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(प्रो. संजय कुमार, सीएसडीएस) बिहार की राजनीति में कांग्रेस की भी अपनी ताकत है या रही है... इस सवाल पर बड़ी संख्या में नौजवानों की याददाश्त दगा दे जाती है। ऐसा होना वाजिब है क्योंकि 35 साल पहले, 1985 के बाद, कांग्रेस कभी अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में पहुंची ही नहीं। और इस अवधि में नौजवानों ने नीतीश और लालू को ही देखा और जाना। 1990 से 2005 का दौर लालू प्रसाद का रहा और 2005 से आज तक नीतीश कुमार सामने हैं। युवा वोटरों के बीच एक प्रकार से यह धारणा बन चुकी है कि नीतीश ही बिहार की राजनीति के पर्याय हैं।
ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि नीतीश 15 वर्षों से राज्य के मुख्यमंत्री हैं और इस चुनाव में भी उन्हें सीएम का चेहरा किसी और ने नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने घोषित किया है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या 15 वर्षों के दौरान 13 वर्ष एनडीए के सीएम रहे नीतीश यह साबित करते हैं कि राज्य पर एनडीए का वर्चस्व है? क्या 15 वर्षों के लालू-राबड़ी राज से साबित है राजद को कोई चुनौती नहीं थी? क्या इन दोनों का वर्चस्व कांग्रेस के शासनकाल से अधिक है/था?
नीतीश जितने वर्षों से सीएम हैं, (वह अवधि भी शामिल है जब वह महागठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे) और लालू-राबड़ी के शासनकाल की लंबी अवधि ही प्रमाणित करती है कि दोनों नेताओं और उनकी पार्टियों का अपने-अपने कालखंड में राज्य पर वर्चस्व रहा है। लेकिन दोंनों का दबदबा कभी वैसा नहीं रहा जैसा कांग्रेस का हुआ करता था जब वह सत्ता की धुरी थी। राजद की तीन चुनावी जीत में सिर्फ 1995 की जीत ठीकठाक रही।
उसी प्रकार 2010 (2015 को छोड़कर जब वह महागठबंधन के साथ थे) की जीत नीतीश की जमीनी पकड़ को साबित करने वाली रही। लेकिन इन दोनों पार्टियों से इतर कांग्रेस जब-जब जीती, अंतर बड़ा रहा। बीते 30 वर्षों में राज्य में सात चुनाव हुए। 1990,1995 व 2000 का चुनाव जनता दल (बाद में राजद) ने जीता। अक्टूबर 2005 और 2010 की जीत एनडीए के नाम रही। 2015 में एनडीए चुनाव इसलिए हार गया क्योंकि तब नीतीश अलग हो गए थे और महागठबंधन से नाता जोड़ लिया था।
महागठबंधन चुनाव जीता, सरकार बनी लेकिन दो साल के भीतर ही नीतीश ने गठबंधन बदल लिया और वापस एनडीए में शामिल हो गए और फिर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। 1952 से 1977 के कालखंड में और फिर 1980-85 के बीच कांग्रेस ने सरकार चलाई। कांग्रेस का इन चुनावों में जीत और वोटिंग पैटर्न बिल्कुल अलग था। कांग्रेस, बिहार में 8 विधानसभा चुनाव जीती। इनमें से 4 चुनाव में तो उसके और विपक्ष के वोट में गैप 25% का था। बाकी 4 चुनावों में यह गैप 15-16% का था।
इसकी तुलना में राजद की चुनावी जीत का अंतर काफी कम था (1995 को छोड़कर जब गैप 15% का था)। 1990 में जनता दल महज 1% अधिक वोट पाकर सरकार बना ली थी। 2000 में राजद की सरकार इसलिए बच गई कि राज्य का बंटवारा हो गया। उस चुनाव में एनडीए के वोट 1% अधिक थे। 2005 में जब एनडीए सरकार में आई तब राजद से उसका वोट मात्र 5% ही अधिक था। लालू की तरह ही नीतीश ने 2010 के चुनाव में ही भारी-भरकम 13% वोटों के अंतर से जीत हासिल की।
2015 में एनडीए की सरकार इसलिए बन गई कि नीतीश ने गठबंधन बदल लिया। जदयू 2015 का चुनाव महागठबंधन के बैनर तले लड़ा था। यह सत्य है
कि लालू-राबड़ी और नीतीश दोनों 15-15 वर्षों तक शासन में रहे हैं। दोनों अपने-अपने कालखंड में लोकप्रिय रहे लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि दोनों ही बहुमत और चुनावी सफलता के लिए अपने घटक दलों पर निर्भर रहे। दोनों के ही दलों की चुनावी जमीन कभी उतनी मजबूत नहीं रही, जितनी दिखती है।
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