हाेशियार बच्चे पढ़ाकर खुद को टीचर समझती हो, अगर इतनी ही काबिल हो तो स्लम बच्चों को पढ़ाओ और उन्हें काबिल बनाकर दिखाओ। बेटे प्राचुरजया की इस बात ने प्रणिता बिसवास को अंदर तक झकझाेर कर रख दिया। इसके बाद प्रणिता ने सैक्रेड हार्ट स्कूल सेक्टर-26 में टीचिंग की जॉब से रिजाइन कर दिया और स्लम बच्चों के जीवन को संवारने में जुट गईं। वर्तमान में वे मोहाली के गांव जगतपुरा में 8 कमरों की एक बिल्डिंग किराए पर लेकर स्लम बच्चों को एजुकेशन देने के साथ ही उन्हें कमाई करने के काबिल बना रही हैं।
वर्तमान में उनके पास 6 से 18 साल के 140 बच्चे एनरोल्ड हैं। कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें 15-16 साल की उम्र तक ए,बी,सी या अन्य कोई अक्षर की पहचान नहीं थी। लेकिन अब वही बच्चे आईआईटी खड़गपुर के एनुअल सोशल और कल्चरल स्प्रिंग फेस्ट में यूनीसेफ और क्राई इंडिया के सहयोग से अपना आर्ट वर्क और हैंडीक्राफ्ट डिस्पले कर रहे हैं। ये बच्चे वृद्धि इंडिया के अंतर्गत पार्टिसिपेट कर रहे हैं। वृद्धि इंडिया को इस इवेंट में एसोसिएट सोशल पार्टनर के तौर पर बुलाया गया है।
प्रणिता वृद्धि एजुकेशनल एंड सोशल वेल्फेयर सोसायटी की फाउंडर और सेक्रेटरी हैं। इस संस्था को वृद्धि इंडिया के नाम से जाना जाता है। बताती हैं कि देश के अलग-अलग एरियाज में आर्मी व टॉप के कॉन्वेंट स्कूलों में 29 साल का टीचिंग एक्सपीरियंस है। लेकिन इस संस्था में रहकर काम करने का जो अनुभव उन्हें हो रहा है, वह पहले कभी नहीं हुआ। उनके बेटे ने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की है। वह अब 24 साल का है।
आइडिया की शुरुआत ऐसे हुई...
बात 2015 की है जब बेटा आईआईटी खड़गपुर में स्टूडेंट था। उसी दौरान एनएसएस के मेंबर होते हुए उसने कई गांवों में विजिट किया। वहां उसे पता चला कि सर्व शिक्षा अभियान तो है पर असल में एजुकेशन सभी के लिए है नहीं। कई बच्चे ऐसे हैं जो डॉक्युमेंटेशन पूरा न होने के चलते स्कूल तक पहुंच ही नहीं पाते। उन्हें अक्षरों की पहचान नहीं और न ही उनमें दिलचस्पी है। पैसा कमाने के लिए कहीं न कहीं काम करते हैं।
ऐसे में जरूरी यही है कि उन्हें शिक्षा देने के साथ काबिल बनाएं। क्योंकि जो 17 साल में ए,बी सी सीख रहा है उसे नौकरी तो निश्चित रूप से नहीं मिलेगी। बस यहीं से अन्य खड़गपुर स्टूडेंट्स के साथ शुरुआत हुई जो एजुकेशन फॉर ऑल का आइडिया हल्ट प्राइज मैड्रिड स्पेन तक लेकर गए।
2016 से हुई शुरुआत...
प्रणिता ने बताया कि 2016 में उन्होंने 10 बच्चों से शुरुआत की थी, जो अब 140 बच्चों तक आ पहुंची है। स्टूडेंट्स के बैचेज उम्र नहीं उनके मेंटल लेवल के मुताबिक बनाए गए हैं। इस चैरिटेबल स्क्ूल में डॉमेस्टिक हेल्प और डेली वेजर्स के बच्चों काे बेसिक और क्वालिटी एजुकेशन देने के बाद उनकी डॉक्युमेंटेशन पूरी करवाकर उन्हें फॉर्मल एजुकेशन में एलिवेट किया जाता है। इतना ही नहीं यहां बच्चों की इमोशनल, न्युट्रिशनल और सोशल जरूरताें का भी ख्याल रखा जाता है। स्टूडेंट काे उनकी काबलियत के मुताबिक उन्हें मैकेनिक, टेलरिंग, पेंटिंग आदि की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
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