भास्कर एक्सक्लूसिवबुनकर के बेटे को जेईई मेंस में 100 पर्सेंटाइल:पिता ने पैसे के अभाव में छोड़ी थी पढ़ाई, बेटा TOP-20 की लिस्ट में

पटना/गया4 महीने पहलेलेखक: शंभू नाथ
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गुलशन अपने माता-पिता और भाइयों के साथ खुशी मनाते हुए। - Dainik Bhaskar
गुलशन अपने माता-पिता और भाइयों के साथ खुशी मनाते हुए।

देश भर के IITs में प्रवेश के लिए होनेवाली परीक्षा JEE Mains में विलेज ऑफ आईआईटीयंस के नाम से मशहूर बिहार के गया जिले के पटवा टोली के 38 स्टूडेंट्स ने क्वालीफाई किया है। इनमें 20 बच्चों ने 90 पर्सेंटाइल से ज्यादा स्कोर किया है, जबकि यहां के गुलशन को 100 पर्सेंटाइल आए हैं। वह देश भर के टॉप-20 की लिस्ट में शामिल हुए हैं।

गांव के तीन बच्चे (महिका, सनी और सौरभ) ऐसे हैं, जिन्हें 99 पर्सेंटाइल से ज्यादा स्कोर है। वहीं 5 स्टूडेंट्स (प्रिंस, नीतीश, प्रांजल, गुलशन और इंद्रदेव) ने 95 पर्सेंटाइल से ज्यादा स्कोर किया है।

गुलशन को छोड़ दें तो सभी बच्चों ने गांव में रहकर ही परीक्षा की तैयारी की है। ये गांव में संचालित ‘वृक्ष’ संस्थान में ग्रुप स्टडी के माध्यम से परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।

टॉपर गुलशन की कहानी, कभी ट्यूशन नहीं गए

मानपुर पटवा टोली के शिवचरण लेन के रहने वाले गुलशन के पिता तुलसी प्रसाद पेशे से बुनकर हैं। पावरलूम से उनका घर चलता है। तीन बच्चों के पिता शिवचरण कहते हैं कि उनकी सालाना आमदनी 1 लाख से भी कम है। मैट्रिक के बाद उन्हें पैसे के अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।

वे कहते हैं कि उनके हालात ऐसे हैं कि वे अपने बेटे को ट्यूशन तक पढ़ाने में सक्षम नहीं है। गुलशन ने 10वी में 86 पर्सेंट अंक अपनी मेहनत से हासिल किया। इसके बाद वो अपनी काबिलियत के बूते फिट्जी के फॉर्चून-40 प्रोग्राम में सलेक्ट हुआ। वो वहां फ्री में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है।

आईआईटी मुंबई से कंप्यूटर इंजीनियरिंग करना चाहता है गुलशन

गुलशन के माता-पिता ने भले पावरलूम चलाने में अपनी पूरी जिंदगी चलाई हो, लेकिन गुलशन के ख्वाब बड़े हैं। वो आईआईटी दिल्ली या आईआईटी बॉम्बे से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहता है। गुलशन के पिता ने बताया कि वो 9वीं के बाद से अभी तक स्कूल नहीं गया है। 9वीं और 10वीं में कोरोना आ गया। इसके कारण उसकी स्कूलिंग प्रभावित हुई।

11वीं में उसका चयन फिट्जी के कार्यक्रम में हो गया। उन्होंने बताया कि वो मानपुर के ही ब्रिटिश इंग्लिश स्कूल से 12वीं की पढ़ाई कर रहा है। अगले महीने उसकी बोर्ड की फाइनल परीक्षा होनी है। अभी तक उसने 12वीं भी क्वालिफाई नहीं की है।

रिजल्ट के बाद पटवा टोली में जश्न मनाते बच्चे।
रिजल्ट के बाद पटवा टोली में जश्न मनाते बच्चे।

अब 3 पॉइंट में समझिए पटवा टोली के बच्चों की कामयाबी के राज

1. सफल स्टूडेंट्स के मार्गदर्शन से मिलता है लाभ, स्टडी मटेरियल भी देते हैं

इस गांव के स्टूडेंट्स आज देश-विदेश के बड़े-बड़े संस्थानों में काम कर रहे हैं। लेकिन ये आज भी अपने गांव को नहीं भूले हैं। तैयारी करने वाले बच्चों का ये खुद मार्गदर्शन करते हैं। यहां कामयाब स्टूडेंट्स का एक चेन तैयार किया गया है। सफल हो जाने के बाद अपना सारा स्टडी मटेरियल ये दूसरे बच्चों की तैयारी के लिए दे देते हैं। कुछ ऑनलाइन, तो कुछ छुट्‌टी में आने पर क्लास लेते हैं और सफलता के मंत्र बताते हैं।

2. ट्यूशन की जगह ग्रुप स्टडी में करते हैं पढ़ाई

इस गांव के बच्चों की कामयाबी का सबसे बड़ा राज रहा है - ग्रुप स्टडी। इसके दो कारण हैं, एक तो हर घर में पावरलूम की मशीनें चलती हैं। इसके कारण उन्हें पढ़ने के लिए जगह नहीं मिलती है। जगह मिल भी जाती है तो माहौल नहीं मिल पाता है। दूसरा आर्थिक तंगी। इनके गार्जियन की इतनी आमदनी नहीं होती है कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई किसी बड़े इंस्टीट्यूट में कराएं। ऐसे में ये ग्रुप स्टडी कर एक-दूसरे की समस्याओं का समाधान करते हैं।

3. डाउट क्लियर करने के लिए रेगुलर टेस्ट कंडक्ट कराते हैं

आईआईटी-जेईई एग्जाम को क्रैक करने में अहम योगदान होता है रेगुलर प्रैक्टिस का। ग्रामीणों की तरफ से इसकी भी व्यवस्था की जाती है। बड़े-बड़े कोचिंग संस्थानों की तरफ से आयोजित मॉक टेस्ट के क्वेश्चन यहां के बच्चों को भी उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके अलावा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की ओर से जारी होने वाले प्रैक्टिस सेट भी उन्हें उपलब्ध कराए जाते हैं। ताकि डाउट क्लियर करने में सहूलियत हो सके। ये ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों फॉर्मेट में उपलब्ध कराए जाते हैं।

पटवा टोली में वृक्ष संस्थान के बैनर तले बच्चों नि:शुल्क तैयारी कराई जाती है। यहां किताबों के साथ डिजिटल क्लासेज की भी व्यवस्था की गई है।
पटवा टोली में वृक्ष संस्थान के बैनर तले बच्चों नि:शुल्क तैयारी कराई जाती है। यहां किताबों के साथ डिजिटल क्लासेज की भी व्यवस्था की गई है।

गांव में 500 इंजीनियर्स में से 300 IIT पासआउट

बुनकरों के गांव को 'विलेज ऑफ आईआईटियंस' कहने के पीछे वजह भी है। यहां 500 इंजीनियर्स हैं, जिसमें से 300 आईआईटी से निकले हैं। यहां से निकले युवा देश-विदेश की बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं।

इसकी शुरुआत 1992 से हुई। तब केसी प्रसाद के बेटे जितेंद्र प्रसाद ने पहली बार आईआईटी की परीक्षा क्रैक की थी। गांव में ही रहकर उसने तैयारी की थी। उस समय IT-BHU में पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी पहली नौकरी टाटा स्टील में लगी।

यहां दो साल नौकरी करने के बाद उन्हें अमेरिका की कंपनी से ऑफर मिला और वहां चले गए। तब वो दौर बुनकरों के लिए मंदी का था। काम पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। जितेंद्र ठाकुर की कामयाबी ने यहां के लोगों को प्रेरित किया और उन्होंने अपने बच्चों को पावरलूम में मजदूरी के बजाय पढ़ाई की तरफ भेजने का निश्चय किया। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है।

बिहार से 47 हजार स्टूडेंट्स ने किया था आवेदन, 3104 को 95 पर्सेंटाइल से अधिक

बात करें पटना की तो यहां के कंकड़बाग के यशस्वी राज को 99.8 पर्सेंटाइल मिला है, जबकि उत्कर्ष आनंद को 99.97 पर्सेंटाइल अंक प्राप्त हुए हैं। बिहार भर के रिजल्ट की बात करें तो जेईई मेंस की इस परीक्षा में बिहार के 3104 स्टूडेंट्स को 95 पर्सेंटाइल से अधिक स्कोर मिला है, जबकि 99 पर्सेंटाइल से अधिक वाले छात्र-छात्राओं की संख्या 283 है। 95 से 99 पर्सेंटाइल अंक प्राप्त करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या 2818 है। इस परीक्षा के लिए बिहार से 47 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने आवेदन दिया था।

इस रिजल्ट के मायने समझिए...एडवांस के लिए क्वालिफाई किए, सरकारी और NIT के दरवाजे खुले

इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन के लिए स्टूडेंट्स को दो लेयर का एग्जाम क्वालिफाई करना पड़ता है। जेईई मेंस और जेईई एडवांस। एडवांस की परीक्षा में 2.5 लाख स्टूडेंट्स का चयन जेईई मेंस की परीक्षा के माध्यम से किया जाता है। अब सरकार की तरफ से जेईई मेंस का एग्जाम भी दो चरण में लिया जाता है। पहला फरवरी और दूसरा अप्रैल। इन दोनों में बेस्ट ऑफ में जो अंक बेहतर होंगे उनके आधार पर ही स्टूडेंट्स एडवांस के लिए क्वालिफाई होंगे।

इतना ही नहीं, जेईई मेंस का एग्जाम स्टूडेंट्स के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज का प्रवेश द्वार है। इसकी रैंकिंग के आधार पर ही देश भर के 31 एनआईटी कॉलेज और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में स्टूडेंट्स का एडमिशन होता है। इसके अलावा प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए भी जेईई मेंस की रैंकिंग काफी महत्वपूर्ण होती है।

अब जानिए, क्या है फॉर्चुनेट-40 जहां से गुलशन फ्री में पढ़ाई कर रहा है

फॉर्चुनेट-40, फिट्जी का कॉर्पोरेट सोशल रेस्पांसब्लिटी (CSR) प्रोग्राम है। इसके तहत फिट्जी की तरफ से देश भर में उसके हर सेंटर पर 40 बच्चों को फ्री में इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराई जाती है। उनकी पढ़ाई से लेकर परीक्षा तक आने वाले सारे खर्च संस्थान की तरफ से दिए जाते हैं।

फिट्जी, रांची के सीनियर जनरल मैनेजर पंकज कुमार ने दैनिक भास्कर को बताया कि इसमें चयन के लिए फरवरी के आखिरी सप्ताह में राष्ट्रीय स्तर पर मेरिट टेस्ट का आयोजन किया जाता है। इसके आधार पर नेशनल कट-ऑफ जारी किया जाता है। इसके आधार पर ही हर सेंटर पर 40 बच्चों का चयन किया जाता है। इसके लिए एक शर्त यह भी है कि इसमें केवल वैसे बच्चों का ही चयन किया जाएगा, जिनके परिवार की मासिक आय 10 हजार रुपए से कम हो।

आईआईटीयंस के गांव की ग्राउंड रिपोर्ट पढ़िए...

आइए न हमरा बिहार में…:कट्‌टा ही नहीं, हमारे यहां आईआईटियंस का गांव भी है, जहां 500 इंजीनियर्स में से 300 IIT पासआउट

ठोक देंगे कट्‌टा कपार में, आइये न हमरा बिहार में… वेब सीरीज खाकी-द बिहार चैप्टर का ये गाना तो आपने सुना ही होगा। न जाने ऐसे कितने डॉयलाग बिहार पर बने होंगे। फिल्मी पर्दे पर कहानियों-गानों पर अक्सर बिहार को क्राइम स्टेट के रूप में दिखाया जाता है। बिहार यानी बस बोली, गोली और गाली है…। मगर ये सच नहीं है। आइए हम बिहार के उस गांव में ले चलते हैं, जिसे विलेज ऑफ आईआईटियंस कहते हैं। यहां 500 इंजीनियर्स हैं, जिसमें से 300 आईआईटी से निकले हैं। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करिए