जदयू में आरसीपी सिंह के बाद अब संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा बगावत के मूड में हैं! लगातार नेतृत्व पर हमलावर हैं। हिस्सेदारी भी मांग रहे हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इसके केन्द्र में राज्य की 7-8 फीसदी कुशवाहा वोटों पर दावेदारी है।
अगले दो सालों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने हैं। लिहाजा, कुशवाहा प्रकरण को चुनावी नजरिये से देखा जाना लाजिमी है। जदयू में वर्ष 2021 की शुरुआत में कुशवाहा ने अपनी पार्टी रालोसपा का विलय जदयू में इस आशा-विश्वास के साथ किया था कि नेतृत्व उन्हें जदयू का उत्तराधिकारी घोषित करेगा।
उन्होंने आरसीपी सिंह के खिलाफ अभियान में भी महती भूमिका निभाई, पर महागठबंधन का उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव को घोषित किए जाने के बाद उपेंद्र नई राजनीतिक ठौर की तलाश में अब फिर जुट गए हैं। नतीजा है कि एक बार फिर कुशवाहा राजनीति खदबदाने लगी है। दरअसल पूरे बिहार में बिरादरी पर पकड़ वाला एक भी कुशवाहा नेता नहीं है। इलाके के हिसाब से नेताओं की अपनी-अपनी पकड़ है। हालांकि, जदयू के उपेन्द्र कुशवाहा, भाजपा के सम्राट चौधरी और राजद के आलोक मेहता राज्यव्यापी कुशवाहा नेता बनने की कोशिश लगातार कर रहे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा के सामने कितने विकल्प हैं
पुरानी पार्टी रालोसपा को जिंदा करें
1. वह अपनी पुरानी पार्टी रालोसपा को जिंदा करें। एनडीए के फोल्ड में शामिल हों। लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में हिस्सा लें। खुद लड़ें।
असर: लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ जाएंगे तो महागठबंधन से कुशवाहा वोट जितना तोड़ेंगे उतना एनडीए को फायदा होगा।
भाजपा में शामिल हो सकते हैं
2. ऐसा होगा 1तो राज्य के 2 महत्वपूर्ण कुशवाहा नेता सम्राट और उपेन्द्र साथ होंगे। कुशवाहा वोट भाजपा के साथ आने की उम्मीद जगेगी।
असर: महागठबंधन खासकर जदयू को नुकसान हो सकता है। यह कितना होगा, नतीजे बताएंगे। 2020 विस चुनाव में बड़ा असर नहीं पड़ा था।
तीसरा कोण बना सकते हैं
3. अपनी पार्टी रालोसपा को पुनर्जीवित कर बसपा-एआईएमआईएम के साथ फिर से तीसरा कोण बना लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।
असर: कही महागठबंधन को नुकसान तो कहीं भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस अवस्था में उनकी राजनीतिक हैसियत भी दांव पर होगी।
राज्य में कुशवाहा वोट की राजनीतिक स्थिति
राज्य में कुशवाहा, जाति के हिसाब से यादव के बाद सबसे बड़ा जातीय समूह है। दक्षिण बिहार के मगध और शाहाबाद प्रमंडल के जिले जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, अरवल, आरा, रोहतास, बक्सर के साथ ही उत्तर बिहार के समस्तीपुर और उसके आस-पास के इलाकों में ही उपेन्द्र कुशवाहा के साथ चलने वाले वर्कर हैं। इस इलाके में उपेन्द्र अपनी बिरादरी का वोट कुछ हद तक अपनी ओर खींचते भी रहे हैं। ऐसे में वो जिसके साथ होंगे इस इलाके में उसे फायदा होगा।
इन जिलों में कुशवाहा वोट पर उपेन्द्र का असर नहीं
प्रदेश के बांका, मुंगेर, खगड़िया, पूर्णिया, मधुबनी, बेतिया, गोपालगंज, पटना समेत अन्य कुछ जिलों में भी कुशवाहा वोट का खासा असर है, पर इन इलाके में उपेन्द्र का खास असर नहीं हैं। इनमें से कई इलाके ऐसे हैं जहां इस समाज का कोई बड़ा और प्रभावी नेता नहीं है।
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