बिहार में जातीय जनगणना 7 जनवरी से:पहले मकान, मार्च में लोगों की गिनती; सामान्य प्रशासन विभाग ने जारी की अधिसूचना

पटना4 महीने पहलेलेखक: ब्रजकिशोर दूबे
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बिहार में 7 जनवरी से जाति सह आर्थिक गणना शुरू होगी। पहले चरण में मकान की गिनती होगी। इसके लिए गणना कर्मियों को 15 दिन का समय दिया गया है। 21 जनवरी तक मकानों की गिनती कर मकान पर नंबरिंग करने का काम पूरा होगा। इसकी अधिसूचना 30 नवम्बर को सामान्य प्रशासन विभाग ने जारी किया है। सरकार के विशेष सचिव मोहम्मद साहैल द्वारा जारी पत्र के मुताबिक राज्य में गणना कार्य के लिए गणना कर्मियों की प्रतिनियुक्ति की गई है।

बिहार में जातीय जनगणना का काउंटडाउन शुरू हो गया है। इस दौरान घरों की गिनती होगी। हर घर का एक नंबर होगा। यही नंबर भविष्य में घरों के स्थाई पते का हिस्सा होगा। किसी प्रकार के पत्राचार में इसी का उपयोग होगा। इसी के आधार पर भविष्य में गांव और मोहल्ला डॉक्यूमेंट भी तैयार होंगे।

घरों की गिनती से ये जानकारी स्पष्ट होगी कि किस इलाके के किस मोहल्ले की किस रोड या गली में कितने मकान हैं और वहां कितनी आबादी है। इसी आधार पर इलाकों में बुनियादी सरकारी सुविधाओं में शामिल स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, बिजली, पेयजल, सड़क, गली-नाली आदि की विस्तृत जानकारी भी जुटाई जाएगी। इसी आधार पर भविष्य में आबादी के अनुसार सरकारी सुविधाओं का प्लान भी बनेगा।

जाति सह आर्थिक गणना का काम दो चरणों में पूरा होगा। दूसरे चरण में मार्च में जाति के साथ आर्थिक गणना होगी। पटना जिले में 2011 के जनगणना के अनुसार 58 लाख 38 हजार 465 आबादी थी। 11 साल बाद वर्तमान समय में पटना जिले में 74 लाख 32 हजार 950 आबादी होने का अनुमान लगाया गया है। इन लोगों की गिनती 12,696 प्रगणक करेंगे।

गणना के लिए कर्मचारियों को 15 दिन का समय दिया गया है।
गणना के लिए कर्मचारियों को 15 दिन का समय दिया गया है।

राज्य सरकार के पास शहर या गांवों में बने मकानों की कोई सूची ही उपलब्ध नहीं है?

राज्य सरकार के स्तर पर अभी मकानों की कोई नंबरिंग नहीं की गई है। वोटर आईकार्ड में अलग, नगर निगम के होल्डिंग में अलग नंबर है। पंचायत स्तर पर मकानों की कोई नंबरिंग ही नहीं है। शहरी क्षेत्र में कुछ मुहल्लों में मकानों की नंबरिंग है भी तो वह हाउसिंग सोसयटी के द्वारा दी गई है, न कि सरकार की ओर से। अब सरकारी स्तर पर दिया गया नंबर ही सभी मकानों की स्थाई नंबर होगा जो स्थाई पेन मार्कर या लाल रंग से लिखा जाएगा और इसे 2 मीटर की दूरी से पढ़ा जा सकेगा।

नंबरिंग में कोई मकान छूट गया या खाली प्लॉट होने पर क्या होगा नियम?

यदि कोई मकान नंबरिंग में छूट जाता हैं या कोई नया मकान बन जाता है तो उसका नंबर बगल के नंबर के साथ ए, बी, सी, डी आदि या बटा एक, दो, तीन आदि जोड़ कर किया जाएगा। इसे ऐस समझें। यदि किसी मकान का नंबर 20 है और उसके बाद खाली जगह है। अगले मकान का नंबर 21 है। मकान नंबर 20 व 21 के बीच खाली जगह पर भविष्य में तीन नए मकान बनते हैं तो इनका नंबर 20A, 20B और 20C या 20/1, 20/2 या 20/3 होगा।

मकानों की नंबरिंग किस आधार पर होगी?

मकानों की नंबरिंग रोड और गली के आधार पर होगी। इसे ऐसे समझें...राजीव नगर रोड नंबर 1 में मकानों की नंबरिंग इस रोड के प्रवेश से शुरू होगी और जहां सड़क खत्म होगी वहां तक जाएगी। फिर वापसी में सड़क के दूसरे साइड के मकानों की नंबरिंग करते हुए प्रवेश प्वाइंट पर ही समाप्त होगी। ऐसी प्रक्रिया गलियों में भी अपनाई जाएगी।

अपार्टमेंट में यह नंबर कैसे दिया जाएगा?

अपार्टमेंट मोहल्ले की जिस गली में है, उस गली में जितने मकान के बाद अपार्टमेंट का नंबर आएगा वह उसका नंबर होगा। उसी के आधार पर उसमें बने सारे फ्लैट को नंबर दिया जाएगा। मसलन-अपार्टमेंट का नंबर यदि 11 है तो वहां के सभी फ्लैट को 11/1, 11/2, 11/3 जैसे नंबर दिए जाएंगे।

पटना जिले की अनुमानित आबादी 74 लाख 32 हजार 950, 12,696 प्रगणक तैनात किए गए

15 को राज्यस्तरीय प्रशिक्षण, सभी जिलों से 10 अफसर शामिल होंगे
जाति सह आर्थिक गणना के लिए 15 दिसंबर को बिपार्ड में राज्यस्तरीय ट्रेनिंग होगी। इसमें राज्य के सभी 38 जिलों से 10-10 अधिकारी शामिल होंगे। राज्यस्तरीय प्रशिक्षण पाने वाले अधिकारी अपने-अपने जिले में अधिकारियों और कर्मियों को प्रशिक्षण देंगे।

पटना में 204 जातियों की गिनती के लिए 11 कोषांग, 45 चार्ज बने
जिले में 204 जातियों की गणना के लिए 11 कोषांग और 45 चार्ज का गठन किया गया है। सभी कोषांग में वरीय नोडल पदाधिकारी और नोडल पदाधिकारी प्रतिनियुक्ति की गई है। डीएम ने सभी को तैयारी जल्द पूरी करने का निर्देश दिया है।

12,696 गणना खण्ड, एक खंड में 700 की आबादी शामिल
पटना जिले में 74.32 लाख लोगों की जातियों को गिनने के लिए 12,696 प्रगणक की सूची तैयार की गई है। एक गणना ब्लॉक में 700 की आबादी पर एक गणना खंड का गठन किया गया है। इनकी मॉनिटरिंग के लिए 2,116 प्रवेक्षक की प्रतिनियुक्ति की गई है।

जातिगत जनगणना की जरूरत क्या है?

आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई। तब से अब तक हुई सभी 7 जनगणना में SC और ST का जातिगत डेटा पब्लिश होता है, लेकिन बाकी जातियों का डेटा इस तरह पब्लिश नहीं होता। इस तरह का डेटा नहीं होने के कारण देश की OBC आबादी का ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। वीपी सिंह सरकार ने जिस मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया, उसने भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर देश में OBC की आबादी 52% मानी थी। चुनाव के दौरान अलग-अलग पार्टियां अपने चुनावी सर्वे और अनुमान के आधार पर इस आंकड़े को कभी थोड़ा कम कभी थोड़ा ज़्यादा करके आंकती रहती हैं।

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि देश में SC और ST वर्ग को जो आरक्षण मिलता है उसका आधार उनकी आबादी है, लेकिन OBC आरक्षण का कोई मौजूदा आधार नहीं है। अगर जातिगत जनगणना होती है तो इसका एक ठोस आधार होगा। जनगणना के बाद उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण को कम या ज्यादा करना पड़ेगा।

इसकी मांग करने वालों का दावा है कि ऐसा होने के बाद पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का पता चलेगा। उनकी बेहतरी के लिए मुनासिब नीति निर्धारण हो सकेगा। सही संख्या और हालात की जानकारी के बाद ही उनके लिए वास्तविक कार्यक्रम बनाने में मदद मिलेगी।

2011 में जातियों के आंकड़े जुटाए गए थे तो जारी क्यों नहीं हुए?

2011 की जनगणना के दौरान UPA सरकार ने सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) कराई थी। कहा जाता है कि उस वक्त लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव सरकार पर जातिगत जनगणना का दबाव डाल रहे थे। इसके साथ ही पिछड़ी जाति के कांग्रेस नेता भी ऐसा चाहते थे। कई दौर की मीटिंग के बाद सरकार ने SECC कराने का रास्ता निकाला था। इसके लिए 4 हजार 389 करोड़ रुपए का बजट पास हुआ। 2016 में जाति को छोड़कर SECC का बाकी डेटा मोदी सरकार ने जारी कर दिया।

जातियों का रॉ डेटा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को सौंप दिया गया। जातियों के कैटेगराइजेशन और क्लासिफिकेशन के लिए मंत्रालय ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी। इस कमेटी ने क्या रिपोर्ट बनाई ये पब्लिश भी हुई या नहीं ये भी क्लियर नहीं है। आज तक इससे जुड़ी रिपोर्ट पब्लिक नहीं हुई है।