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कभी समय था लोग टिकट पर पैसा खर्च करके पिंजौर के यादविंद्रा गार्डन में रह रहे मिनी जू के पिंजरे में बंद बंदरों को देखने जाते थे परंतु अब शहर में हर गली व मोहल्ले में लोगों की छतों पर इन्हें बैठे देखा जा सकता था, पहले बंदर पिंजरे में बंद थे। अब हालात यह हो गए कि शहर में बंदरों के आतंक के डर से लोग घरों में कैद हो जाते है। पिछले कुछ सालों से पिंजौर में बंदरों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
जिसका खामियाजा स्थानीय लोगों को इनसे घायल होकर भुगतना पड़ रहा है अभी तक इन बंदरों से दर्जनों लोग घायल हो चुके है। पिंजौर-कालका मेन रोड पर शेरावाली माता मंदिर के पीछे काॅलोनी में, विश्वकर्मा काॅलोनी, चौणा चौक, सैनी मोहल्ला, वैरागी मोहल्ला, कबीरपंथी मोहल्ला, बिटना रोड और पिंजौर थाना व उसके पीछे सरकारी स्कूल समेत आसपास क्षेत्र में सबसे ज्यादा बंदरों का आतंक है। लोगों के घरों की छत्तों पर आधा दर्जन से ज्यादा की गिनती में बंदर बैठे रहते है।
अब तो हालात ऐसे हो चुके है कि बंदरों के कारण लोगों को बाहर निकलना तो मुश्किल हो ही चुका है। लोग अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि अगर उनके घरों का दरवाजा या खिड़की खुली रह गई तो उनमें से कभी भी बंदर घर के अंदर घुस सकता है। आए दिन बंदरों की चपेट में आने से लोगों के घायल होने की घटनाएं हो रही है।
घरों में रह रहे लोगों को इनके कारण अपने ही घरों में कैद होकर रहना पड़ रहा है। कुछ दिन पहले ही विश्वकर्मा काॅलोनी में रहने वाली महक गोयल जो कि बंदरों की चपेट में आने से घायल हो गई। उन्होंने बताया कि उनके घर की छत पर ही बंदर ने आकर उन्हें घायल कर दिया था।
कहा कि बंदरों के कारण वो इतने ज्यादा परेशान है कि वो अपनी छत को किसी भी काम के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते अगर वो छत पर कपड़े सुखने के लिए डालते है तो बंदर कपड़े ही उठाकर ले जाते है या फिर फाड़ देते है, पानी की टकीं का ढक्कन तोड़कर टकीं में नहाने लगते है, छत पर गेहूं सुखने के लिए रखो तो वो भी गिरा देते है। इसके अलावा लोग छत पर बैठ नहीं सकते।
स्थानीय लोगों ने कहा कि उन्होंने इसके बारे में कई बार नगर निगम और वाइल्ड लाइफ विभाग को भी शिकायत की परंतु कोई समाधान नहीं हो रहा। बंदरों से जहां एक ओर लोग असुरक्षित है वहीं इनके द्वारा किया जाने वाला नुकसान भी लोगों पर भारी पड़ रहा है। बंदर दुकानदारों का सामान भी उठाकर ले जाते है।
शहर में बंदरों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है जिस पर प्रशासन आंखे मुंदे बैठा है, बंदरों के डर से लोग छत पर कपड़े तक नहीं सुखा पाते क्योंकि बंदर कपड़े भी उठाकर ले जाते है। बंदरों के झुंडों को देखकर घर से बाहर निकलने की भी हिम्मत नहीं पड़ती, उन्होंने कहा कि सुबह-शाम को सैर करने के लिए जब निकलते है तो बंदर पीछे आकर काटने के लिए दौड़ते है। -प्रवीन आहुजा, सामाजिक कार्यकर्ता।
वाइल्ड विभाग पहले ही पल्ला झाड़ चुका है
शहर में बंदरों से लोगों की परेशानी के बारे में करने पर वाइल्ड लाइफ के सब इंस्पेक्टर रामकेश ने पहले भी कह चुके है कि बंदरों को पकड़ने की हम अनुमति दे सकते है और बंदर पकड़ने के लिए टीम को बुलवाकर अपने लोगों को साथ रख सकते है परंतु इसका पूरा खर्चा नगर निगम द्वारा करना होता है, जब वो हमें कहेंगे तो हम कार्रवाई शुरू कर देगें।
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