बिहार में एक बार फिर जातीय जनगणना का मुद्दा गर्म हो रहा है। RJD इस मसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मिल सकता है। पार्टी की मांग है कि CM इसी सत्र यानी शीतकालीन सत्र में अपने बलबूते जातीय जनगणना कराने की घोषणा करें।
RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा, 'पिछड़ा विरोधी केन्द्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना की मांग ठुकराने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक नहीं बुलाई है। हमारी मांग के अनुसार बिहार सरकार अपने खर्चे से जातीय जनगणना कराए। इसी सत्र में इसकी घोषणा भी की जाए। इस मांग को लेकर एक बार फिर मुख्यमंत्री से मुलाकात करूंगा।'
बता दें, नीतीश कुमार सहित तेजस्वी यादव और अन्य दलों के नेता पहले ही इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिल चुके हैं, लेकिन केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर जातीय जनगणना कराने से इनकार कर दिया है। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय भी संसद में इस पर बोल चुके हैं कि केन्द्र सरकार जातीय जनगणना नहीं कराएगी।
लालू प्रसाद तो इसको लेकर पहले ही काफी अग्रेसिव हैं
पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जातीय जनगणना पर इतने अग्रेसिव हैं कि अगस्त में उन्होंने यहां तक कह दिया था, 'अगर 2021 जनगणना में जातियों की गणना नहीं होगी तो बिहार के अलावा देश के सभी पिछड़े-अतिपिछड़ों के साथ दलित और अल्पसंख्यक भी गणना का बहिष्कार कर सकते हैं। जनगणना के जिन आंकड़ों से देश की बहुसंख्यक आबादी का भला नहीं होगा तो फिर जानवरों की गणना वाले आंकड़ों का क्या हम आचार डालेंगे?
जातीय जनगणना क्यों जरूरी, इसे स्पष्ट कर चुका है विपक्ष
जातीय जनगणना कराने की जरूरत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी समझते हैं, लेकिन केन्द्र सरकार के इनकार के बाद राज्य सरकार अपने स्तर से इसे कराएगी कि नहीं, यह अब तक उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है।
RJD स्पष्ट कर चुका है कि जातीय जनगणना कराने से राज्य में किस जाति की कितनी आबादी है, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है? यह साफ-साफ सामने आ पाएगा और उसी अनुरूप आरक्षण दिया जा सकेगा। योजनाएं भी उसी आधार पर बनाई जाएंगी। बड़ी बात यह है कि इससे पिछड़ी, अतिपिछड़ी जातियों को मिल रहे आरक्षण का दायरा भी बढ़ सकता है।
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