महागठबंधन की सरकार बनते ही बाहुबली आनंद मोहन को जेल से बाहर निकालने का वर्षों पुराना अभियान एक बार फिर तेज होने लगा है। उनके बाहर आने की बानगी भी अब दिखने लगी है। सत्ता में आते ही आनंद मोहन अपनी हनक का इस्तेमाल कर कोर्ट में पेशी के बहाने अपने घर पहुंच गए।
इतना ही नहीं उन्होंने सर्किट हाउस में पार्टी नेताओं के साथ अपना दरबार भी सजाया। बिना किसी भय के वे पूरे कार्यक्रम की तस्वीर भी क्लिक करवाते रहे।
समर्थक ने कहा- अब सरकार के हाथ में है आनंद मोहन को बाहर निकालना
सिस्टम का दोष है, आनंद मोहन निर्दोश हैं के बैनर तले अभियान चला रहे आनंद मोहन के समर्थकों का कहना है कि वे जेल में 14 साल काट चुके हैं। ऐसे में सरकार चाहे तो उन्हें बाहर निकाल सकती है। अब भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 55 और 57 में राज्य सरकारों को अधिकार दिया गया है कि वो किसी भी दोषी की सजा कम कर दे।
अब जान लीजिए, सजायाफ्ता कैदी को बाहर निकालने का क्या है कानूनी प्रावधान
हाईकोर्ट के वकील शांतनु कुमार ने बताया कि विधिवत अपनी सजा पूरा करने वाले कैदियों की रिहाई के लिए सरकार की तरफ से रेमिशन बोर्ड का गठन किया गया है। इसके अध्यक्ष गृह सचिव होंगे।
इसके अलावा विधि सचिव, जिला जज, आईजी और जेल आईजी सदस्य होते हैं। कैदी को छोड़ने और नहीं छोड़ने का अंतिम अधिकार इन्हीं का होता है। यहां आवेदन करने से पहले जेल IG कैदी के जेल में व्यवहार, उसके थाने से और सजा सुनाने वाले कोर्ट से रिपोर्ट मंगाते हैं। इन सब के आधार पर ही इन्हें रिहा करने का फैसला सुनाया जाता है।
डीएम जी. कृष्णैया हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन
5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर जिले में जिस भीड़ ने गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की पीट-पीट कर हत्या की थी, उसका नेतृत्व आनंद मोहन कर रहे थे। एक दिन पहले (4 दिसंबर 1994) मुजफ्फरपुर में आनंद मोहन की पार्टी (बिहार पीपुल्स पार्टी) के नेता रहे छोटन शुक्ला की हत्या हुई थी।
इस भीड़ में शामिल लोग छोटन शुक्ला के शव के साथ प्रदर्शन कर रहे थे। तभी मुजफ्फरपुर के रास्ते हाजीपुर में मीटिंग कर गोपालगंज जा रहे डीएम जी. कृष्णैया पर भीड़ ने खबड़ा गांव के पास हमला कर दिया। मॉब लिंचिंग और पुलिसकर्मियों की मौजूदगी के बीच डीएम को गोली मार दी गई।
निचली अदालत से फांसी की सजा को हाईकोर्ट ने उम्र कैद में बदला
गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या में निचली अदालत ने पूर्व सांसद आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी। बाद में हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया। फिर आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मगर राहत नहीं मिली। पूर्व सांसद आनंद मोहन 2007 से लगातार सहरसा जेल में हैं। 17 मई को उनकी 14 साल की सजा पूरी हो चुकी है।
31 साल पुराने मामले में पहले ही रिहा हो चुके हैं आनंद मोहन
पिछले महीने 31 साल पुराने एक मामले में बरी होने के बाद आनंद मोहन ने अपने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को गलत बताया था। उन्होंने कहा था कि जल्द सभी आरोपों से मुक्त होकर जेल से बाहर आ जाएंगे। आनंद मोहन आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं और पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से जेल में बंद हैं। ऐसे में बिना सरकार की मंसा के इनका जेल से बाहर आना इतना आसान भी नहीं होगा।
जानिए, कौन हैं आनंद मोहन
आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं। 80 के दशक में ही बिहार में आनंद मोहन बाहुबली नेता बन गए थे। उन पर कई मुकदमे भी दर्ज हुए। 1983 में वो पहली बार तीन महीने के लिए पहली बार जेल गए।
1990 के विधानसभा चुनाव में आनंद मोहन जनता दल के टिकट पर महिषी से चुनाव लड़े और कांग्रेस के लहतान चौधरी को 62 हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया। बाद के दिनों में वे जेल से भी चुनाव लड़े और जीते। इतना ही नहीं जेल से ही उन्होंने अपनी पत्नी लवली आनंद को विधायक और सांसद बनाया। फिलहाल उनके बेटे चेतन आनंद शिवहर से विधायक हैं।
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