'विधान परिषद जनतंत्र का मजाक...अगड़ी-पिछड़ी जाति के चापलूसों का जमावड़ा':प्रेम कुमार मणि ने आत्मकथा 'अकथ कहानी' में लिखा; MLC रह चुके, लालू-नीतीश के साथ की राजनीति

पटना13 दिन पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
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उच्च सदन जनतंत्र का मजाक है। राज्य सभा और राज्यों की विधान परिषदें, जो फिलहाल 6 राज्यों में हैं, को एक समय सीमा के भीतर खत्म कर देना चाहिए।...ये अगड़ी-पिछड़ी जाति के चापलूसों का जमावड़ा है और जनता के पैसों की बर्बादी....। ये बातें लेखक और नेता प्रेम कुमार मणि ने अपनी आत्मकथा 'अकथ कहानी' में लिखी हैं।

प्रेम कुमार मणि ने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद दोनों के साथ राजनीति की हैं। वे नीतीश कुमार के मित्र हैं। नीतीश कुमार ने उन्हें पहले एमएलसी बनाया और फिर प्रोसिडिंग चलवाकर हटवा भी दिया। वहीं, प्रेम कुमार मणि ने लालू प्रसाद की पार्टी RJD को 9 सालों के बाद छोड़ दिया।

मणि अपने मौलिक विचारों के लिए जाने जाते हैं। वे साहित्य के साथ-साथ समसामयिक मुद्दों पर स्पष्ट और मौलिक राय रखते हैं। उन्होंने जब राष्ट्रीय जनता दल छोड़ा तो​​​​​​ लालू को लंबी नसीहत भरी चिट्ठी लिखते हुए गए।

कुछ दिन पहले ही प्रेम कुमार मणि की आत्मकथा 'अकथ कहानी' छपकर आई है। इसमें मणि का जीवन तो दिखता ही है साथ ही उनके विचार भी दिखते हैं।

नीतीश कुमार की विचारधारा पर सवाल

उन्होंने आत्मकथा में लिखा है कि 'दरअसल नीतीश कुमार की कोई विचारधारा नहीं हैं और भाजपा का कोई पुख्ता नेतृत्व नहीं हैं, तो यह नीतीश जी के नेतृत्व और भाजपा की विचारधारा की इकट्ठी जीत है, जो निष्कर्षतः दक्षिणपंथी राजनीति की जीत ही कही जाएगी।' मणि ने बिहार विधान परिषद से अपनी एमएलसी से बर्खास्तगी वाले अध्याय में ये बातें लिखी हैं। मणि की बर्खास्तगी और सवर्ण आयोग के गठन का फैसला एक ही समय की घटना है। बल्कि एक-दूसरे से बहुत हद तक जुड़ी भी है।

मनुस्मृति तो स्वर्ण आयोग की रिपोर्ट

नीतीश कुमार ने जब बिहार में सवर्ण आयोग के गठन का फैसला लिया। इसके तहत आयोग को ऊंची जातियों के लोगों की उन्नति के उपाय सुझाने के लिए सरकार को एक अध्ययन रिपोर्ट देनी थी। मणि ने लिखा है- 'मैंने उस समय प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि मनुस्मृति तो सवर्ण आयोग की रिपोर्ट ही है। उसके लागू होने से सवर्णों का भला होगा। क्या नीतीश सरकार उसे लागू करने चाहेगी?' मणि ने लिखा है- 'अप्रैल 2010 की 20 या 21 तारीख को मुझे एक नोटिस थमाई गई कि क्यों नहीं मेरी विधान परिषद की सदस्यता समाप्त कर दी जाए। लेकिन मुझ पर जो आरोप लगाए गए थे वे बेबुनियाद, झूठ और शरारतपूर्ण थे।'

विधान परिषद से हटाया गया था

मणि अपने किताब में लिखते हैं कि मैंने तीन बातें कही थीं- 'बिहार में दक्षिणपंथ की राजनीति मजबूत हुई है। सवर्ण आयोग की आलोचना और उस पर पुनर्विचार का आग्रह वाली बात और तीसरा एनडीए की भारी जीत पर प्रतिक्रिया। 1971 में इंदिरा जी की ऐसी ही जीत पर अटल जी ने कहा था कि कभी-कभी चीजें अपने वजन से ही टूट जाती है, यह एनडीए के साथ भी हो सकता है।'

विधान परिषद से नीतीश ने हटवाया तो बेटी ने कहा- वेलडन पापा

तत्कालीन विधान परिषद सभापति ताराकांत झा ने कई बार प्रेम कुमार मणि से आग्रह किया कि आप नीतीश कुमार से मिल लें। इस पर मणि ने जवाब दिया- मित्रता का मैं सम्मान करता हूं, लेकिन समर्पण अच्छी चीज नहीं। तब सभापति ने कहा- आप राजनीति के लिए नहीं बने हैं। मणि ने इसी अध्याय में लिखा है- 'आज कृष्णों की ही कमी है। उनका चरित्र मुश्किल से मिलता है।

यहां तो दुर्योधन और दुःशासनों की संख्या बढ़ रही। जो महिलाओं को अपमानित करना ही धर्म समझते हैं। या फिर धर्मराज जैसे पाखंडी, जो राज सत्ता के लिए द्रोपदियों को दांव पर लगा देते हैं। टिकट और मंत्रिपद पाने के लिए कितने ही लोगों ने ऐसी बेशर्म हरकतें की हैं।' सबसे दिलचस्प यह कि जब मणि की जेएनयू में पढ़ रही बेटी ने उन्हें विधान परिषद से बर्खास्त करने की जानकारी दी तो उसने खुशी जाहिर की और कहा कि आपसे ऐसी ही उम्मीद थी पापा, वेलडन। इसके बाद दोनों बाप-बेटी ने इस जीत का जश्न कैफेटेरिया में जाकर मनाया कॉफी, चाकलेट और केक मंगाया।

दरअसल यह सब ढकोसला है

इस अध्याय से पहले लिखे अध्याय 'सदन में' प्रेम कुमार मणि ने बिहार विधान परिषद पर कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा है कि 'मुझे साहित्य के क्षेत्र से जुड़ा मानकर मनोनीत किया गया था, लेकिन यह सब दरअसल ढकोसला है, वास्तविकता यह है कि इसमें मुख्यमंत्री अथवा सरकार की मर्जी चलती है।...मेरे लिए मनोनयन अपमानजनक था। पार्टी के लिए मैंने किसी सदस्य से ज्यादा काम किया था। यह मेरा घोर अपमान था।... मैंने अपमान का घूंट पीना मुनासिब समझा। कारण मेरी विवशता थी। मैं आर्थिक रूप से टूटा हुआ था और लंबा इलाज चल रहा था..। वर्ष 2002 में बिहार सरकार के एक साहित्यिक पुरस्कार की अच्छी खासी रकम को मैंने अस्वीकर किया था लेकिन इस बार अस्वीकार करने की स्थिति नहीं थी।'

नीतीश विधान परिषद चुने जा रहे, यह जनतंत्र का खिलवाड़ नहीं तो क्या?

मणि ने लिखा है- उच्च सदन जनतंत्र का मजाक है। राज्य सभा और राज्यों की विधान परिषदें, जो फिलहाल 6 राज्यों में हैं, को एक समय सीमा के भीतर खत्म कर देना चाहिए।...बिहार में बहुत दिनों तक लालू प्रसाद और अब तकरीबन आठ वर्षों से नीतीश कुमार विधान परिषद के सदस्य रुप में ही मुख्यमंत्री हैं। यह सब क्या है? जनतंत्र का खिलवाड़ नहीं तो और क्या?

उच्च सदन में एमएलसी बनने की प्रक्रिया ऐसी है कि एक ही नागरिक बार-बार कई रूपों में अपना प्रतिनिधि भेजता है।...सामाजिक न्याय के तथाकथित नेताओं ने भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैंने सुना है कि कर्पूरी ठाकुर, राज्यपाल, राज्यसभा और विधान परिषद जैसी संस्था के विरूद्ध थे। अगर थे, तो मैं उन्हें सलाम करना चाहूंगा।

विधान परिषद अगड़ी-पिछड़ी जाति के चापलूसों का जमावड़ा

मणि ने उच्च सदन यानी बिहार विधान परिषद के अनुभव विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है- 'मैं जब विधान परिषद का सदस्य हुआ , तब देखा कि किस तरह यह ऊंची जातियों का जमावड़ा है, या फिर अगड़ी-पिछड़ी जाति के चापलूसों का।... यहां विधान सभा सीटों से आए सभी सदस्य पार्टियों के सुप्रीमो की कृपा से आए थे, इसलिए ज्यादातर चापलूस कोटि के थे।....ऐसी गरिमाहीन परिषद का क्या अर्थ रह जाता है। यह सब जनता के पैसों का सीधा अपव्य और जनतंत्र का खिलवाड़ है।.....ये हाउस ऑफ लॉर्ड की संततियां अथवा प्रतिकृतियां हैं। भारत में इसकी कोई जरूरत नहीं थी।

गांधी ऐसी ही पार्लियामेंट पर खीज कर इसे बांझ वेश्या कह गए। गांधी जी की इस टिप्पणी का मैं विरोधी था, लेकिन जब मैंने सदस्यों के आचरण देखे, तब अनुभव हुआ उन्होंने कोई गलत नहीं कहा था। विधान परिषद में ज्यादातर मामलों में चुप रहना ही श्रेयस्कर होता है, क्योंकि यदि आपको सरकार के मुखिया से अपना रिश्ता बनाकर रखना है तो उसके सिवा कोई चारा नहीं होता।

ज्यादा बोलकर और स्पष्ट बोलकर आप केवल मुसीबत मोल ले सकते हैं।...कभी कभी हंगामा के कारण इसका समय निकल जाता, या जान-बूझकर भी हंगामा कड़ा कर दिया जाता है। इससे मंत्रियों को बड़ी राहत मिलती है, जैसे रेनी डे के कारण स्कूली बच्चों को।'

मारपीट करने वाले को सत्ता पक्ष ने तरक्की दे दी

मणि ने विधान परिषद की एक घटना का जिक्र किया कि कैग की रिपोर्ट आई थी जिसमें सरकारी महकमे में भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए थे। अगले दिन विपक्ष वेल में आ गया। प्रश्नोत्तर काल में एक सदस्य ने माइक तोड़ दी। सदन में बंदरों की तरह उछल-कूद मच गई। एक-दूसरे को पीटने लगे। एक सदस्य पूरी तरह से नंगा हो गया, केवल अंडरवियर में मार खाता रहा। मुझे विश्वास था कि सदन इन पर कड़ी कार्रवाई करेगा लेकिन हुआ यही कि मारपीट करने वाले सदस्यों को सत्ता पक्ष ने तरक्की देकर अपनी पार्टी में ऊंचे पदों पर आसीन कर दिया। यह एक बड़ा संकेत था।

रामदेव बाबा आप भूमि सुधार पर आंदोलन करेंगे तो मैं साथ रहूंगा

कई अन्य विषयों पर भी मणि ने किताब में लिखा है। रामदेव बाबा पर लिखे अध्याय 'बक्कर और बाबा' में उन्होंने लिखा है- बाबा और आगे बढ़ें। हमारी बेहतर कामनाएं आपके साथ हैं। अगली दफा जब भूमि सुधार और वैसे अन्य मुद्दों पर जिससे मानव- मानव के बीच की गैरबराबरी दूर होगी, आप आंदोलन करोगे तो मैं भी आपके साथ होना चाहूंगा। लेकिन बाबा आप याद रखना आपने यदि ऐसा कुछ किया तो प्रधानमंत्री के दूत नहीं, उनके भूत आपसे मिलेंगे। फिर आपको या तो ग्रीन हंट हो जाएगा, या आप विनायक सेन की तरह देशद्रोही करार दिए जाएंगे।

नीतीश ने शरद की राजनीति को विकलांग बना दिया

किताब में एक अध्याय है 'फिर चुनाव'। इसमें मणि ने शरद यादव के बारे में लिखा है- उनके भीतर जातिवाद कुटिलता की हद तक जड़ जमाए हुए है। उनकी राजनीति न समग्रता की है न समानता की। वे परजीवी रानजीति में प्रतीक बनकर रहे।... नीतीश कुमार ने कायदे से उनकी राजनीति को विकलांग बना दिया। एक लेख 'नये बिहार का मतलब पिछड़े तबकों का उत्थान और सामंतवाद का खात्मा' प्रेम कुमार मणि ने लिखा जिसके बाद नीतीश कुमार ने आनन-फानन में देर रात गाड़ी भेजकर हमें बुलवाया। नीतीश कुमार ने बतलाया कि- इस लेख ने आपके प्रति एक खास तबके , उनका इशारा द्विज ताकतों की ओर था, को चौकन्ना कर दिया है। यह आपके लिए शायद ठीक न हो। मुझे तो पार्टी चलानी है न ! आप जिन तबकों को ध्वस्त करने की बात कर रहे हैं, सरकार तो उन्हीं लोगों ने बनायी है।

यह किसानों का हिन्दुत्व था

मणि ने अपने जन्म, अपने दादा, पिता सब के बारे में इसमें लिखा है- दादी का देहांत तब हो गया था जब मेरे पिता कुछ दिनों के ही थे। (दादा ने बाद में पुनर्विवाह किया) गांव की एक मुसलमान महिला ने मेरे पिता को दूध पिलाया और पाला। उस समय पड़ोस में वही एक महिला थी जिसे दूध होता था। वह महिला हमारे घर के भीतर आंगन तक आ सकती थी। यह हमारे घर का हिन्दुत्व था। दरअसल यह किसानों का हिन्दुत्व था।