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जहरीला धुआं उगलने वाले ईट भट्टों को सील किया जाएगा। इसकी तैयारी खनन विभाग कर रहा है। जिले में कई ऐसे पुराने चिमनी भट्ठा है। जिसने जिग जैक सिस्टम नहीं अपनाया गया है। जबकि पूर्व में सभी ईट भट्ठा संचालकों को निर्देश दिया गया था कि जितने भी पुराने चिमनी भट्ठा है। उसे बदलकर जिग-जैग सिस्टम अपनाते हुए चिमनी भट्ठा का संचालन करें। इसके बाद भी दर्जनों ऐसे चिमनी ईट भट्ठा संचालक हैं, जो जिग जैग सिस्टम नहीं अपनाया है।
सरकार के निर्देश के बावजूद भी जो ईंट भट्ठा संचालक जिग-जैग सिस्टम नहीं अपनाए हैं। वैसे ईट भट्ठा संचालकों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए ईट भट्ठा को सील किया जा सकता है। सरकार के द्वारा हर हाल में जहरीला धुआं उगलने वाले सभी ईट भट्ठा को बंद करने का आदेश दिया गया है।
इसके लिए ईट भट्ठा को बंद कराने के लिए खनन विभाग को पत्र भी दिया गया है।पत्र के आलोक में कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है। इसके अलावा बिहार प्रदूषण नियंत्रण पर्षद को भी करवाई के लिए लिखा गया है। जिसके बाद वैसे चिमनी भट्ठा जो जिग-जैग सिस्टम के तहत संचालन नहीं कर रहे हैं। उनपर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है।
कोताही बरतेंगे वालाें पर हाेगी कार्रवाई
सभी को जिग-जैग सिस्टम लगाने को कहा गया है। जो लोग इस तकनीक को नहीं अपनाएंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। कुछ ईंट भट्टा संचालक ऐसे भी हैं। जो सरकार का पैसा रखे हुए हैं। सरकार का पैसा रखने वाले इन सभी ईट भट्ठा के संचालक के खिलाफ नीलाम वाद पत्र दाखिल किया गया है।
गौरांग कृष्ण, जिला खनन पदाधिकारी
जिले में कुल 59 ईट भट्ठा किए जा रहे हैं संचालित
जिला खनन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले में कुल 59 ईट भट्ठा संचालित है। जिसमें 30 ईट भट्ठा संचालकों ने जिग जैग सिस्टम को नहीं अपनाया है। जिन ईट भट्ठा ने जिग जैग सिस्टम नहीं अपनाया है। उन्हें सरकार से प्राप्त निर्देश के अनुसार ईंट भट्टा को सील करते हुए संचालक पर करवाई किया जाना है। पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और ईंट की गुणवत्ता को लेकर ईंट भट्ठों को जिग जैग तकनीक के साथ संचालित किये जाने की योजना सरकार की है। साथ ही इस तकनीक से ईंट तैयार करने में खर्च भी कम आएगा।
जिसका लाभ सीधे तौर पर आम लोग को भी मिलेगा। पुराने ढर्रे पर चल रहे ईंट भट्ठों में आमतौर पर ईंट पकाने में 25-30 टन कोयला खर्च होता है।नयी तकनीक से मात्र 16 टन में काम हो जाएगा। इसके अलावे जिग-जैग तकनीक के आने से जहां एक ओर साधारण ईंट भट्ठों में आमतौर पर ईंट पकाने के लिए छल्लियों में सीधी हवा दी जाती है।वहीं जिग-जैग में टेढ़ी मेढ़ी लाइन बना कर हवा दी जाती है। इससे लागत खर्च कम आयेगा। साथ ही ईंटों की गुणवत्ता भी अच्छी होगी।
इस नई तकनीक को अपनाने से वायू प्रदूषण में आएगी कमी
जिग-जैग सिस्टम में ईंट-भट्ठा की चिमनी ऊंचाई 125 फीट ऊंची हो जाती है। इससे ईट भट्ठा का चौड़ाई भी बढ़ जाती है और चिमनी भट्ठा के लंबाई में बदलाव होता है। इस बदलाव के बाद ईट भट्ठा से निकलने वाली जहरीली गैस को स्टोर किया जाता है,और काफी कम गैस का उत्सर्जन होता है।
बढ़ते वायू प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने सभी ईट भट्टों को जिग जैक सिस्टम अपनाने को आदेश दिया है। लेकिन बहुत से ईंट भट्टा अभी भी जिले में संचालित हो रहे हैं। जो इस सिस्टम को नहीं अपनाया है। इसके लिए विभागीय अधिकारी जिम्मेवार हैं। लेकिन जब सरकार का पत्र आया तो विभाग के लोग हरकत में आए हैं।
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