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कंगारू मदर केयर:बिना अतिरिक्त खर्च नियंत्रित रख सकेंगे कम वजन वाले कमजोर नवजात बच्चे का वजन और तापमान

पटना10 महीने पहलेलेखक: अजय कुमार सिंह
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पीएमसीएच में 500 से अधिक महिलाओं को दी गई कंगारू मदर की ट्रेनिंग, विशेषज्ञों का दावा- बीमार बच्चों को कई फायदे होंगे। - Dainik Bhaskar
पीएमसीएच में 500 से अधिक महिलाओं को दी गई कंगारू मदर की ट्रेनिंग, विशेषज्ञों का दावा- बीमार बच्चों को कई फायदे होंगे।

बगैर किसी खर्च के कम वजन वाले बच्चों का वजन और तापमान को नियंत्रित रखा जा सकता है। इसके लिए नवजात की मां को कंगारू मदर केयर तकनीक अपनानी होगी। कंगारू मदर केयर से कम वजन वाले कमजोर बच्चों को कई फायदे होते हैं। इसलिए समय से पहले कम वजन वाले बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को कंगारू मदर केयर के गुर सीखना काफी महत्वपूर्ण है।

इसमें खर्च एक पैसा नहीं है और नहीं इसका कोई साइड इफेक्ट है। पीएमसीएच शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एके जायसवाल ने इसके कई फायदे बताते हुए कहा कि पीएमसीएच के शिशु विभाग में कंगारू मदर केयर सेंटर को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाया गया है। यहां करीब 500 से अधिक ऐसे महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई। जिन्होंने समय से पहले कमजोर बच्चे को जन्म दिया था।

वैसे बड़ों की तरह छोटे बच्चों के शरीर का तापमान स्थिर नहीं रहता है। छोटे बच्चों के शरीर का तापमान घटता-बढ़ता रहता है। कंगारू मदर केयर अपनाने पर बच्चे का तापमान मेनटेन रखा जा सकता है। बच्चे को हाइपोथर्मिया की शिकायत से निजात मिल जाती है। जिन महिलाओं का दूध कम होता है उन्हें सही पोस्चर अपनाने पर दूध भी अधिक निकलने लगता है। बच्चे को भरपेट दूध मिलने लगता है।

बच्चे का वजन जल्द बढ़ने लगता है। बच्चे का मां के साथ साइकोलॉजिकल बॉन्डिंग भी बढ़ जाता है। इसमें मां बच्चे को अपने स्तन के बीचोंबीच सटाकर रखती है। इस तकनीक के नतीजे को मेडिकल साइंस भी प्रमाणित कर चुका है। डब्लूएचओ, यूनिसेफ, वर्ल्ड हेल्थ असेंबली कंगारू मदर केयर को अपनाने के लिए जोर-शोर से प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, ताकि कमजोर बच्चों की जान बचाई जा सके।

इसलिए पड़ा कंगारू मदर केयर नाम
इसका नाम कंगारू मदर केयर नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि कंगारू अपने बच्चे को अपने पेट के पास बने थैले में रखती है। उसी तरह से महिला को भी बच्चे को सीने से सटाकर रखना है। प्रतिदिन सेंटर में आने वाली 10 महिलाओं में से पांच को इस तकनीक की ट्रेनिंग दी जाती है। डॉ. जायसवाल की मानें तो तेलंगाना में 700 ग्राम के बच्चे को भी इस तकनीक से वजन बढ़ाने में कामयाबी मिली है।