पुत्रवधू की मुआवजे की मांग पर ससुर की आय को भी विचार के दायरे में रखा जा सकता है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा कि भले ही पति के नाम पर जमीन न हो लेकिन ससुर के नाम 103 कनाल 14 मरला जमीन को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
ऐसे में परिवार की इस आय को मुआवजे की मांग के सभी तथ्यों के साथ विचार करते हुए रेवाड़ी फैमिली कोर्ट का मुआवजा राशि बढ़ाने का फैसला सही है। जस्टिस राजेश भारद्वाज ने इस संबंध में पति की मुआवजा राशि न बढ़ाए जाने की मांग संबंधी याचिका को खारिज कर दिया। पति ने याचिका दायर कर कहा कि 10 साल तक साथ रहने के बाद पत्नी ने तलाक लेने का फैसला लिया और रेवाड़ी की फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर दी। पत्नी ने बेटे और खुद की देखरेख के लिए मुआवजा दिलाए जाने की मांग की। कहा गया कि उनका आय का कोई साधन नहीं है जबकि पति की मासिक आय 60 हजार रुपये है। ऐसे में गुजर बसर के लिए मुआवजा दिलाया जाए।
रेवाड़ी के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस मामले में पत्नी को देखभाल के लिए चार हजार रुपये प्रति माह मुआवजा तय किया था। पत्नी की तरफ से इस राशि को बढ़ाए जाने की मांग पर एडीशनल सेशन कोर्ट ने मुआवजा राशि को बढ़ाकर दस हजार रुपए प्रति माह कर दी। कहा गया कि पति के नाम पर न ही सही लेकिन ससुर के नाम पर 103 कनाल 14 मरला जमीन है। पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस फैसले को खारिज करने की मांग की। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि मां और उसके बच्चे की देखभाल के लिए चार हजार रुपए मुआवजा राशि कम है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा: पुत्रवधू के मुआवजे की मांग पर ससुर की आय को अनदेखा नहीं कर सकते
मां और बच्चे की देखभाल के लिए 4 हजार की राशि कम
हाईकोर्ट ने कहा कि मां और उसके बच्चे की देखभाल के लिए 4000 रु. मुआवजा राशि कम है। ऐसे में सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद ही एडीशनल सेशन जज ने मुआवजा राशि तय की है। ऐसे में इस फैसले को गलत नहीं ठहराया जा सकता।
पीयू के छात्र की याचिका: संपत्ति उत्तराधिकार में पुरुषों को वरीयता क्यों, केंद्र से मांगा जवाब
संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम में पुरुषों को वरीयता और लैंगिक भेदभाव पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब कर लिया है। पंजाब यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल के छात्र दक्ष कादियान ने इस संबंध में जनहित याचिका दायर कर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी है। याचिका में कहा कि हिंदू प्रावधानों के अनुसार यदि घर के मुखिया की मौत हो जाती है और वह कोई वसीयत नहीं छोड़ते तो ऐसी स्थिति में पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों को प्राथमिकता दी जाती है जिसमें बेटा, बेटी, पोता पोती आदि शामिल हैं। पहली श्रेणी के उत्तराधिकारी मौजूद नहीं होते हैं तो दूसरी श्रेणी को मौका दिया जाता है। इसमें पुरुष रिश्तेदार को ही प्राथमिकता दी जाती है। तीसरी श्रेणी में बेटे की बेटी का बेटा या बेटे की बेटी की बेटी में से वरीयता देने की बात आती है तो इनमें से महिला को प्राथमिकता मिलती है।
रिश्तेदारों की प्रॉपटी के बंटवारे में भी पुरुष दावेदार
साथ ही बताया कि जब करीबी रिश्तेदारों में प्रॉपर्टी के बंटवारे की बात आती है तो वहां पुरुष रिश्तेदारों को ही प्राथमिकता दी जाती है और महिलाओं से भेदभाव वहीं कुछ मामलों में इससे उलट है। ऐसे में प्रावधान ऐसा हो जो लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने वाला हो। हाईकोर्ट ने याची का पक्ष सुनने के बाद केंद्र सरकार से जवाब तलब कर लिया है।
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