तलाक मामले में हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी:मानवीय संवेदनाएं-भावनाएं सूख जाएं तो कृत्रिम पुनर्मिलन से दोबारा खिलने की संभावनाएं बेहद कम

बृजेन्द्र गाैड़, चंडीगढ़2 महीने पहले
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 33 वर्ष पुरानी शादी में निचली कोर्ट द्वारा सुनाए तलाक के फैसले को सही पाते हुए महिला का अपील केस रद कर दिया है। हाईकोर्ट ने इस वैवाहिक विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट को आधार बनाया। उस जजमेंट में कहा गया था कि, "विवाह में मानवीय संवेदनाएं और भावनाएं जुड़ी होती हैं। यदि यह सूख चुकी हों तो अदालती फैसले द्वारा कृत्रिम पुनर्मिलन से इनके जीवन में दोबारा खिलने की संभावनाएं बेहद कम होती हैं।"

हाईकोर्ट जस्टिस ऋतु बाहरी और जस्टिस मनीषा बतरा की डबल बैंच में केस की सुनवाई हुई। महिला ने जालंधर की फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। उस आदेश में निचली कोर्ट ने महिला के पति की तलाक संबंधी याचिका को क्रूरता और अलगाव के आधार पर मंजूर कर लिया था।

शादी के बाद से ही विवाद शुरू हो गया
महिला की शादी नवंबर, 1990 में हिमाचल प्रदेश के ऊना में हुई थी। बाद में महिला ने संयुक्त परिवार में रहने से इनकार कर दिया था। जनवरी, 1992 में महिला अपने पति को छोड़ कर चली गई थी और जालंधर अपने मायके मे रहने लगी थी। यहां उसके एक लड़का पैदा हुआ। इस पर महिला का पति अपने बच्चे के लिए गिफ्ट, मिठाई, कपड़े आदि लाया और अपनी पत्नी के परिजनों से प्रार्थना की कि उसकी पत्नी को उसके साथ भेज दें। हालांकि महिला के परिजनों ने उसके पति को कहा कि वह पत्नी और बच्चे के साथ अलग रहे।

पति साथ रहना चाहता था
महिला के पति ने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत मई, 1992 में पत्नी के साथ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की। मार्च, 1994 में कोर्ट ने पति की याचिका को मंजूर करते हुए इस पर फैसला दिया। इसके बावजूद महिला ने अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया।

तंग आया तो तलाक मांगा
पत्नी द्वारा साथ रहने से इनकार करने पर तंग आकर पति ने ऊना की जिला अदालत में तलाक के लिए याचिका दायर की। मार्च, 1996 में इसे खारिज कर दिया गया। क्योंकि पति-पत्नी में समझौता हो गया और महिला अपने ससुराल में रहने लग पड़ी। हालांकि कुछ समय बाद वह फिर से अलग रहने की मांग करने लगी।

पति पर दहेज प्रताड़ना का केस चला
महिला के पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने जालंधर में आपराधिक स्तर पर विश्वासघात और दहेज प्रताड़ना की धाराओं(IPC 406, 498 A) में शिकायत दायर की। हालांकि महिला का पति अक्तूबर, 2010 में बरी हो गया। महिला की उस फैसले के खिलाफ अपील केस भी रद्द हो गया। इसके बाद पति ने जालंधर की फैमिली कोर्ट में तलाक का केस दायर कर दिया।

निचली कोर्ट ने तलाक मंजूर किया था
महिला ने कोर्ट में क्रूरता और शोषण के आरोपों से इनकार किया और अपने पति की याचिका रद्द करने की मांग की। हालांकि फैमिली कोर्ट ने कहा कि ऐसी संभावना नजर नहीं आती कि दोनों पक्ष भविष्य में साथ रह पाएंगे। वहीं पति यह साबित करने में सफल रहा कि उसकी पत्नी द्वारा उसके व उसके परिवार के साथ मानसिक रूप से क्रूरता हुई। इस आधार पर कोर्ट ने तलाक मंजूर कर लिया था।

हाईकोर्ट बोला- विवाह बुरी तरह टूट चुका है
इस फैसले के खिलाफ महिला हाईकोर्ट पहुंच गई। अपील केस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि उसके पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की थी। जिस पर वर्ष 1994 में फैसला आया। इसके बावजूद महिला अपने पति के साथ रहने में नाकाम रही। कोर्ट ने कहा कि यह आधार इस निष्कर्ष पर आने के लिए पर्याप्त हैं कि दोनों पक्षों के बीच हुआ विवाह बुरी तरह टूट चुका है। पति यह साबित करने में सफल रहा कि वह अपनी पत्नी की क्रूरता का शिकार हुआ। महिला के अपील केस को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने पति को 15 लाख रुपए पत्नी को देने के आदेश दिए हैं।