर आरजेडी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी द्वारा एक पेज के कारण बताओ नोटिस का जवाब पांच पन्नों में दिया है। भास्कर के पास जवाबी पत्र की कॉपी है।
पूरे पत्र को पढ़ें तो इसमें दिखता है कि सुधाकर सिंह ने बहुत बातें सीधे नहीं कहकर किसी बहाने से कही हैं। कई बातें उन्होंने सीधे-सीधे भी लिखी हैं। पत्र के सबसे अंत में उन्होंने स्पष्ट लिखा है- 'मैं पूरी मजबूती और दृढ़ संकल्प के साथ यह लड़ाई जीवन पर्यंत लड़ता रहूंगा।' जाहिर तौर पर सुधाकर सिंह ने किसानों की लड़ाई या आरजेडी की किसान नीति के बारे में ऐसा कहा है। सुधाकर के जवाब की पांच बड़ी बातें क्या-क्या हैं ये जानिए….
1. कोई रोक नहीं लगाई गई
पत्र के शुरू में उन्होंने कहा है कि उन्हें कारण बताओ नोटिस वाट्सऐप के जरिए 17 जनवरी 23 को प्राप्त हुआ। पत्र के प्रथम पैराग्राफ में नीतीश कुमार का जिक्र है। सुधाकर के टागरेट पर नीतीश कुमार और नीतीश कुमार की नीतियां रही हैं। सुधाकर लिखते हैं- आपके द्वारा भेजे गए नोटिस में यह बात रेखांकित नहीं की गई है कि मेरे द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संदर्भ में की गई किसी टिप्पणी से राजद के राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव का उल्लंघन हुआ है।
हालांकि मेरे किस बयान से इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया है, नोटिस में इसका जिक्र नहीं है। यह बात न सिर्फ त्रुटिपूर्ण एवं निराधार है, बल्कि प्रथम दृष्टया तार्किक भी प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि नीतीश कुमार जदयू के नेता हैं। राजद के राष्ट्रीय अधिवेशन में स्वाभाविक तौर पर किसी अन्य राजनीतिक दल या उसके सदस्य से संबंधित न कोई चर्चा हुई थी और न कोई प्रस्ताव पारित हुआ था।
साथ ही राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में राजद के किसी भी कार्यकर्ता को किसी अन्य दल के कार्यकर्ता पर टिप्पणी करने के लिए न तो मना किया गया था और न ही कोई रोक लगाई गई थी। इसकी पुष्टि राजद के राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव को देखकर की जा सकती है।
अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि जदयू नेता नीतीश कुमार से संबंधित मेरे किसी वक्तव्य से राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव की अवहेलना नहीं हुई है। यहां बता दें कि सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार की तुलना शिखंडी से की थी और बाद में कहा था कि यह एक फ्रेज है।
2. कैसे नीतीश ने कहा- जो विकास हुआ 2005 के बाद हुआ
सुधाकर सिंह ने याद दिलाया कि नीतीश कुमार के आरजेडी के विधायकों ही नहीं तेजस्वी यादव से कैसा व्यवहार किया। उन्होंने कहा- ‘जब 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंडी कानून को खत्म करने का प्रस्ताव विधान सभा में लाया तो राजद के विधायकों के नेतृत्व में कैसे जोरदार प्रतिरोध किया गया था। सदन का बहिर्गमन तक किया गया था। पुलिस कानून का विरोध करने पर सदन के भीतर और बाहर विधायकों को पुलिस द्वारा जबरदस्त पिटाई की गई। महिला विधायकों को भी घसीटकर पीटा । यही नहीं, महागठबंधन में एक साथ रहते हुए नीतीश कुमार द्वारा तेजस्वी यादव की उपस्थिति में सार्वजनिक मंच से ये कहना कि 2005 से पहले कुछ था क्या? जो विकास हुआ वो 2005 के बाद हुआ। उनका यह बार-बार कहना राजद के द्वारा किए गए विकास को नकारना राजद के कार्यकर्ताओं और मेरे जैसे कार्यकर्ताओं के लिए असहज की स्थिति पैदा करता है।'
3. जिस आश्वासन के साथ मंत्री बनाया उसका ये हश्र
सुधाकर सिंह ने जवाबी पत्र में साफ-साफ कहा कि मंत्री बनने की उनकी इच्छा नहीं थी। उन्होंने अफसरशाही को भी निशाने पर लिया है। लिखा है - 2022 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की नई सरकार बनायी गई थी। जिस सरकार में मुझे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा मेरी अनिच्छा के बावजूद मुझे कृषि मंत्री बनाने का फैसला इस आश्वासन के साथ लिया गया था कि राजद द्वारा घोषित नीतियों पर सहजता से कार्य करने का अवसर मिलेगा। लेकिन विभाग चलाने के दौरान विभाग में व्याप्त विसंगतियों एवं मंडी कानून पर बढ़ने की मेरी मंशा पर अधिकारियों के द्वारा लगातार अवरोध पैदा किया जाता रहा, जिसकी चर्चा कैबिनेट की बैठक के दौरान एवं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को समय-समय पर अवगत कराता रहा, जिसकी अंतिम परिणति के बारे में सर्वविदित है। 2 अक्टूबर को कृषि मंत्री से दिए गए इस्तीफे के बाद दिल्ली में 8 और 9 अक्टूबर को राजद राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के आर्थिक प्रस्ताव के पारा 6 में स्पष्ट रूप से मंडी कानून लागू करने एवं धान-गेहूं की खरीद में मल्टीपल एजेंसी करने की वचनबद्धता प्रकट की गई।
4. किस राजनैतिक दबाव में मेरा बचाव नहीं किया गया?
इस जवाबी पत्र की सबसे बड़ी बात यह कि सुधाकर सिंह ने बहुत अफसोस जताया है कि पार्टी ने उनका साथ नहीं दिया, बल्कि उल्टे उन पर मुख्य घटक दल यानी जेडीयू के प्रवक्ताओं और मंत्रियों द्वारा व्यक्तिगत और चारित्रिक हमले हुए। उन्होंने लिखा- 'हद से हद मुझे लगा कि कृषि के मुद्दे पर सार्थक बहस के लिए सरकार तैयार हो जाएगी या मौन साध लेगी। ऐसी परिस्थिति में मुझे पार्टी के नेताओं से अपेक्षा थी कि पार्टी की नीतियों एवं सिद्धांत पर आधारित मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्यों का बचाव किया जाएगा। लेकिन मुझे अफसोस के साथ यहां कहना पड़ रहा है कि आखिर किस राजनैतिक दबाव में मेरा बचाव नहीं किया गया जबकि मुझे पार्टी की तरफ से कम-से-कम नैतिक समर्थन की उम्मीद तो थी ही। इसके उलट मेरे विचारों और सिद्धांत जो स्पष्टतः राजद की ही नीति और सिद्धांत हैं।'
5. यह A to Z की नीति नहीं
सुधाकर सिंह ने पार्टी की A to Z की नीति पर सवाल उठाया है। कहा है- 'मुझे अकेले चिन्हित कर नोटिस भेजना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है और यह हमारी पार्टी के A to Z की नीति की पुष्टि भी नहीं करता।' यहां बता दें कि सुधाकर सिंह जाति से राजपूत हैं।
हालांकि सुधाकर सिंह ने किसी का नाम नहीं लिया है। लेकिन सभी जानते हैं कि राजद के अंदर प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पर सवाल उठाने वाले, हिटलर कहने वाले नेता कौन हैं ! शिवानंद तिवारी, संजय यादव, सुनील सिंह कौन-कौन सवाल उठा चुका है! सुधाकर ने लिखा- 'बिहार में न्याय, विकास सौहार्द और समानता के लिए दशकों से चल रही हमारी पार्टी के संघर्ष में मुझे और मेहनत करने की जरूरत है तो आपके किसी भी मार्गदर्शन के लिए सदैव तैयार हूं।'
इसका जवाब कौन देगा?
सुधाकर सिंह का जवाबी पत्र कई बातें साफ-साफ कहता है। पत्र कहता है कि आरजेडी को किसानों से जुड़े घोषणा पत्र की बातें दमदार तरीके से नीतीश कुमार के सामने रखने और मनवाने की जरूरत है। आरजेडी बड़ी पार्टी है और उसे अपनी नीतियों को ताकतवर तरीके से लागू करवाना चाहिए। लेकिन नीतीश कुमार तो मानते ही नहीं कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के राज में बिहार का विकास हुआ। वे तो आरजेडी के विधायकों को विधान सभा मे पिटवाने वाले नेता हैं! सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने पार्टी की A to Z की नीति पर सवाल उठाया है। इशारा राजपूत की तरफ है। इसके पीछे का लोकतांत्रिक सवाल यह है कि जब-जब बयान देने वाले किसी यादव, ब्राह्मण या अन्य नेता को नोटिस क्यों नहीं?
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