पुस्तक समीक्षा:संवेदना और सहानुभूति की तस्वीरें प्रस्तुत कर रहा कहानी-संग्रह ‘गीता पर हाथ रख कर’

कमलकिशोर विनीत| पटना6 दिन पहले
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  • न्यायिक प्रक्रियाओं में मानवता और नैतिकता की अहमियत बता रही पुस्तक

‘गीता पर हाथ रख कर’ पुस्तक का नाम सुनते ही लगता है कि जटिलता, कानूनी पेचीदगी से भरपूर होगी यह, पर इसमें संकलित कहानियों को पढ़ने पर पता चलता है कि संवेदना और सहानुभूति की सजीव तस्वीरें हैं इसमें। इसके लेखक हैं गोपालगंज के सीजेएम मानवेंद्र मिश्र। यह उनकी पहली पुस्तक है, जिसमें न्यायिक प्रक्रियाओं में मानवता और नैतिकता की कितनी अहमियत है- को रूपायित किया गया है। इस पुस्तक की पहली कहानी है ‘कमीना’। इसका शीर्षक समाज के स्तर पर जितना निम्न दिखता है, पर कथानक उतनी ही मर्मस्पर्शी है। अपने-पराए के बीच नए ढंग से परिभाषित रिश्तों की यह दास्तान है। ‘यूं ही कोई मिल गया’ कहानी में संवेदनशीलता, क्षमाशीलता, के अलावा प्यार की गलत रीति और नीति की बातें की गई हंै। तीसरी कहानी ‘मुखर कौन’ में पर्यवेक्षण गृह में रह रहे बच्चों की स्थिति और उनके किशोर मन की भावनाओं को भलीभांति उकेरा गया है। ‘मैं हूं कौन’ में प्रेम या मुस्तफा का संयुक्त रूप बालसुलभ सुधारात्मक बातों का पूर्णत: समायोजन दिखता है। कथित भैंस चोरी के आरोप में जेल में बंद मुन्ना की कहानी रोचक है। ‘जहर’ शीर्षक कथा में वेश्यावृत्ति की विडंबना के साथ- साथ सरकारी सिस्टम पर भी प्रहार किया गया है। पर्यवेक्षण गृह के लिए चलाई गईं योजनाओं के हाल का आईना है“सुरक्षा में सुराख’। प्रेम विवाह और एक वर्ष के अंदर ही प्रेम का अभाव जैसी पंक्ति। पति-पत्नी का झगड़ा एक पन्ने पर दोनों की शिकायतों में समानता देख निबटा देना समाज को नई दिशा देने के समान है। पुस्तक में लॉकडाउन भाग 1 और 2 की चोर व शराब कहानियों में बाल मन की पवित्रता को दर्शाते हुए नई इबारत लिखने की कोशिश की गई है। भरोसे का कत्ल, सजा : अभिशाप या वरदान, सामाजिक अन्वेषण, बालमित्र थाना शीर्षक से लिखे गए पाठों में सरकार, समाज, परिवार के लिए बहुत सारी उन बातों को रखा गया है, जिनसे हर कोई अनभिज्ञ है। इस प्रकार सरल भाषा, संवादशैली में कही गईं बातें घटनाओं का सजीव चित्रण, सरकारी सिस्टम पर सवाल, बाल मन की उद्वेगित भावनाओं के साथ-साथ स्त्री हृदय की अनछुई बातों को छूती कहानियों की संग्रह है-गीता पर हाथ रख कर पुस्तक।

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