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2020 में कोरोना ने हर तरह से लोगों को मारा। जो कोरोना से मरे, उन्हें दिल में बसाए रखने वाले अब तिल-तिल मर रहे। जो लॉकडाउन से आर्थिक परेशानी में फंसे, वह घुट-घुट कर जी रहे हैं। लेकिन, बिहार में तो 2021 में अलग ही तरह का दौर सामने आया दिख रहा है। छोटी-सी बात पर सुसाइड के केस आ रहे हैं। एक बार नहीं, बार-बार।
ब्रेकअप-एकतरफा प्यार जैसे केस में टूट रहा यूथ
भास्कर ने बिहार में इस साल हुईं आत्महत्याओं की केस स्टडी शुरू की तो शुरुआती 20 दिनों के अंदर 16 केस सामने आए। बिहार में अमूमन आत्महत्या के केस को परिवार भी छिपाता है और पुलिस भी तब तक नहीं एक्टिव होती, जब तक प्रचार न हो जाए। इसके बावजूद 16 केस सामने आए हैं। इसमें जमुई में पुलिस की थ्योरी में कई खामियों के बावजूद प्रेमी-प्रेमिका की ट्रैक पर मिली लाशों को आत्महत्या के रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। इस केस को छोड़ दें तो बाकी सारे केस साफ-साफ सुसाइड हैं। कैंसर से परेशान शादीशुदा महिला के आत्मघाती कदम के साथ आर्थिक तंगी से तंग लोगों की सुसाइड के मामले भी हैं।
मुजफ्फरपुर, लखीसराय और गया में प्रेम-प्रसंग के कारण कुल चार ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया। इनमें गया का केस तो लड़की के साथ वीडियो कॉल करते हुए सुसाइड के कारण चर्चा में रहा, जबकि पटना के फुलवारी में एक लड़के ने ब्रेकअप के सदमे में सुसाइड कर लिया। बेगूसराय और भागलपुर में आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या की बात आई, जबकि मधेपुरा में भी एक सुसाइड के पीछे कुछ ऐसा ही कारण बताया गया। पारिवारिक विवाद में आत्महत्या के दो मामले हैं। इनमें बेगूसराय में भावज की हत्या के बाद भैंसुर की आत्महत्या सुर्खियों में रहा तो सीतामढ़ी के युवक का पत्नी से झंझट के बाद पटना में सुसाइड करना लोगों की समझ से परे रहा। छेड़खानी से तंग सुसाइड के मामले इस साल भी सामने आ चुके हैं। दिसंबर में भी ऐसा मामला सामने आया था।
IIM अहमदाबाद में बिहार की बेटी की सुसाइड भी चर्चा में
मुजफ्फरपुर की होनहार बेटी दृष्टि ने IIM अहमदाबाद में सुसाइड कर लिया था। इस हफ्ते यह घटना भले बिहार में उतनी चर्चित नहीं रही, लेकिन गुजरात से दिल्ली तक इस घटना की चर्चा तेज रही। बड़े संस्थानों में पढ़ने वाले होनहार युवाओं की सुसाइड पर मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज कुमार कहते हैं कि "हरेक का केस अलग होता है, लेकिन सबसे बड़ी वजह परिवार में बढ़ रही दूरियां हैं। मन के उथलपुथल को शेयर करने वाला जिनकी जिंदगी में नहीं, वह खतरे में हैं। ऐसे में परिवार के हर सदस्य की एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी बनती है। कई बार छोटी परेशानियों पर भी लोग बड़ा कदम उठा लेते हैं, क्योंकि उन्हें यह बताने वाला ही कोई नहीं होता कि फलां परेशानी का समाधान बहुत मुश्किल नहीं है।
" भास्कर की केस स्टडी में कुछ केस ऐसे भी सामने आए, जिनमें सुसाइड के बाद भी परिजनों को वजह की भनक नहीं लगी। डॉक्टर ऐसे केस में काफी हद तक परिवार को जिम्मेदार मानते हैं।"
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