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इंडियन ओवरसीज बैंक के साथ हुए 729 लाख रुपए के गबन के मामले में आरोपी कंपनियों के मालिक और डायरेक्टर दो साल से फरार हैं। अगर एक महीने में ये कोर्ट में पेश नहीं हुए तो इन्हें भगौड़ा करार दे दिया जाएगा।
सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के जज डॉ. सुशील कुमार गर्ग ने शुक्रवार को मोहाली की अरविंद मशीन टूल्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अमरिंदर सिंह गोरवारा और पंजाब स्टील स्क्रैप कॉरपोरेशन के प्रॉपराइटर परमिंदर सिंह शामिल के खिलाफ पीओ प्रोसिडेंट यानी भगौड़ा करार दिए जाने की प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए।
अब मामले की अगली सुनवाई 11 फरवरी को होगी। इन्हें एक महीने का और वक्त दिया जाएगा। अगर फिर भी पेश नहीं हुए तो इन्हें भगौड़ा करार दे दिया जाएगा और बाकी आरोपियों के खिलाफ सुनवाई शुरू हो जाएगी। अभी इन आरोपियों के पेश न होने के कारण बाकी आरोपियों के खिलाफ भी ट्रायल शुरू नहीं हो सका है।
इससे पहले सीबीआई कोर्ट ने इन दोनों आरोपियों के नॉन-बेलेबल वॉरेंट ऑफ अरेस्ट जारी किए थे। 5 साल पहले इंडियन ओवरसीज बैंक ने करोड़ों की धोखाधड़ी के बाद सीबीआई को शिकायत दी थी। बैंक का कहना था कि आरोपियों ने फर्जी कंपनियां बनाकर बैंक से करोड़ों का लोन ले लिया था।
इसके बाद सीबीआई ने अमरिंदर सिंह गोरवारा और परमिंदर सिंह के अलावा साहिल गोरवारा, दलजीत कौर गोरवारा, बैंक के ही पूर्व एजीएम आदर्श कुमार राजवंशी, सीनियर मैनेजर विजय कुमार ग्रोवर, सत्य कुमार पारीक, पूर्व चीफ मैनेजर, पूर्व सीनियर मैनेजर राज कुमार पांजला के खिलाफ भी केस दर्ज कर लिया था।
इन सभी के खिलाफ सीबीआई ने 30 सितंबर 2019 को आईपीसी की धारा 120बी, 467, 468, 471 और प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 13(2)व13(1)(डी)के तहत चार्जशीट फाइल कर दी थी। सत्य कुमार और विजय कुमार ग्रोवर के खिलाफ केस चलाने की अनुमति नहीं मिली।
जिनसे सामान खरीदना था, वे कंपनियां थी जाली
सीबीआई ने 7 अक्टूबर 2015 को इंडियन ओवरसीज बैंक के चीफ रीजनल मैनेजर की शिकायत पर ये केस दर्ज किया था। शिकायत में कहा गया था कि डेराबस्सी स्थित अरविंद मशीन टूल्स कंपनी ऑटो कंपोनेंट्स का काम करती थी। कंपनी में अमरिंदर सिंह गोरवारा और साहिल गोरवारा डायरेक्टर थे।
कंपनी की बैंकिंग 2011 तक देना बैंक से थी, लेकिन बाद में उन्होंने इंडियन ओवरसीज बैंक के साथ कामकाज शुरू कर दिया। इंडियन ओवरसीज ने कंपनी का पुराना रिकॉर्ड देखते हुए उनकी क्रेडिट फेसिलिटी 1 करोड़ से साढ़े 4 करोड़ रुपए कर दी। इसके अलावा कंपनी को 3 करोड़ रुपए की टर्म लोन की भी फैसिलिटी दी।
2014 में अरविंद मशीन कंपनी को कुछ मशीनरी खरीदनी थी, जिसके लिए बैंक ने उनके 2.62 करोड़ और 1.60 करोड़ रिलीज किए। लेकिन जब इंडियन ओवरसीज बैंक ने जांच की तो पता चला कि अरविंद मशीन ने आगे जिन कंपनियों से सामान खरीदना था, वह जाली कंपनियां थीं।
देना बैंक के फर्जी डॉक्यूमेंट्स दिखाए
कंपनी ने देना बैंक के भी फर्जी डॉक्यूमेंट्स दिखाकर इंडियन ओवरसीज बैंक से करोड़ों रुपए का उधार ले लिया। इसका इस्तेमाल मशीनें खरीदने में किया ही नहीं गया था। इंडियन ओवरसीज ने जब जांच की तो पता चला कि उनके साथ 729.56 लाख यानी 7.29 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी हुई है। बैंक ने फिर सीबीआई को शिकायत दी। सीबीआई ने 30 सितंबर 2019 को इस केस में चार्जशीट फाइल कर दी थी।
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