शहर के छज्जू मोहल्ला तालाब पर स्थित अंजुमन हॉल में बुधवार की देर रात ऑल बिहार मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसमें नालंदा के अलावा पटना, गया, जहानाबाद, बेगूसराय, मुंगेर, कोलकाता व अन्य जगहों के शायरों और कवियों ने शिरकत की। इस दौरान तारिक मोहिउद्दीन शर्मीला द्वारा लिखित पुस्तक मुझे सब है याद ज़रा ज़राज् का लोकार्पण भी हुआ। बज्म-ए-इत्तेहाद नालंदा द्वारा आयोजित इस ऑल बिहार मुशायरे में देर रात तक कवियों की कविताएं गूंजती रही। मुशायरे की अध्यक्षता शायर बेनाम गिलानी और संचालन बज्म ए इत्तेहाद के सचिव व शायर तनवीर साकित ने किया। सर्वप्रथम प्रो. इम्तियाज अहमद माहिर, आफताब हसन शम्स, अशरफ याकूबी, बाबर इमाम, अंजनी कुमार सुमन व अन्य द्वारा बज्म ए इत्तेहाद नालंदा के इतिहास व इससे संबंधित कवियों और लेखकों के बारे में लिखी गई तीन सौ पेज की पुस्तक मुझे सब है याद ज़रा ज़रा का विमोचन किया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने पुस्तक के महत्व और उपयोगिता पर रौशनी डाली।
कवि सम्मेलन की शुरुआत शायर बेनाम गिलानी द्वारा वो जिससे लिख सकूं तकदीर अपने हाथों से, कलम की नोक पर कुछ रोशनाई बाकी है की कविता से हुई। उसके बाद अशरफ याकूबी ने तेरी मुट्ठी में मेरी जान है क्या, खुदा होना बहुत आसान है क्या पढ़कर लोगों को मन जीत लिया। जबकि लेखक सह कवि आफताब हसन शम्स ने सारा झगड़ा है चमन में जब तलक आजाद हैं, मिल के बैठे हैं क़फ़स में कोई नाचाकी नहीं कविता पढ़कर लोगों से खूब दादो तहसीन हासिल की। इसके बाद प्रो. इम्तियाज माहिर की कविता सबकुछ यहां का गम न यहां की खुशी है दोस्त, इस जिन्दगी के बाद भी इक जिन्दगी है दोस्तज् पर लोगों ने खूब तालियां बजाईं।
बाबर ने सम्मेलन को आगे बढ़ाया
बाबर इमाम ने आप आ जायें लबे बाम तो रौशन हो शब, मुन्तजिर आज भी हैं चांद सितारे सारे कविता पढ़ी। फिर डा. अंजनी कुमार सुमन ने आते जाते आना जाना जान गए, हम तेरे दिल का तहखाना जान गए। हाफिज गुफरान नजर ने अपने कलम से जुल्म सितम की नफी करें, कायम हो जिस से अद्ल वही शायरी करें। तनवीर साकित ने सच कहीं लापता हो गया, झूठ का कद बड़ा हो गया, देखते देखते देखिए, कत्ल इंसाफ का हो गया। जबकि काजिम रजा ने मारना है तो मारा तन्हाई, गम न दे किस्तवार तन्हाई।
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