बिहार के सीतामढ़ी में 3 फीट के योगेंद्र और 3 फीट की पूजा शादी के बाद चर्चा में हैं। बारात में कंधे पर पहुंचा दूल्हा और गोद में आई दुल्हन अब अपनी गृहस्थी बसाएंगे। बिहार में ऐसे दूल्हा-दुल्हन चर्चा में रहते हैं। ऐसी शादियों के बाद हर किसी के मन में एक ही सवाल होता है, ऐसे दंपती के बच्चे कैसे होंगे।
बिहार में नाटापन की समस्या अधिक है। इस कारण से कई ऐसे इंसान सामान्य से काफी कम हो जाते हैं। उम्र तो बढ़ जाती है लेकिन हाइट बच्चों वाली ही होती है। सबसे पहले जानिए बिहार में ऐसे दूल्हा दुल्हन की रोचक कहानी पढ़िए….
कंधे पर आया दूल्हा, गोद में आई दुल्हन
सीतामढ़ी में 3 फीट के योगेंद्र और 3 फीट की पूजा कुमारी की शादी हुई। सामान्य लोगों की बारात में योगेंद्र को कंधे पर और पूजा को गोद में मंडप तक लाया गया। 21 साल की पूजा और 32 साल के योगेंद्र की लंबाई 3 साल के सामान्य बच्चे बच्ची की तरह है। काफी मशक्कत के बाद दोनों परिवारों ने रिश्ता किया। दोनों को लग रहा था कि जीवन साथी नहीं मिलेगा, लेकिन शादी के बाद लाेगाें को लगा कि जोड़ी आसमान में ही तय हो गई थी। दोनों की जोड़ी आस पास गांव के लोगों ने लगाई और शादी के बाद पूजा और योगेंद्र बिहार में काफी चर्चा में हैं।
36 इंच का दूल्हा और 34 इंच की दुल्हन
भागलपुर में मई 2022 में एक शादी खूब चर्चा में रही थी। चर्चा 36 इंच के दूल्हा और 34 इंच की दुल्हन को लेकर रही। ऐसे दूल्हा-दुल्हन पूरे बिहार में चर्चा में रहते हैं। भागलपुर के नवगछिया में हुई शादी में दूल्हा-दुल्हन की कद काठी देखने के लिए कई गांवों के लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। दोनों के वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए थे। अभिया बाजार की रहने वाली 24 साल की ममता 34 इंच की थी और मसारु के रहने वाले 36 साल के मुन्ना भारती की लंबाई भी 36 इंच से नहीं बढ़ पाई। दोनों शादी के बाद अपनी गृहस्थी बसाने में जुट गए हैं। ऐसे जोड़ों की शादियों का वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर वायरल होता है।
साढ़े 3 फीट के दूल्हे को मिली 3 फीट की दुल्हन
बिहार के डुमराव में 2017 में शादी का एक जोड़ा खूब सुर्खियों में आया था। दूल्हे की हाइट साढ़े 3 और दुल्हन की लंबाई 3 फीट थी। शादी में दूल्हा और दुल्हन काे गोद में लेकर मंडप में लाने वालों ने खूब वीडियो वायरल किया था। दोनों की शादी में खूब भीड़ लग गई थी। शादी में पहुंचा हर व्यक्ति दूल्हा-दुल्हन के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहा था। सामान्य दूल्हा-दुल्हन को देखने की अपेक्षा इस खास जोड़े को देखने वालों की काफी भीड़ रही। डुमराव के 30 साल के वरुण की लंबाई साढ़े 3 फीट थी और 3 साल की तलाश के बाद उन्हें 25 साल की आरती मिली, जिसकी लंबाई महज 3 फीट ही थी। ऐसे बहू और दामाद को लेकर दोनों परिवार के लोग काफी खुश थे।
भोजुपरी फिल्मों में मिला काम तो हुई शादी
साढ़े 3 फीट के वरुण 30 साल की उम्र में भी बच्चों की तरह दिखते थे। दाढ़ी मूंछ सब थी लेकिन समाज से छिपकर रहना पड़ता था। बच्चों से लेकर बड़े तक अजीब निगाह से देख रहे थे। शादी तो दूर पिता की साइकिल की दुकान पर भी काम करने में उन्हें मुंह छिपाना पड़ता था। घर वालों को लगता था कि अब शादी ही नहीं हाेगी, लेकिन 25 साल की उम्र में कद काठी से भोजपुरी फिल्मों में काम मिल गया। बौना होने की वजह से वरुण को 'चोर बनल नेता' और 'ललुआ चलल ससुराल' से पहचान मिल गई। इसके बाद 3 फीट की आरती के साथ उसकी शादी हो गई और आज दोनों काफी खुश हैं।
अब जानिए क्या है उम्र और लंबाई का औसत
3 साल के बच्चे की हाइट 3 फीट एक इंच होनी चाहिए। जबकि 3 साल की लड़की की हाइट 3 फीट होनी चाहिए। अगर लड़के की उम्र 4 साल है तो उसकी लंबाई 3 फीट 4 इंच होनी चाहिए जबकि 4 साल की लड़की की हाइट 3 फीट 3 इंच होनी चाहिए। एक्सपर्ट का कहना है कि अनुवंशिक मामलों के अलावा अगर बच्चों के पोषण और वजन को लेकर गार्जिंयन जागरूक रहें तो स्टंटिंग के बढ़ते मामलों पर काबू पाया जा सकता है।
जानिए ऐसे बच्चों को लेकर क्या है मेडिकल टर्म
पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की महिला एवं प्रसूति विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अनुपमा का कहना है कि बौनेपन को मेडिकल साइंस में एकांडोप्लेसिया बोलते हैं। ये ऑस्टोसोमल डॉमिनेंट बीमारी है। इसका जीन डॉमिनेंट मतलब ज्यादा प्रभावी होता है। अगर एक भी जीन है, तो बच्चे में असर दिखेगा।
अब अगर दो बौने की शादी करा दी जाए तो महज 25% ही सामान्य बच्चों की संभावना होती है। संभावना 50% ये होती कि बौना दंपती से होने वाली संतान भी बौने होंगे। इन 50% में बौनेपन के एक जीन होगा। इसके साथ ही 25% संभावना होती है कि ऐसी दंपती के बच्चे एकांडोप्लेसिया से तो पीड़ित ही होंगे साथ ही साथ उनके दोनों जीन भी डिफेक्टिव होंगे। ऐसे बच्चों का जीवन काफी कम दिनों का होता है। जन्म के साथ ही ऐसे बच्चों की मौत हो जाती है।
ज्यादातर मामले में म्यूटेशन बड़ा कारण
डॉ. अनुपमा बताती हैं कि बौनेपन का कारण म्यूटेशन भी हैं। बिहार में बौनेपन बड़ी समस्या है। इसमें लंबाई सामान्य से काफी कम हो जाती है। डॉ. अनुपमा का कहना है कि आंकड़े बताते हैं कि देश में 25 हजार से 40 हजार बच्चों में एक बच्चा बौना पाया जाता है। ऐसे माता-पिता का जीन बच्चों में पहुंचता है। माता-पिता के दो जीन बच्चों में आते हैं। इसमें से एक भी जीन बौनापन का आया तो बच्चा बौना ही पैदा होगा। ऐसे में म्यूटेशन के कारण ही जीन प्रभावित करता है।
बौनों की पीढ़ी में सामान्य बच्चों की गुंजाइश कम
डॉक्टरों का कहना है कि बौना दंपतियों की पीढ़ी भी बौनों वाली होती है। जीन का म्यूटेशन होता है, जिससे बौने के बच्चों की भी लंबाई माता-पिता की तरह कम होती है। महज 25% चांस सामान्य कद काठी वाले बच्चों को लेकर है। ज्यादातर संभावना है कि ऐसे दंपती से होने वाली संतान बौना ही होगी। खतरा 75% संतानों को लेकर होता है।
एक बौना एक सामान्य तो भी बच्चों को खतरा
डॉक्टर अनुपमा बताती है कि दूल्हा-दुल्हन में से कोई एक बौना और एक सामान्य है तो भी बच्चों को लेकर 75% खतरा रहता है। एक जीन भी बौना का आया तो बच्चा बौना होगा। ऐसे हालत में 25 से 50% संभावना बच्चों के बौना होने की होती है। माता और पिता के बच्चे में दो जीन आते हैं। इसमें से एक भी जीन बौना वाला बच्चों को बौना बना सकती है। ऐसे बौने दंपती की अगली पीढ़ी को लेकर ज्यादा संभावना होती है कि संतान भी बौना ही होती हैं। ऐसा भी जरूरी नहीं है कि जो बौना नहीं हैं, उनके बच्चे बौने नहीं होंगे। सामान्य माता-पिता की भी बौनी संतान जीन के म्यूटेशन से हो सकती है।
दो तरह के होते हैं बौना
न्यू गार्डिनर रोड हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट एवं इंड्रोकाइनोलॉजिस्ट डॉ. मनोज कुमार बताते हैं कि बौनापन के कई बड़े कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण अनुवांशिक है। क्रोमोजोनल असामान्यता के कारण ही बौनापन अधिक होता है। बौना दो तरह के होते हैं, एक जिसमें हाइट कम होती है। लेकिन शरीर के सभी अंग पूरी तरह से विकसित होते हैं। ऐसे में हारमोन सिस्टम भी ठीक होते हैं।
ऐसे भी बौना होते हैं जो शारीरिक रूप से होते ही हैं, इसके साथ मानसिक और हारमोन के मामले में भी कमजोर होते हैं। अगर बौना केवल लंबाई को लेकर है बाकी ऑर्गन सही हैं तो बच्चा होने की संभावना है, लेकिन जो बौना लंबाई के साथ साथ शरीर के अन्य ऑर्गन को लेकर प्रभावित हैं, उनकी संतान को लेकर बाधा होती है। ऐसे बौनों की शादी के बाद उनके क्रोमोजाेन की जांच हो जाए तो संतान को लेकर पता लगाया जा सकता है।
देश में नाटापन के टॉप 10 जिलों में बिहार के दो जिले
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक नाटापन में देश के टॉप 10 जिलों में बिहार के दो जिले शामिल हैं। इसमें सीतामढ़ी और शेखपुरा का नाम दर्ज है। राज्य में दोनों जिलों में 5 साल तक के बच्चों में नाटापन की समस्या अधिक देखने को मिली है। वहीं, अगर वजन के हिसाब से हाइट की बात करें तो अरवल, जहानाबाद और शिवहर में ऐसे बच्चों की संख्या अधिक है। सरकार बिहार में नाटापन की समस्या को लेकर कई योजना पर काम कर रही है, लेकिन आंकड़ों में तेजी से सुधार नहीं दिख रहा है। जिन बच्चों में दोनों जीन डिफेक्टिव होते हैं, उनकी लाइफ काफी कम होती है।
बिहार में नाटा बच्चों की भरमार
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों की बात करें तो बिहार में 2019-20 में 42.9 प्रतिशत बच्चों की हाइट उम्र के हिसाब से कम पाई गई है। यह सर्वे 5 वर्ष तक के बच्चों का किया गया है। शहरी क्षेत्र में ऐसे बच्चों की संख्या 36.8 प्रतिशत पाई गई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 43.9 प्रतिशत बच्चे नाटापन के शिकार पाए गए हैं। वर्ष 2015-16 में बिहार में 5 साल तक के 48.3 प्रतिशत बच्चे नाटापन के शिकार पाए गए थे। बिहार में समेकित बाल स्वास्थ्य सेवाएं के साथ यूनिसेफ और केयर काम कर रहा है। इसके साथ ही अन्य कई संस्थाएं राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रही हैं। इसके बाद भी बिहार में सुधार नहीं है, एक्सपर्ट का कहना है कि बिहार में स्टंटिंग बड़ी चुनौती है।
आर्थिक स्थिति बड़ा कारण
एक्सपर्ट का कहना है कि आर्थिक स्थिति स्टंटिंग का बड़ा कारण है। गांव से लेकर शहर तक ऐसे परिवारों की संख्या अधिक है जो बच्चों के वजन और हाइट को लेकर गंभीर नहीं हैं। भोजन में पोषण पदार्थों की कमी के बिहार में स्टंटिंग के मामले बढ़े हैं। डिलवरी के बाद 6 माह तक मां की डाइट ठीक होनी चाहिए और शिशु को सिर्फ मां का दूध ही दिया जाना चाहिए। इसके बाद 6 माह पर बच्चों को अनुपूरक आहार दिया जाना चाहिए। लेकिन सर्वे में भी ऐसी बातें सामने आई हैं जिसमें बच्चों को अनुपूरक आहार में कमी मिली है। राज्य में आंगनबाड़ी और आशा को पोषक क्षेत्र कहा जाता है, इस सेंटर पर व्यवस्था ठीक नहीं है। गांवों में आज भी खाने का मतलब सिर्फ पेट भरने तक ही सीमित है। इस कारण से खाने पर सबसे कम खर्च किया जाता है। बस पेट भरने के लिए खाना खाने से सेहत तो खराब होती ही है, इससे राज्य में स्टंटिंग के भी मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। नवजात की मॉनिटरिंग के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों पर वजन की व्यवस्था और खुराक के साथ सेहत की जांच की व्यवस्था बनाई गई है, लेकिन जागरूकता के अभाव में यहां जाने से लोग कतराते हैं। ऐसे में कुपोषण के शिकार बच्चे नाटापन की दंश पूरी उम्र झेलते हैं।
जानिए क्या है जीनोम क्रोमोसोम
डॉक्टरों का कहना है कि नारी के जीनोम में दो (XX) क्रोमोसोम होते हैं, जबकि नर का बनना एक्स के साथ जुड़े (Y) क्रोमोसोम के आधार पर तय होता है। यह (Y) क्रोमोसोम पिता से मिलता है, जबकि दो (XX) क्रोमोसोम माता से मिलते हैं। वाई क्रोमोसोम के इकलौते जीन के कारण भ्रूण में अंडकोश बनने की प्रक्रिया को कराता है। वह सॉक्स 9 कहलाने वाले एक अन्य जीन को एक्टिव कर देता है, हालांकि सॉक्स 9 लिंग निर्धारण नहीं करता है। लिंग का निर्धारण वाई और एक्स से ही होता है।
क्या बौनापन कोई बीमारी है ?
जवाब- नहीं, बौनापन कोई बीमारी नहीं है बल्कि ये बीमारी का एक लक्षण है। बिग बॉस के कंटेस्टेंट अब्दु रोजिक के उदाहरण से इसे समझते हैं– वे ग्रोथ हार्मोन की कमी से जूझ रहे हैं। उन्हें रिकेट्स है। इसे सूखा रोग भी कहते हैं, यह विटामिन डी की कमी की वजह से होता है। इसके साथ उन्हें हार्मोन डेफिशिएंसी भी है। इस वजह से उनकी फिजिकल ग्रोथ आम इंसान की तरह नहीं हो सकती है।
सवाल- बच्चे के जन्म से पहले, डिलीवरी के वक्त या बाद में ग्रोथ हार्मोन में कमी हो सकती है, ऐसा क्यों ?
जवाब- ऐसा पिट्यूटरी ग्लैंड या हाइपोथेलेमस डैमेज होने की वजह से हो सकता है
सवाल- पिट्यूटरी ग्लैंड या हाइपोथेलेमस डैमेज होने के बाद ग्रोथ हार्मोन में कमी के लक्षण जन्म के बाद कितने समय के अंदर नजर आने लग जाते हैं ?
जवाब- जन्म होने के 2 साल के अंदर इसके लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
सवाल- जिस ग्रोथ हार्मोन की कमी के कारण लोग बौने हो जाते हैं, उसके लक्षण क्या है ?
जवाब- ग्रोथ हार्मोन की कमी के लक्षण ये हैं
सवाल- अच्छा क्या बौनेपन का पता लगाने के लिए कोई टेस्ट भी होता है या नहीं ?
जवाब- बिल्कुल, इसके लिए टेस्ट होता है-
अब तक हमने बात की बौनेपन की समस्या पर, अब बात करते हैं, इसके इलाज पर-
सवाल- जिस ग्रोथ हार्मोन की वजह से बौनेपन की समस्या आती है, क्या उसका इलाज संभव है ?
जवाब- आर्टिफिशियल ग्रोथ हार्मोन के इंजेक्शन या रिकॉम्बिनेंट DNA टेक्नोलॉजी से कुछ हद तक इसका ट्रीटमेंट संभव है।
सवाल- जेनेटिक बौनेपन की समस्या का इलाज संभव है ?
जवाब- बीमारी जेनेटिक है या हार्मोनल इस हिसाब से कुछ हद तक इसका ट्रीटमेंट संभव है-
बहुत से नॉर्मल लोग इस स्टोरी को पढ़ रहे होंगे, उन्होंने कभी न कभी बौने लोगों का मजाक उड़ाया होगा, लेकिन क्या कभी अपने सोचा है कि बौने लोगों को भी कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। जैसे-
फिजिकल-
मेंटल -
अगली बार जब भी कम कद का कोई दिखे तो उस पर हंसने की जगह अपनी बौनी सोच की हाइट बढ़ाने की कोशिश जरूर करना
सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के बच्चे बौनेपन का शिकार
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