जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ललन सिंह का इस पद पर बने रहना तय माना जा रहा। शनिवार को ललन सिंह ने जेडीयू चुनाव अधिकारी अनिल हेगड़े के समक्ष अपना नामांकन दाखिल किया। हालांकि इस दौरान वे खुद उपस्थित नहीं रहे। उनके प्रतिनिधि के रूप में मंत्री संजय झा समेत जेडीयू के अन्य बड़े नेता मौजूद रहे। सीएम नीतीश कुमार खुद ललन सिंह के प्रस्तावक बने हैं।
जेडीयू के चुनाव पदाधिकारी अनिल हेगड़े ने बताया कि इसमें लगभग 186 वोटर्स हिस्सा लेंगे। इसमें पार्टी के सांसद के साथ राष्ट्रीय परिषद के सदस्य शामिल होंगे। इसमें विभिन्न जिलों के अध्यक्ष भी शामिल होंगे। हेगड़े ने कहा कि नामांकन की अंतिम तिथि 4 दिसम्बर है।
उसी दिन शाम 3 बजे के बाद स्क्रूटनी होगी। वहीं नाम वापसी की अंतिम तिथि 5 दिसम्बर है। अगर एक ही नामांकन आया तो ललन सिंह का बिना किसी चुनाव के दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय हो जाएगा। अगर एक से कैंडिडेट नामांकन कराते हैं तब 7 दिसंबर को वोटिंग होगी।
ललन सिंह को आगे कर सवर्ण में पैठ बनाने की कोशिश
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार कहते हैं कि ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर नीतीश कुमार नाराज भूमिहार वोटर्स को साधने की कोशिश की है। ललन सिंह हमेशा से जेडीयू में भूमिहार चेहरा रहे हैं।इस चेहरे को आगे करने के साथ नीतीश कुमार ने अपने ऊपर 'लव-कुश' को लगातार बढ़ावा देने के अपने आरोप को भी खत्म कर लेंगे। एक तरफ जहां उन्होंने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है तो दूसरी तरफ उमेश कुशवाहा को उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी है।
एक चर्चा ये भी, आरजेडी-जेडीयू के विलय से पहले की तात्कालिक व्यवस्था
वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार कहते हैं कि जेडीयू और आरजेडी में विलय की भी चर्चा जोरों पर है। ऐसा माना जा रहा है कि अगले साल के शुरुआती महीनों में ही दोनों पार्टियों का विलय हो जाएगा। ऐसे में नया अध्यक्ष चुनने की जगह तात्कालिक व्यवस्था के तौर पर मौजूदा अध्यक्ष के कार्यकाल को ही आगे बढ़ा दिया गया है। हालांकि इस पार्टी के कोी नेता खुलकर बोलने से बच रहे हैं।
नीतीश के अहम सिपहसालार, चुनाव प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी
बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार की एंट्री के बाद से ही ललन सिंह उनके प्रमुख रणनीतिकार रहे हैं। बिहार की सियासत को जानने वाले कहते हैं कि ललन सिंह चुनावी प्रबंधन के कुशल नेता हैं। किस नेता को कब कहां सेट करना है और कब जमीन पर उतार देना है इसमें उन्हें महारत हासिल है। इसके उदाहरण हैं आरसीपी सिंह। उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव ललन सिंह ने ही लाया था। एक सच ये भी है कि कि नीतीश और लालू की तरह ललन सिंह ने भी जेपी आंदोलन से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी।
18 साल के सफर में जेडीयू को 4 राष्ट्रीय अध्यक्ष मिले
जेडीयू के 18 साल के इतिहास में 4 राष्ट्रीय अध्यक्ष ने हैं। 30 अक्टूबर 2003 को जेडीयू की स्थापना हुई थी। जेडीयू के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव थे। उसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जेडीयू के अध्यक्ष बने। नीतीश कुमार ने अपनी जिम्मेदारी आरसीपी सिंह को दी। आरसीपी सिंह को पद से हंटाकर ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिममेदारी दी गई थी।
एक कहानी ये भी, जब ललन सिंह नीतीश के खिलाफ हो गए थे
नीतीश कुमार और ललन सिंह की प्रगाढ़ता के बीच एक दौर ये भी आया था जब दोनों की राहें जुदा हो गईं थी। ललन सिंह ने नीतीश कुमार सबक सीखाने की कसम खाई थी। वो साल 2009 का था। ललन सिंह के ऊपर पार्टी फंड के गलत इस्तेमाल का आरोप लगा। इस आरोप के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार किया।तब ललन सिंह कहा करते थे नीतीश कुमार के पेट के दांत मैं ही तोड़ूंगा। हालांकि ये दूरियां ज्यादा दिन तक नहीं रही। एक बार फिर से दोनों साथ आ गए।
जानिए, ललन सिंह का राजनीतिक सफर
ललन सिंह छात्र राजनीति से ही चुनाव में आ गए थे। छात्र संघ चुनाव में ये महासचिव के पद पर जीत दर्ज किए थे। छात्रसंघ के बाद इन्होंने जेपी आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिए। इसके बाद नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद ये इनके साथ आ गए। 2004 में बेगूसराय, बलिया लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। 2009 में मुंगेर लोकसभा से चुनाव वीणा देवी से हार गए। इसके बाद नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनाए गए। पथ निर्माण व जलसंसाधन जैसे अहम विभागों के मंत्री बनाए गए। 2019 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से इन्होंने मुंगेर से चुनाव लड़ा। इस बार जीतने में कामयाब रहे।
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