बिहार के बड़हिया स्टेशन पर एक बार फिर से ट्रेनों के ठहराव के लिए लोग आंदोलनरत हैं। कोरोना से पहले की तरह यहां सभी जरूरी ट्रेनों का ठहराव हो, इसके लिए पिछले 24 घंटे से आंदोलनरत हैं। बड़हिया में ट्रेनों के लिए आंदोलन का पुराना इतिहास रहा है। यहां के लोग इसके लिए अपनी जान तक दे दिए थे। 1957 में यहां के लोगों ने तूफान एक्सप्रेस के ठहराव की मांग को लेकर आंदोलन किया गया था। उस आंदोलन में ट्रेन से कटकर 4 लोगों की मौत हो गई थी। एक बुजुर्ग की जुबानी जानिए पूरी कहानी।
ट्रेन आने की सूचना के बाद भी बैठे रह गए लोग
बड़हिया के बुजुर्गों के मुताबिक, तूफान एक्सप्रेस के ठहराव की मांग के लिए ग्रामीण रेलवे स्टेशन के अप लाइन पर बड़ी संख्या में धरना पर बैठे थे। ट्रेन आने की सूचना हुई। सुरक्षा में लगे पुलिस जवानों ने ट्रेन के आने की सूचना से पहले सबको हटाने का प्रयास किया, लेकिन चार लोग बैठे ही रह गए थे।
सरकार ने ट्रेन नहीं रोकने के दिए थे आदेश
सरकार का सख्त निर्देश था कि तूफान एक्सप्रेस को बड़हिया स्टेशन पर नहीं रोकना है। किऊल स्टेशन पर उस वक्त ट्रेन के इंजन और ड्राइवर को बदलकर आगे के लिए रवाना किया गया। तूफान एक्सप्रेस उक्त चारों धरना दे रहे लोगों को रौंदते हुए बड़हिया स्टेशन से गुजर गई। अगले स्टेशन मोकामा में जाकर रुकी।
रेलकर्मी पर नहीं हुई थी कोई कार्रवाई
उस दुर्घटना में रेल ड्राइवर या अन्य किसी रेल कर्मी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। उसके आठ महीने बाद तूफान एक्सप्रेस ट्रेन का ठहराव बड़हिया में दे दिया गया।
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