'हमने लगातार सप्ताहभर से ज्यादा सोशल मीडिया पर ट्वीट किया। सरकार का ध्यान उधर नहीं गया, इस कारण सड़क पर उतरना पड़ा।'
'सर, 7 साल से सीटेट और 5 साल से बिहार टीईटी पास करके बैठी हूं। समय पर बहाली निकालने के लिए सोशल मीडिया पर कैंपेन भी चलाया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। महीनों आंदोलन भी चला।'
'कर्मचारी चयन आयोग बहाली निकालने के बाद भूल जाता है। परीक्षा कराने से लेकर रिजल्ट निकालने तक के लिए आंदोलन करना पड़ता है। एक बहाली में 7 साल लगता है।'
'पूरे देश में ग्रेजुएशन की डिग्री 3 साल में मिल जाती है, लेकिन बिहार में 5 साल में भी बमुश्किल मिलती है। परीक्षा फॉर्म भरने से लेकर रिजल्ट निकलवाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।'
यह दर्द है बिहार के नौजवानों का है। RRB-NTPC, शिक्षक अभ्यर्थी हो या ग्रेजुएशन के स्टूडेंट्स कुछ इन्हीं शब्दों में अपना दर्द सोशल मीडिया पर बयां करते हैं। राज्य में यह हाल तब है जब देश के सबसे बड़े छात्र आंदोलन (जिसे JP मूवमेंट कहते हैं) से निकले नेताओं का बीते 32 साल से शासन है।
बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां छात्र पढ़ाई कराने से लेकर नौकरी तक के लिए सड़कों पर लाठी खाते हैं। हाल में कुछ मुद्दों पर हुए आंदोलन (रेलवे और सेना अभ्यर्थियों का प्रदर्शन) का असर तो देशभर में हुआ और वहां से समर्थन की आवाज आई। वहीं, ताज्जुब की बात है कि इनका कोई लीडर नहीं था। स्वत: स्फूर्त हुए आंदोलन से सब चकित हैं। आइए जानते हैं, आखिर क्यों बिहार के युवाओं को आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ता है और उसके परिणाम क्या होते हैं...इससे पहले पोल में हिस्सा लेकर अपनी राय दीजिए।
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