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मैगरा में शुक्रवार को जानकी वल्लभ शास्त्री की जयंती मनाई गई। लोगों ने उनके पुश्तैनी घर में उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनका घर खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस महाकवि की जन्मभूमि में बहुत से उन्हें नहीं जानते हैं। मैगरा में उनके पोते नागेंद्र पाठक, राजीव नयन पाठक बताते हैं कि पिछले वर्ष स्वर्गीय जानकी वल्लभ स्मृति मंच बनाया गया है।
इसके जरिए लोगों को साहित्य के प्रति जागरूक किया जाएगा। इस दौरान उनकी रचनाओं को लोगों ने याद किया। कहा कि ऊपर-ऊपर ही पी जाते हैं, जो पीने वाले हैं। कहते- ऐसे ही जीते हैं, जो जीने वाले हैं। इस मेघगीत की पंक्तियां आज के व्यवहारिक जीवन में सटीक है। मैगरा में जन्मे इस महाकवि ने अपनी रचनात्मक संवेदना से साहित्य के साथ मानवीय जीवन के व्यवहारिक पक्ष को तटस्थ चित्रण किया है।
उनके साथ रहें बचपन के दोस्त भी नहीं है। पर परिजन बताते हैं कि वे धूर्त लोगों व झीनाझपटी की जिंदगी जीने वाले से काफी व्यथित हुए थे। उनका बचपन मैगरा में गुजरा। उन्होंने अपनी रचनाओं में भी इस क्षेत्र का वर्णन किया है। सुरहर नदी के प्राकृतिक सरोवर कालीदह के पास कविताएं लिखा करते थे। उनके करीबी बताते हैं कि उनका जीवन बचपन से ही संघर्ष व झंझावतों से जूझता रहा था। बचपन में मां का स्नेह नहीं मिला।
कई विधाओं में साहित्य सृजन की
मेघगीत, गाथा, तीर -तरंग रुप-अरुप, सुरसरी आदि काव्य रचनाओं के अलावा राधा महाकाव्य, देवी,जिंदगी, आदमी नामक नाटक, एक किरण सौ झाईंया, कालिदास, दो तिनकों का घोसला सहित कई विधाओं में साहित्य सृजन की। उन्हें उप्र सरकार द्वारा भारत-भारती सम्मान दिया गया।
खंडहर में तब्दील हो रहा आवास
इस महाकवि का जन्मभूमि में बहुत से उन्हें नहीं जानते हैं। उनका भवन खंडहर में तब्दील है।
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