मां शब्द की व्याख्या करना दुनिया के सबसे कठिन कार्यों में से एक है। पढ़िए, पंजाब की उन चार सुपर मांओं की कहानियां, जिन्होंने जिद, जुनून, दृढ़ इच्छाशक्ति और साहस से मां शब्द को ईश्वर से ऊंचा कर दिया...
दीपिका देख नहीं सकतीं...किताबों को स्कैन कर वॉयस रिकॉर्डिंग सॉफ्टवेयर से पढ़ाना सिखा रहीं
जालंधर की बीएसएफ कॉलोनी में रहने वाली दीपिका बचपन से ही नेत्रहीन हैं, लेकिन वो सारे काम एक सक्षम महिला की तरह करती हैं। वॉयस कनवर्टर सॉफ्टवेयर के जरिए बुक को स्कैन कर बेटी को पढ़ाती हैं। नेत्रहीन लोगों को इस सॉफ्टेवयर के जरिए पढ़ना और पढ़ाना भी सिखा रही हैं। वो नेत्रहीन लोगों की मदद करने के लिए ‘सक्षम पंजाब’ नाम की संस्था का संचालन करती हैं।
कौशल्या झुक नहीं सकतीं...बच्चे यह न समझें कि मां कमजोर है, विपत्तियों को झुका दिया
गढ़ा पिंड (फिल्लौर) की रहने वाली 42 साल की कौशल्या देवी के दो बच्चे- 8 साल का बेटा और 6 साल की बेटी है। कौशल्या 3 साल की थीं, जब पोलियो के चलते एक पैर खराब हो गया। शादी के बाद बच्चे पैदा हुए तो रीढ़ की हड्डी में इंजेक्शन लगने की वजह से झुकने में दिक्कत आने लगी। क्रचिस का सहारा लिया। बच्चों की परवरिश में असर न पड़े इसलिए कई मुश्किलें झेलीं। कहती हैं, ‘उनके बच्चे यह न समझें कि उनकी मां कमजोर है इसलिए वो सब काम कर रही हैं, जो एक स्ट्राॅन्ग मां करती है।
रीमा चल नहीं सकतीं...लोग ताना मारते थे, बच्चों को संगीत सिखा कर चला रहीं घर
पांच साल की उम्र में ट्रक के टायर के नीचे पांव आने से उनके पंजे कुचल गए। लोग ताना मारने लगे कि अब यह बच्ची चल नहीं सकती। म्यूजिक सीखना चाहती थीं लेकिन दाखिला नहीं मिला। हिम्मत नहीं हारीं। टीवी और रेडियो के जरिए संगीत सीखा। 12 साल पहले उनके पति का निधन हो गया। किराए के मकान में दो बच्चों की परवरिश करना उनके लिए चुनौती बन गई। वे कहती हैं, ‘एक समय लगा सबकुछ खत्म हो गया। संगीत ने मेरेे लिए संजीवनी का काम किया और अब इसी से मैं घर चला रही हूं।’
बलविंदर कौर के दोनों पैर खराब हैं...12 घंटे ई रिक्शा चलाकर दो बच्चों का भविष्य बना रहीं
फाजिल्का की आर्य नगर की रहने वाली 40 वर्षीय बलविंदर कौर के दो बच्चे हैं। जब वह तीन वर्ष की थी तो पोलियो से उनके दोनों पैर खराब हो गए। विवाह हुआ तो पति भी बाद में छोड़ कर चला गया। 12 वर्षीय बेटी और 6 साल के बेटे की जिम्मेदारी के साथ-साथ उनके कंधों पर 86 वर्षीय पिता जसवंत सिंह व 77 वर्षीय माता भुपिंदर कौर की जिम्मेदारी भी आ गई, लेकिन उन्होंने कभी भी इस जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा। 14 घंटे ई-रिक्शा चलाकर वो बच्चों का जीवन बना रही हैं।
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