सोशल मीडिया पर पटना हाईकोर्ट का वीडियो वायरल है। यह वीडियो जस्टिस संदीप कुमार के कोर्ट का है। वीडियो में जस्टिस संदीप कुमार एक सरकारी कर्मचारी से यह पूछते हुए दिख रहे हैं कि भारती जी रिजर्वेशन पर आए थे नौकरी में क्या? कर्मचारी ने हां में जवाब दिया।
इसके बाद जस्टिस कुमार उन्हें जाने के लिए कहते हैं। कर्मचारी के जाते ही जस्टिस यह कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि समझ गए थे नाम से ही।
इसके बाद कोर्ट में मौजूद एक वकील हंसते हुए ये कह रहा है कि आप तो हुजूर समझ गए। आगे वो कहते हैं कि दो नौकरी के बराबर हुजूर हो गया होगा। इस बीच जज टोकते हैं कि नहीं-नहीं कुछ नहीं होता है इन लोगों का।
बेचारा जो पैसा कमाया होगा, खत्म भी हो गया होगा। हालांकि वीडियो से स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि ये किस मामले से जुड़ा वीडियो है? कब इसकी सुनवाई हुई थी? इससे पहले कोर्ट में क्या कार्यवाही हो रही थी या उसके बाद क्या हुआ।
जमीन का गलत मुआवजा देने का है मामला
हालांकि अंग्रेजी वेबसाइट एनडीटीवी ने लीगल न्यूज वेबसाइट लाइव लॉ के हवाले से लिखा है कि ये 23 नवंबर का मामला है। जिसका वीडियो अभी वायरल हो रहा है। कोर्ट में जिला भू अर्जन पदाधिकारी अरविंद कुमार भारती से संबंधित मामले की सुनवाई हो रही थी।
लाइव लॉ के हवाले से ही बताया गया है कि भारती पर आरोप है कि विवादित जमीन पर भी उन्होंने बिना किसी जांच-पड़ताल के किसी व्यक्ति के नाम मुआवजा जारी कर दिया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उन्हें अपना पक्ष रखने का समय दिया।
बुलडोजर चलाने पर पटना पुलिस को लगाई थी फटकार
कुछ दिन पहले जस्टिस संदीप कुमार का एक और वीडियो वायरल हुआ था। इसमें वे पटना पुलिस को फटकार लगाते हुए दिखे थे। मामला अवैध घरों पर बुलडोजर चलाने से जुड़ा था। पटना हाईकोर्ट ने महिला के घर को अवैध रूप से बुलडोजर चला कर ध्वस्त किए जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए अगमकुआं पुलिस थाने के अधिकारियों को फटकार लगाई थी।
कोर्ट ने कहा- यहां भी बुलडोजर चलने लगा...। तमाशा बना दिया है। किसी का घर बुलडोजर से तोड़ देंगे। जस्टिस संदीप कुमार की एकलपीठ ने पुलिस के इस रवैये से नाराज होकर कहा- आप किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, राज्य का या किसी निजी व्यक्ति का?
कोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग से संबंधित मामले का कानूनी पक्ष जानिए
सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुव गुप्ता कहते हैं कि पटना हाईकोर्ट समेत देश के सभी उच्च न्यायालयों में कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी के मार्गदर्शन में की जा रही है। इसलिए सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध इन वीडियो को प्रसारित करने में कोई अपराध नहीं है।
हालांकि अदालती कार्यवाही एक लीगल व्यवस्था है। ये आम जनता को जांच या आलोचना के दायरे में ला सकती है। गुप्ता बताते है न्यायाधीश (संरक्षण) अधिनियम 1985 की धारा 3 एक न्यायाधीश को उनके किसी भी ऑफिशियल काम या उस दौरान उनके द्वारा बोले गए शब्दों के लिए सुरक्षा प्रदान करती है।
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