जिला मुख्यालय में माप-तौल विभाग तो है, लेकिन यह आइसीयू में है। लिहाजा, धरातल पर इस विभाग का काम कहीं नहीं दिखता। विभाग द्वारा कभी- कभी बाटों की जांच सिर्फ खानापूर्ति के लिए की जाती है। लिहाजा सब्जी बाजार और मछली बाजार में नकली बाट तो छोड़िये, ईंट-पत्थर से तौल कर सामान बेचने का सिलसिला खुलेआम जारी है। नतीजतन, ग्राहकों को रोज चूना लगाया जा रहा है। कहा जाता है कि जिले में अधिकांश सब्जी व मछली दुकानों से एक किलो सामान मतलब, 800 ग्राम ही होता है।
ऐसे में ग्राहकों को आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है। इस विभाग में जिले में एकमात्र मापतौल निरीक्षक कार्यरत हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण मापतौल अधिनियम के अनुपालन में कठिनाई हो रही है। बताया जाता है कि जिस दिन साहब आते हैं उस दिन कार्यालय में भीड़ रहती है, हालांकि निरीक्षक कहते हैं कि जहां से शिकायत मिलती है, कार्रवाई में कोई देरी नहीं होती है। लेकिन ऐसी बात नहीं है। वास्तव में इस काम को अधिकारी अहमियत ही नहीं देते। यह कार्य संस्कृति में खामियों का मामला प्रतीत होता है।
छापेमारी नहीं होने से दुकानदारों का मनोबल बढ़ा
माप तौल विभाग के जरिये छापेमारी नहीं होने से बाटों का सत्यापन नहीं हो रहा। छापेमारी नहीं होने के कारण दुकानदारों का मनोबल बढ़ा रहता है। दुकानदार उपभोक्ताओं का शोषण करने से बाज नहीं आते हैं। उनका कहना है कि सब कुछ मैनेज है। कई बार ग्राहक जब कम माप तोल की शिकायत करते हैं तो दुकानदार उनके साथ मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। इस तरह की बात शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर देखने को मिलती है। मजबूरी में लोग दुकानदारों के पास उपलब्ध वटखरे पर ही भरोसा करने को बाध्य होते हैं। यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक वेटिंग मशीन में भी कई लोग जानबूझकर गड़बड़ी कर उसी से तौलने की कार्रवाई करते हैं।
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