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बिहार में दही-चूड़ा भोज के जरिये नये राजनीतिक समीकरणों को गढ़ने की परंपरा इस बार टूट रही है। सियासी गलियारों में मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा और गुड़ की मिठास नहीं होगी। राजद ना तो इस बार पार्टी कार्यालय में और ना ही राबड़ी देवी आवास, 10 सर्कुलर रोड में दही-चूड़ा भोज का आयोजन करने जा रहा है। हालांकि मकर संक्रांति को लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से लालू प्रसाद ने संदेश जारी किया है, जिसमें उन्होंने विधायकों और पार्टी नेताओं को गरीबों को दही-चूड़ा खिलाने का निर्देश दिया है। इसी निर्देश के अनुसार लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अपने आवास पर दही-चूड़ा भोज का आयोजन किया।
करतब दिखाने वाले आये, घुड़सवारी भी हुई
तेज प्रताप यादव के आवास पर हुए आयोजन में कार्यकर्ताओं का भरपूर मनोरंजन हुआ। पहले गरीबों को दही-चूड़ा और तिलकुट खिलाया गया। इसमें बच्चों ने अच्छी संख्या में भाग लिया। इस मौके पर करतब दिखाने वाले भी पहुंचे थे। कई तरह के करतब दिखाकर मौजूद लोगों का मनोरंजन किया। फिर तेजप्रताप ने घुड़सवारी शुरू की तो कैमरा उनके पीछे घूमने लगा।
कोरोना बना वजह
राजद के साथ ही सत्ताधारी पार्टी जदयू ने भी इस बार मकर संक्रांति पर भोज नहीं करने की बात कही है। दोनों ही पार्टियों ने भोज आयोजित नहीं करने की वजह कोरोना को बताया है। जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने तो औपचारिक रूप से संदेश जारी कर कार्यकर्ताओं को इसकी जानकारी है। वहीं राजद ने चुप रहकर यह संदेश दे दिया है कि इस बार मकर संक्रांति पर भोज नहीं होगा।
लालू प्रसाद ने की थी शुरुआत
बिहार में दही-चूड़ा भोज की शुरुआत लालू प्रसाद ने 1994-95 में की थी। तब वह मुख्यमंत्री थे। लालू प्रसाद ने आम लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए दही-चूड़ा भोज का आयोजन शुरू किया था। इसकी खूब चर्चा हुई और फिर ये राजद की परंपरा बन गई। कुछ दिनों बाद पटना में संक्रांति पर हर साल दो दिन का आयोजन होने लगा। एक दिन नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए और अगले दिन झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए। लालू अपने आवास से सटे झुग्गियों के लोगों को खुद से परोसकर खिलाते। इसके बाद जदयू में भी इसकी परंपरा शुरू हुई। जदयू के पूर्व अध्यक्ष वशिष्ठ नारायाण सिंह ने अपने कार्यकाल में इसकी शुरुआत की। रामविलास पासवान, रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं ने तो इसे दिल्ली तक इसे पहुंचा दिया।
खूब हुई है दही-चूड़ा पर सियासत
बिहार में दही-चूड़ा भोज महज एक आयोजन नहीं रहा, बल्कि आनेवाले दिनों में बिहार की सियासत किस करवट बैठेगी, इसके संकेत भी दे जाती रही है। साल 2017 में मकर संक्रांति के मौके पर नीतीश कुमार को लालू प्रसाद ने दही का टीका लगाकर जदयू-राजद में सब ठीक होने के संकेत दिये थे। यह वह दौर था, जब सूबे में महागठबंधन की सरकार थी और दोनों ही पार्टियों के बीच तनातनी की खबरें आम थीं। हालांकि लालू का ये टोटका लंबे समय तक काम नहीं आया और महागठबंधन आखिरकार टूट गया, लेकिन फिर भी तब लालू ने जो संकेत दिये, वो उस वक्त की परिस्थियों को साफ कर गया था। इसी तरह हर बार संक्रांति का भोज बिहार में नये राजनीतिक समीकरणों को देकर जाती रही है, लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
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