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घोड़परास कितनी बड़ी समस्या:वन विभाग का दावा- 4 साल में 4829 घोड़परास को मारा गया; जमीनी हकीकत- 8 साल में 7 गुना तक बढ़ गई इनकी संख्या

पटना2 वर्ष पहलेलेखक: राजू कुमार
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अभी घोड़परास के कारण 12 जिलों की खेती चौपट... नहीं चेते तो पूरे प्रदेश में भयावह होंगे हालात। - Dainik Bhaskar
अभी घोड़परास के कारण 12 जिलों की खेती चौपट... नहीं चेते तो पूरे प्रदेश में भयावह होंगे हालात।

घोड़परास के कारण अभी हमारे 12 जिलों की खेती बुरी तरह प्रभावित हो रही है। लेकिन, जिस रफ्तार से इसकी संख्या बढ़ रही है, वैसी स्थिति में अगर तत्काल ठोस उपाय नहीं किए गए तो हमारी पूरी खेती चौपट हो जाएगी। अगर वृद्धि दर को देखें तो एक घोड़परास का जीवनकाल करीब 14 साल का होता है। एक मादा घोड़परास जन्म लेने के दो साल बच्चा पैदा करने लायक हो जाती है। इसके बाद वह छह साल तक लगभग हर साल बच्चा देती है। यानी, एक घोड़परास से आठ साल में संख्या बढ़कर कम से कम 7 गुनी हो गई। विशेषज्ञों का तो यह भी कहना है कि एक घोड़परास एक बार में दो से तीन बच्चे भी देती है।

इस लिहाज से यह संख्या कहीं और ज्यादा हो जाती है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मुताबिक, चार सालों (वर्ष 2016, 2017, 2018 और 2019) में छह जिलों नालंदा, सारण, पटना, वैशाली, बेगूसराय और मुंगेर में 4829 घोड़परासों को शूटरों ने मार गिराया। लेकिन, जमीनी हकीकत यह है कि चार साल में जितने मारे, उससे कई गुना पैदा हो गए हैं।

वन विभाग एक बार में अधिकतम 500 को मारने की देता है इजाजत

किसानों की शिकायत पर वन विभाग ने जांच के बाद पहली बाद 2016 में घोड़परास को मारने की इजाजत दी। वर्ष 2016 में 2653 घोड़परास को मारा गया। फिर 2017,2018 और 2019 में भी घोड़परास मारने के लिए वन विभाग के द्वारा अनुमति दी गई थी।

जान-माल की क्षति पर मारने का आदेश देता है वन विभाग
पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मुख्य वन्य प्रतिपालक पीके गुप्ता ने बताया कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में मानव की जाल-माल को नुकसान पहुंचाने की शिकायत और उसकी जांच के बाद एक बार में अधिकतम 500 घोड़परास को मारने की अनुमति दी जाती है। कम से कम 100 घोड़परास को मारने के लिए डीएफओ को आदेश देने का अधिकार है।

शेड्यूल 3 व 4 के प्राणियों पर फैसला केंद्र नहीं, राज्य लेता है
वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत राज्य सरकार शेड्यूल 3 और 4 के वन्य प्राणियों को मारने की अनुमति देती है। इसमें घोड़परास, लकड़बग्घा,साभर और हिरण शामिल है। वहीं शेड्यूल वन में आने वाले जंगली जानवरों को मारने के लिए केन्द्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। शेड्यूल वन में शेर, बाघ, हाथी, तेंदुआ, चीता सहित अन्य छोटे-बड़े जानवर हैं।

नया उपाय- अब नसबंदी,
कड़वा सच- घोड़परास छोडि़ए, कुत्ते तक की नसबंदी की व्यवस्था नहीं

पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री नीरज कुमार सिंह ने कहा है कि सरकार घोड़परास की बढ़ती संख्या पर अंकुश के लिए नसबंदी कराएगी। लेकिन, हकीकत यह है कि कुत्ते की नसबंदी की व्यवस्था तो है नहीं, ऐसे में घोड़परास की नसबंदी कैसे हो पाएगी, यह बड़ा सवाल है। इसकी व्यावहारिकता पर भी सवाल उठ रहे हैं।

अभी तक क्या प्रयास
घोड़परास से फसल को बचाने के लिए खेतों की घेराबंदी और मशीन से तरह-तरह की आवाज निकालने जैसे उपाय किए गए। लेकिन, ये विफल ही साबित हुए हैं। कुछ जिलों में सरकार की अनुमति से इसको मारने की कार्रवाई भी सीमित रूप से की गई है।लेकिन समस्या बढ़ती ही जा रही है।

दूसरे राज्यों से नहीं आया, यहीं के जंगलों में रहता था
घोड़परास बिहार में किसी दूसरे राज्यों से नहीं आया है। बिहार के जंगलों में शुरू से ही इसका निवास रहा है। बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड सहित भारत के विभिन्न राज्यों में पाया जाता है।

जंगल में खाना-पानी नहीं मिलने से पहुंचा खेतों में
घोड़परास की बढ़ती संख्या व जंगलों में पर्याप्त खाना-पानी न मिलने से वह अब इंसान के खेत-खलियान तक पहुंच रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक आज लगभग 80% घोड़परास इंसान के खेतों और आशियाने के आस-पास और 20% ही जंगलों में है।

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