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बिहार के जाने-माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. उत्पलकांत सिंह का गुरुवार को निधन हो गया। वे 71 साल के थे। राज्य में उनकी गिनती शीर्ष शिशु रोग विशेषज्ञों में होती थी। उनका जन्म पटना के बिहटा के अमहरा में हुआ था। पटना के राजेंद्रनगर में (रोड नंबर 8) में उनका मकान है। उनके निधन पर राज्यभर में शोक की लहर छा गई है।
अंतिम संस्कार पटना में
डॉ. उत्पल कांत लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे। दिल्ली के मेदांता अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। शुक्रवार को 12 बजे दिन में उनका पार्थिव शरीर पटना हवाई अड्डे पर आएगा। अंतिम संस्कार पटना में ही होगा। वैसे अंत्येष्टि पैतृक गांव अमहरा में भी होने की संभावना है।
पैतृक गांव अमहरा में मातम
डॉ. उत्पलकांत सिंह के आकस्मिक निधन की खबर जैसे ही उनके पैतृक गांव अमहरा में पहुंची लोग स्तब्ध रह गए। डॉक्टर साहब का व्यक्तित्व ऐसा था कि उन्हें जानने वाला इसे बहुत बड़ा सामाजिक नुकसान और राज्य के लिए अपूरणीय क्षति बता रहा था। डॉ. उत्पलकांत के पिता का नाम कामता प्रसाद सिंह और मां का नाम सीता देवी था। पिता महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1942 में बिहटा हुई ट्रेन लूट की घटना की अगुआई की थी। उनके दो बड़े भाई कुमुद कांत सिंह व डॉ. नीलकांत सिंह थे।उनकी पत्नी का नाम डॉ. रीता सिंह है। उनके तीन बच्चों में सबसे बड़ी बेटी डॉ. शिवानी है। जबकि दो बेटे सिद्धार्थ सौरभ व श्रीहर्ष सिंह है। कांग्रेस नेता सिद्धार्थ सौरभ अभी बिक्रम से विधायक हैं।
PMCH के बाद इंग्लैंड और अमेरिका में भी की पढ़ाई
डॉ. उत्पल कांत ने पटना के PMCH से MBBS की पढ़ाई की थी। बाद में वे पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए। उन्होंने लंदन में MD, PHD और FRCP की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने अमेरिका से FIAP और FCCP की डिग्री ली। काम का क्षेत्र उन्होंने अपने देश को ही चुना। वे NMCH में प्रोफेसर बने, बाद में उन्होंने VRS ले लिया और पटना में ही प्रैक्टिस करने लगे। जल्द ही लोग उनकी चिकित्सा के कायल हो गए। बिहार के कोने-कोने से लोग अपने बच्चों का इलाज कराने उनके पास पहुंचने लगे।
बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे
शिशु रोग में कई प्रकार के रिसर्च कर एशिया में अपना परचम फहराने वाले डॉ. उत्पलकांत सिंह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। अभी के छात्र महज इसी बात से उसका अंदाजा लगा सकते है कि उस जमाने में अच्छे-खासे परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद वो रात में इसलिये मच्छरदानी नहीं लगाकर पढ़ते थे कि इससे आराम मिलेगा और उन्हें नींद आ जाएगी। पड़ोसियों ने बताया कि डॉ. साहब के पिता स्वतंत्रता सेनानी कामता बाबू के निधन के बाद उनके विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए उनकी मां सीता देवी और बाबा रामनंदन प्रसाद सिंह उन्हें पढ़ाने का जिम्मा उठाया। अपने कठिन परिश्रम की बदौलत डॉ. उत्पलकांत ने बेहतरीन उपाधि प्राप्त कर पूरे क्षेत्र का नाम रौशन किया था।
बच्चों को इलाज के दौरान टोटके के रूप में चिकोटी काटना था मशहूर
डॉ. उत्पलकांत के ही गांव के डॉ. उदय राज ने बताया कि डॉ. कांत सभी से बहुत ही आत्मीय ढंग से मिलते थे। उनके इलाज से शिशु रोग में काफी फायदा मिलता था। किसी भी बच्चे की जांच के अंत में टोटके के रूप में चिकोटी काटना उनकी आदत थी। वे युवाओं को पुराने लोगों की कहानी सुनाकर उन्हें प्रेरित करते थे। सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे।
मुख्यमंत्री ने शोक जताया
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डॉ. उत्पल कांत के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है। अपने शोक संदेश में उन्होंने कहा है कि उत्पल कांत प्रख्यात शिशु रोग विशेषज्ञ थे। उनसे हमारा व्यक्तिगत संबंध था। उनके निधन से मुझे काफी दुख पहुंचा है। उनका निधन चिकित्सकीय क्षेत्र के लिए अपूर्णनीय क्षति है। डॉ. उत्पल के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए पूर्व मंत्री व विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि यह हमारे लिए आत्मिक कष्टप्रद है। ये न सिर्फ प्रदेश के गौरव थे अपितु हमारे पारिवारिक सदस्य थे। उन्होंने कहा कि इनका निधन चिकित्सा क्षेत्र एवं निजी तौर पर हमारे लिए भी अपूरणीय क्षति है। डॉ. कांत के निधन पर समाजसेवी और और सामाजिक संस्थान सोपान के सचिव सूरज सिन्हा ने गहरी संवेदना प्रकट की है। भाजपा के वरीय नेता एवं पूर्व सांसद आर के सिन्हा ने शोक प्रकट करते हुए कहा कि उनके निधन से देश ने स्वस्थ भारत की कल्पना को साबित करने में लगे अपना एक साथी खो दिया है। बच्चे देश का भविष्य हैं और बच्चों के रोगों को ठीक करने में उन्हें महारत हासिल थी। बच्चों के लिए वे भगवान थे।
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