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बिहार के साथ अन्याय:केंद्र बिहार को पैसे नहीं दे रहा, भाजपा बदला ले रही, केंद्र प्रायोजित योजनाओं की बनावट में गड़बड़ी

पटना4 महीने पहले
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बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि भाजपा हमसे राजनीतिक बदला ले रही है। - Dainik Bhaskar
बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि भाजपा हमसे राजनीतिक बदला ले रही है।

बिहार की नई सरकार ने केंद्र के खिलाफ सबसे बड़ा मोर्चा खोला है। आर्थिक मोर्चा। मगर इसके हवाले राजनीतिक लड़ाई भी लड़ी जा रही। दोतरफा। बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी केंद्र के मिजाज, उसके कारनामे और इससे जुड़ी राजनीतिक मंशा को खुलेआम करते हैं। कहते हैं-’भाजपा हमसे राजनीतिक बदला ले रही है। ‘दैनिक भास्कर’ के स्टेट ब्यूरो चीफ मधुरेश से बातचीत में वित्त मंत्री ने ऐसे तमाम मसलों की खासी चर्चा की। पेश है बातचीत के खास अंश...

-हम केंद्रीय वित्त मंत्रियों की बैठक में सबकुछ बता आएं हैं। इंतजार है कि मिलता क्या-क्या है? हमारी कौन- कौन सी बात मानी जाती है?

Q. आप लोग भी ‘डबल इंजन’ की सरकार को बिहार के लिए बहुत फायदेमंद बता रहे थे। फिर, क्या हो गया कि भाजपा से अलग हो जाना पड़ा?
- ’डबल इंजन’, इसका फायदा बिहार में कहां दिखा? सबकुछ तो गुजरात में हो रहा है। वहां के बड़े प्रोजेक्टस के उद्घाटन-शिलान्यास के लिए चुनाव की तारीख तक उसी हिसाब से तय की गई।

Q. आप कहना चाह रहे हैं कि केंद्र, बिहार की आर्थिक घेराबंदी कर रहा है?
- बिल्कुल। समय पर पैसा नहीं आता है। चालू वित्तीय वर्ष के 5 महीनों (अप्रैल से अगस्त) की राशि नहीं आई। सितंबर में पहली किश्त के रुपये आए। कभी उपयोगिता प्रमाणपत्र को मुद्दा बनाकर रुपये नहीं दिए जाते। यह तो रूटीन मसले हैं। बुनियादी संकट यह है कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं की बनावट में गड़बड़ी है। पहले इसमें केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 91:10 की होती थी अब यह आधा-आधा यानी 50 : 50 प्रतिशत हो गया है। साफ है केंद्र अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है। अपनी योजनाओं को भी राज्यों के संसाधन से पूरा कराना चाहता है। हद है।

यह तो खासकर बिहार जैसे राज्य के साथ अन्याय है। केंद्र ने मुख्यमंत्रियों का समूह बनाया था। उसकी अनुशंसा थी कि राज्य में 30 से ज्यादा केंद्र प्रायोजित योजना नहीं होगी। लेकिन आज की तारीख में इसकी संख्या 100 के करीब है। यह क्या है? क्यों है? केंद्र की योजना का पैसा राज्य दे, क्या यह इंसाफ है? केंद्र, एक ही नाप का जूता सभी पैरों में पहनना चाहता है। हर राज्य की अपनी भौगोलिक- सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति होती है।

Q. आपकी बातों का केंद्र सरकार पर कोई असर नहीं है। उल्टे भाजपा के बड़े नेता आपकी बातों को झुठलाने में लगे हैं। ऐसे में, बिहार को उसका हक कैसे मिलेगा?
- हमलोग तो अपने स्तर से प्रयास ही न करेंगे। आग्रह करेंगे। देना तो उनको (केंद्र) है। व्यवस्था तो उन्हीं को बदलनी है।

Q. यह सबकुछ सिर्फ आरोप- प्रत्यारोप तक सीमित रहेगा या कुछ दूसरे उपाय मतलब कोर्ट-कचहरी भी हो सकता है?
- आप ही बताएं कि अब हम क्या करें? हम अपनी बात लगातार कह रहे हैं। अब कोई संविधान या फिर अपनी ही स्थापित व्यवस्था को न माने, तो हम क्या कर सकते हैं? हां, हम जनता की अदालत में जाएंगे। जनता तो सबकुछ देख रही है न।

Q. आपकी बातों से जाहिर होता है राज्य सरकार केंद्र पर पूरी तरह निर्भर है। भाजपाई कहते हैं कि इसके लिए बिहार सरकार खुद जिम्मेदार है?
- चाहे सुशील कुमार मोदी हों या डॉ. संजय जायसवाल, अपनी साख बनाए रखने, अपनी सीआर ठीक रखने के लिए कुछ तो बोलेंगे ही न! भले ही वह सफेद झूठ क्यों न हो। उनको शिशु, मातृ, प्रजनन दर में कमी, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि या सोशल इंडेक्स के कमोबेश सभी इंडिकेटर में हमारी मुनासिब स्थिति या हमारे अपने बूते की उपलब्धियां क्यों नहीं दिखतीं? बिहार, कहां से कितना आगे पहुंचा दिया गया, इस बारे में ये लोग कुछ क्यों नहीं बोलते?

Q. आर्थिक मोर्चे पर आखिर बिहार आत्मनिर्भर या उसके करीब क्यों नहीं पहुंच पाता है?
- राज्यों की अपनी सीमाएं हैं। और बिहार इस सीमा के पार जाकर विकास के मोर्चे पर देश-दुनिया के लिए नजीर स्थापित कर चुका है।

Q. एक बड़ा मसला वित्तीय अनुशासन का भी है? केंद्र को खर्च हुए रुपए का हिसाब नहीं मिलता है। एसी-डीसी बिल की अलग दास्तान है?
- ये सब बहानेबाजी है। छोटे मसले हैं।

Q. आप लोगों के अनुसार ऐसी बातों से छुटकारा पाने का एक बड़ा उपाय बिहार को विशेष दर्जा देना रहा है। इस मोर्चे पर अब क्या रणनीति होगी?
- जी हां। दरअसल, खुद केंद्र सरकार की रिपोर्ट ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की हमारी मांग को वाजिब ठहराती है, उसको आधार देती है, उसके सही कारणों को प्रमाणित करती है। बिहार को सबसे तेज गति से तरक्की/प्रगति करने वाला राज्य माना गया है। लेकिन हमें सबसे पिछड़ा और गरीब भी बताया जाता है। हम भी तो यही कह रहे हैं। और इसी आधार पर तो विशेष दर्जा मांग रहे हैं।

Q. केंद्र से राशि नहीं मिलने का असर योजनाओं पर पड़ रहा है? वेतन-पेंशन पर भी दिखेगा क्या?
-हालात या रवैया नहीं बदला, तो आगे के दिनों में असर तो होगा ही न। रूटीन मामलों में केंद्र के हिस्से के रुपये की व्यवस्था हमें करनी पड़ती है। समग्र शिक्षा अभियान इसका नमूना है। इनका अनुचित दबाव हमारे खजाने पर पड़ता है।

Q. जब आप भाजपा के साथ थे तब ऐसी स्थिति नहीं थी?
-देखिए, भाजपा की नजर में बिहार है ही नहीं। इन्होंने बिहार को कभी अपना माना ही नहीं। एनडीए से हमलोगों के अलग होने का यह भी एक बड़ा कारण रहा। हम कहते-कहते थक गए। वो नहीं माने, तो हम अलग हो गए। पहले भी कमोबेश यही स्थिति थी।

Q. आखिर केंद्र ऐसा क्यों कर रहा है? मकसद क्या है?
-वह हमसे राजनीतिक बदला ले रहा है।

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