सैदपुर हॉस्टल के विसर्जन जुलूस में 27 जनवरी की शाम जहानाबाद के रहने वाले धीरज कुमार की गोली लगने से मौत हो गई थी। उस वक्त ये कहा जा रहा था कि विसर्जन में लगातार हर्ष फायरिंग हो रही थी। इस दौरा एक गोली धीरज को लगी और उसकी मौत हो गई। लेकिन, असलियत कुछ और ही है। सूत्रों के हवाले से यह बात सामने आई है कि धीरज को टारगेट किया गया था। वो कुछ लोगों के निशाने पर था।
इस बात को मजबूती तब और मिल जाती है, जब PMCH में पोस्टमार्टम करने वाली टीम से जूड़े सूत्र बताते हैं कि धीरज को काफी नजदीक से गोली मारी गई थी। वो भी सामने से। गोली पीठ में लगी और फिर सीने को भेदती हुई बाहर निकल गई। यह तरीका हर्ष फायरिंग का नहीं है। मतलब साफ है कि पर्दे के पीछे से किसी न किसी ने आपराधिक साजिश रची! अब तक जो बातें सामने आई हैं, वो इसी ओर इशारा कर रही है।
पुलिस भी मान रही टारगेट किए जाने की बात
धीरज की मौत को आज 4 दिन हो गए हैं। लेकिन, अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। यहां तक की गोली मारने वाला शख्स कौन था, उसकी पहचान भी नहीं हो पाई है। हालांकि, पुलिस की जांच हत्या के एंगल पर ही चल रही है। गांधी मैदान के थानेदार अरुण कुमार के अनुसार जिस हिसाब से धीरज को गोली लगी है, वो टारगेट कर मारे जाने की ओर ही इशारा कर रही है। लेकिन, एक बात यह भी है कि किसी से उसके विवाद या किसी प्रकार की रंजिश की बात सामने नहीं आई है। बावजूद इसके गोली चलाने वाले की पहचान करने के साथ ही उसकी गिरफ्तारी के लिए छापेमारी चल रही है। उसके पकड़े जाने के बाद पूरी असलियत सामने आएगी।
रेंज से बाहर वारदात स्थल
धीरज अगर किसी के निशाने पर था तो क्यों था? उसकी हत्या क्यों की गई? इन सवालों का जवाब अभी न तो परिवार के पास है और न ही पटना पुलिस के पास। केस की जांच करते हुए पटना पुलिस की टीम ने गांधी मैदान गोलंबर के पास लगे CCTV कैमरे के फुटेज को खंगाला। लेकिन, उसमें गोली मारने की वारदात से जुड़ा कोई फुटेज नहीं मिला। वारदात स्थल पटना जिला पुलिस कार्यालय के पास गांधी मैदान का गेट नंबर 5 है। पुलिस का दावा है कि CCTV के रेंज से वारदात वाली जगह काफी दूर है। साथ ही बीच में पेड़ भी है। इस कारण फुटेज खंगालने पर कोई क्लू नहीं मिल पाया।
पुलिस अफसर बनने की कर रहा था तैयारी
धीरज जहानाबाद के पोखमा गांव का रहने वाला था। अपने माता-पिता का इकलौता बेटा और अपनी बहन का इकलौता भाई था। अपने अच्छे स्वभाव की वजह से चाचा अमरेंद्र कुमार का भी दुलरूआ भतीजा था। पढ़ाई करने में चाचा मदद भी करते थे। जवान बेटे को खो देने की वजह से पिता शौक में हैं। मां और बहन का भी हाल बुरा है। चाचा ने ही अपने भतीजे को मुखाग्नि दी। इन सब के बीच वो सपने अधूरे रह गए। जो धीरज और उसके परिवार ने देखे थे।
धीरज देश की सेवा करना चाहता था। वो एक आर्मी मैन बनना चाहता था। मगर, उसमें हुआ नहीं। इसके बाद से वो बिहार पुलिस में अफसर बनने की तैयारी कर रहा था। पुलिस में सब इंस्पेक्टर बनने के लिए मरकोस एकेडमी को ज्वाइन किया था। जिसमें वो ट्रेनिंग लेने के साथ ही बतौर ट्रेनर काम भी करता था। और वारदात से पहले वो गांधी मैदान में ट्रेनिंग दे रहा था। जब सैदपुर हॉस्टल का विसर्जन जुलूस गांधी मैदान पहुंचा, तब वो देखने के लिए वहां गया था। इसके बाद ही उसे गोली मारी गई थी।
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